स्वास्थ्य

कोरोना से लडने की तैयारी बेमानी; कंडम एम्बुलेंस और प्रशिक्षित स्टाफ के बिना रास्ते में दम तोड रहे मरीज

रायपुर, एंबुलेंस में सुविधाओं की कमी और प्रशिक्षित स्टाफ नहीं होने के कारण प्रदेश में ब्राड डेड (मृत अवस्था) मरीजों के मामले बढ़ गए हैं। राजधानी के आंबेडकर अस्पताल, डीकेएस सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल, एम्स, जिला अस्पताल समेत निजी अस्पतालों में हर महीने इस तरह के 500 से अधिक मामले आ रहे हैं। राज्य स्तर पर यह संख्या और अधिक है। ऐसे में कोरोना से लडने की तैयारी बेमानी लगती है।

प्रदेश में लगातार कोरोना के मरीज बढ रहे है। सरकार इससे निपटने की तैयारी में जुट गई है। गत दिवस पूर्वाभ्यास भी किया गया। लेकिन जहां गंभीर मरीजों को सुरक्षित अस्पताल लाने में दिक्कत हो रही है,वहां कोरोना के मरीजोंं की चिकित्सा सेवा भगवान भरोसे प्रतीत होता है।

बहरहाल चिकित्सकों की माने तो अस्पताल लाए जाने के दौरान एंबुलेंस कर्मियों द्वारा आक्सीजन व प्राथमिक चिकित्सा नहीं दे पाने के कारण कई मरीजों की रास्ते में ही मौत हो जा रही है। कई बार गंभीर मरीजों को भी ऐसे एंबुलेंस में लाया जा रहा है, जिनमें स्तरीय चिकित्सा सुविधाएं नहीं होतीं। इस तरह की ज्यादातर शिकायतें निजी एंबुलेंस में आ रही हैं। ये एंबुलेंस संचालक पैसा भी अधिक ले रहे हैं और सुविधाएं भी नहीं दे रहे हैं। इसके चलते कई मरीजों की अस्पताल पहुंचने के पहले ही मौत हो जा रही है।

एंबुलेंस सेवाएं दो तरह की होती हैं। पहला बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम (बीएलएस) है। इसमें आक्सीजन सिलेंडर, मैनुअल ब्रिथिंग यूनिट, बीपी इंस्टूमेंट समेत 26 तरह की सुविधाएं होती हैं। यह कम गंभीर रोगियों को ले जाने के लिए उपयोग किया जाता है। वहीं दूसरे एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम (एएलएस) में 30 तरह की सुविधाएं होती हैं। यह गंभीर व अति गंभीर रोगियों को अस्पताल पहुंचाने के लिए उपयोग किया जाता है। दोनों में ईएमटी (इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन) होना आवश्यक है लेकिन प्रदेश के ज्यादातर एंबुलेंस मापदंडों के तहत सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं।

शासन द्वारा 108 व 102 एंबुलेंस सेवाएं दी जा रही हैं। समय पर मरीजों तक नहीं पहुंच पाने के कारण लोग निजी एंबुलेंस की सेवा ले रहे हैं। निजी एंबुलेंस संचालक इसका फायदा उठाते हुए स्वजन से मनमाना किराया लेकर लूटने में लगे हुए हैं, जबकि इन एंबुलेंस में पर्याप्त सुविधाएं हैं न ही ईएमटी स्टाफ। कंडम एंबुलेंस से भी मरीजों को छोड़ने का काम किया जा रहा है।

स्वास्थ्य विभाग के पास जानकारी नहीं

बता दें निजी एंबुलेंस के पंजीयन से लेकर इसकी व्यवस्थाओं को परिवहन विभाग (आरटीओ) देखता है। स्वास्थ्य विभाग के पास निजी एंबुलेंस से जुड़ी किसी तरह की जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। न ही इसके ट्रैकिंग व मानिटरिंग की व्यवस्था है। आरटीओ की शह पर निजी एंबुलेंस संचालकों की मनमानी बढ़ी हुई है। मरीजों के स्वजनों को यह अब भारी पड़ने लगी है।

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