डॉ. चंदेल बोले-किसानों की जरुरतों के अनुरूप कृषि यंत्रों का विकास करें
0कृषि यंत्र एवं मशीनरी परियोजना की 38वां तीन दिवसीय वार्षिक कार्यशाला प्रारंभ, देश भर के 27 केन्द्रों से कृषि अभियांत्रिकी के वैज्ञानिक शामिल हुए
रायपुर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में 8 से 10 जनवरी, 2024 तक आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (कृषि उपकरणों एवं मशीनरी) की 38वीं वार्षिक कार्यशाला का आज यहां शुभारंभ किया गया। कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय रायपुर में आयोजित कार्यशाला के उद्घाटन समारोह के मुख्य आतिथि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल थे। इस अवसर पर विभिन्न कृषि यंत्रों एवं उपकरणों की प्रदर्शनी भी आयोजित की गई।
कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि कृषि क्षेत्र में मजदूरों की कमी तथा बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए कृषि कार्यां में यंत्रों का उपयोग किया जाना जरूरी हो गया है, इससे विभिन्न कृषि कार्यां में समय तथा श्रम की बचत होती है। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों एवं अभियंताओं को विभिन्न फसलों की विशिष्टताओं, क्षेत्रीय परिस्थितियों तथा किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नये कृषि यंत्रों का विकास करना चाहिए। डॉ. चंदेल ने कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी – कम्प्यूटर, मोबाईल सेवाएं, रिमोट सेंसिंग, ड्रोन तकनीक आदि का उपयोग किये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कृषि यंत्रों के अनुसंधान एवं विकास हेतु फार्म मशीनरी निर्माण करने वाली संस्थाओं की जरूरतों का भी ध्यान रखने पर बल दिया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि अभियांत्रिकी) डॉ. एस.एन. झा ने समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि अखिल भारतीय कृषि यंत्र एवं मशीनरी परियोजना के अंतर्गत संचालित 27 केन्द्रों में कृषि यंत्रों के अनुसंधान एवं विकास हेतु उल्लेखनीय कार्य किये गये हैं तथा बलती कृषि परिस्थितियों एवं किसानों की आवश्यकताओं के अनुसार नये-नये कृषि यंत्र इजात किये गये हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में देश के 47 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में कृषि यंत्रों का उपयोग किया जा रहा है जिसे वर्ष 2047 तक 75 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने बताया कि कृषि यंत्रों के उपयोग से खेती की लागत में औसतन 30 प्रतिशत तक बचत होती है। इस अवसर पर परियोजना के तहत प्रकाशित चार नवीन प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया।
इस कार्यशाला में पूरे देश के विभिन्न 27 केन्द्रों में किए गए अनुसंधान, यंत्रों का डिजाइन, विकास, निर्माण एवं उनके प्रशिक्षण संबंधी प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाएंगे तथा विभिन्न क्षेत्रों के निजी संस्थान/कृषि यंत्र निर्मातागण के सहयोग हेतु विचार विमर्श किया जाएगा।