Uncategorized

पशु प्रेमियों के लिए खुशखबरी ! कुत्तों को भी मिला मूल निवासी का हक, उन्हें उनके मोहल्लों से भगाया नहीं जा सकता

नई दिल्ली, एजेंसी, पिछले दिनों कई स्थानों पर आवारा कुत्तों की बर्बरता के बाद इससे छुटकारा पाने की मांग तेज होने लगी है। लेकिन पशु प्रेमियों के लिए अच्छी खबर यह है कि कोई कुत्ता चाहे कितना भी आवारा या कटास (काटने वाला) हो, उसे उसके मोहल्ले या गांव से विस्थापित नहीं किया जा सकता है। वह जहां चाहे रह सकता है या अपनी मर्जी से जा भी सकता है। किसी का जोर-जुल्म नहीं चलेगा।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत पशु (कुत्ता) जन्म नियंत्रण नियमावली को मंगलवार को अधिसूचित कर दिया है। जानवरों पर अत्याचार रोकने के लिए देश में पहली बार 1960 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम लाया गया था। केंद्र सरकार ने इसी अधिनियम के तहत पशु (कुत्ता) जन्म नियंत्रण नियमावली-2023 को अधिसूचित किया है।

मनुष्यों एवं आवारा कुत्तों के बीच के संघर्षों से निपटने के उपाय

नई नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि उन क्षेत्रों में कुत्तों को खिलाने या आश्रय देने से भी कोई मना नहीं कर सकता है, जहां ये कुत्ते निवास कर रहे हैं। किसी क्षेत्र से कुत्तों को भगाए-हटाए बिना भी मनुष्यों एवं आवारा कुत्तों के बीच के संघर्षों से निपटने के उपाय तलाशे जा सकते हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई आदेशों में विशेष रूप से उल्लेख किया है कि कुत्तों को विस्थापित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और निगमों को पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) तथा रेबीज रोधी कार्यक्रम को संयुक्त रूप से चलाने की जरूरत है।

आवारा कुत्तों की नसबंदी के दौरान नहीं होनी चाहिए क्रूरता : सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड से मान्यता प्राप्त संस्थाओं को ही नसबंदी अभियान चलाने की अनुमति देनी चाहिए। ऐसे संगठनों की सूची बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जाए और समय-समय पर अपडेट भी किया जाए। आवारा कुत्तों की नसबंदी के दौरान भी किसी प्रकार की क्रूरता नहीं होनी चाहिए। पशु कल्याण और करुणा की भावना को ध्यान में रखते हुए भी आवारा कुत्तों की संख्या को घटाया जा सकता है।

स्थानीय निकायों से गुहार

नई नियमावली को अधिसूचित करने के साथ ही केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों, पशुपालन विभाग एवं शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिवों को पत्र जारी कर दिया है। स्थानीय निकायों से आग्रह किया गया है कि वे नियमों का अक्षरश: क्रियान्वित करें और किसी भी ऐसी संस्था को ऐसे कार्यक्रम चलाने की अनुमति न दें जिसे भारतीय पशु कल्याण बोर्ड से मान्यता नहीं है और एबीसी कार्यक्रम के लिए अनुमोदित या नियमावली में वर्णित नहीं हैं।

इसके पहले पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम में 2002 में भी संशोधन किया गया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि अगर कुत्ता खतरनाक है तो भी उसे मारा नहीं जा सकता है। पशु क्रूरता में दोषी पाए जाने पर पांच वर्ष तक की सजा का प्रविधान है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button