कानून व्यवस्था

देश को चाहिए सुरक्षित एवं सुखमय रेल-यात्रा…

इंजीनियर तपन चक्रवर्ती

देश में एक कोने से दुसरे कोने तक पहुंचने के लिए सबसे अच्छा एवं सस्ता साधन रेल-यात्रा है। देश का आर्थिक विकास एवं उन्नति, तेजी से घुमती रेल पहिये के जरिये अवश्य हुई है। किंतू रेल-यात्री का जीवन सुरक्षित एवं सुखमय अभी तक नहीं हो पाया। इसकी वजह सिर्फ रेल-प्रशासन का कुप्रबंधन एवं लापरवाही जिम्मेदार है। नतीजन 02 जून की ढलती शाम 7ः20 को उड़ीसा के बालेश्वर (बालासोर) जिले के बाहानगा-बाजार रेल्वे स्टेशन में दिल-दहलाने वाली तीन ट्रेनों की आपसी टकराहट से अभी तक 285 रेल यात्रीयों की मौत के साथ ही 1000 से अधिक रेल यात्री गंभीर रूप से घायल हुए है। यह 21 वीं सदी का सबसे बड़ा रेल-हादसा कहा जा सकता है। सबसे आश्चर्य की बात है कि अभी तक न ही रेल प्रशासन के आला-अफसर अथवा रेल मंत्री द्वारा अपने उपर नैतिक जिम्मेदारी लिये है और न ही कोई इस्तीफा दिये है। सर्वप्रथम नैतिकता के आधार पर अजाद भारत के रेल-मंत्री लाल बहादूर शास्त्री द्वारा 1956 में तामिलनाडू के आरियालूर ट्रेन दुर्घटना से 142 रेल – यात्रीयों के मौत एवं 200 से अधिक गंभीर रूप से घायल होने पर अत्यन्त दुखी होकर तुरंत ही अपने पद से इस्तीफा दिये थे। इस संदर्भ पर भरी लोक-सभा में देश के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू  ने मानवीय संवेदनाओं एवं ईमानदारी से सतृप्त मानव लाल बहादूर शास्त्री को सम्मान भी किये थे। और इसी भारत-भूमि पर 1990 के रेल-मंत्री नीतिश कुमार द्वारा गैसल रेल दुर्घटना में 290 रेल-यात्रीओं की मृत्यु होई थी। इस दुखत घटना को अपने उपर जिम्मेदारी लेते हुए तुरन्त ही इस्तीफा दिये थे। वर्तमान समय के रेल-मंत्री द्वारा ठीक दुसरे दिन रेल हादसे का निरक्षण करते समय इस दुखत रेल दुर्घटना को तोड़-फोड़ की साजिश का सहारा लेकर बचने की कोशिश की जा रही है। मंत्री जी द्वारा अपनी नाकामी को छुपाने के लिए सी.बी.आई. की जाच की घोषणा की गई है।

हावड़ा से दोपहर 2 बजे हावड़ा चेन्नई (कोरोमंडल) की ओर जाने के लिए एक्सप्रेस ट्रेन छुटी और उडीसा के बालेश्वर (बालासोर) जिले के बाहानगा-बाजार रेल्वे स्टेशन में ढलती शाम 7ः20 बजे को 130 की.मी प्रति घंटे की तीव्र गति के साथ, प्रवश के आरंभ में ही लूप-लाइन में खड़ी हुई लौह-अयस्क से भरी हुई माल गाड़ी से टकराई, जिससे कोरोमंडल एक्सप्रेस की पांच डिब्बे बेपटरी होकर अप-लाईन (दुसरी पटरी) के पटरी में जा गिरी। उसी वक्त अप-लाईन पर विश्वेश्वरैया बैंगलुरू-हावड़ा एक्सप्रस भी 130 कि.मी. प्रति घंटे की तीव्र गति से आकर, पहले से गिरे हुए पंाच-डिब्बो से धड-धडाते हुए टकरा गई। धड़ाम से जोरदार आवाज की गूंज से पूरा बाहानगा-बाजार रेल्वे स्टेशन काप उठी और साथ ही चीख-पुकार की आवाजों से घटना स्थल स्तब्ध एवं दहल गया। कुछ ही क्षणों में घटना स्थल खून से सने हुये कटे हाथ-पैर और धड़ो की लाशों के साथ आर्तनाथ चीखों से माहौल बहुत ही ज्यादा गमनीन हो गया। इस दृश्य को देखकर कोई भी इंसान का दिल और दिमाग ठहर जायेगा। दर्दनाक-चीख-पुकार सुनकर स्थानीय बाहानगा निवासीओं (जैसे थे उसी हालात में) का दौड़कर आना और घायलों का मानव सेवा काल में तीव्रता और निरंतरता से जारी रखना एक अदभूत मानवीय – संवेदनाओं का दृष्य रहा। बाहानगा के निवासीयों का घटना स्थल से लेकर आस्पताल तक सेवा के लिए उठे हाथों को देखकर, हम-सभी, बाहानगा-बाजार के निवासीयों को नमन करते है। और साथ ही रेल्वे विभाग का राहत दल समय पर पहुच कर घायलों को तुरंत ही आस्पताल पहुचाते रहें एवं अन्य रेल्वे कर्मचारियों का दल रेल मार्ग को अविलंब सुधार कार्यो में रात-दिन अथक परिश्रम के जरिये प्रगति पर ला रहें है।

इस भीषण रेल दुर्घटना के पीछे रेल प्रशासन का कुप्रबंधन ही जिम्मेदार है। बाहानगा-बाजार रेल्वे स्टेशन का इंटर-लॉकिंग व्यवस्था (एक पटरी से दुसरी पटरी जाने के लिए) का हमेशा निरक्षण एवं सुधार कार्य नहीं करना लापरवाही को दर्शाता है। परिणाम स्वरूप कोरोमंडल एक्सप्रेस मेन पटरी से लूप-लाईन के पटरी में जाकर, पहल से मौजूद मालगाड़ी से टकरा गई। एवं कई वर्षो से रेल्वे लोको पायलेटों की भर्तीयां नहीं हो रहीं है। नतीजन वर्तमान समय में कार्यरत पायलेटांे से 16-20 घंटे लगातार कार्य लिये जा रहें, जिससे पायलेटों में कार्य क्षमता में कमी आना लाजमी है। एवं सभी कार्यरत पायलेटों को समय समय पर नये-नये रेल तकनीको से परिचय एवं प्रशिक्षण कार्य से प्रशिक्षित करनी चाहिए। वर्तमान समय के रेल मंत्री द्वारा पिछले वर्ष रेल प्रशासन द्वारा लाये गये नये रेल तकनीक को प्लास्टिक के रेल खिलौने से सार्वजनिक करते हुए बताया गया है कि  – एक ही पटरी पर भूलवश दो गाड़ियां आने के कारण सम्भावित दुर्घटना को रोकने के लिए, 400 मीटर दूरी पर दोनो ट्रेने अपने आप रूक जावेगी। जिससे भीषण रेल दुर्घटना से बचा जा सकता है। इसे स्वाचालित रेल सुरक्षा कवच प्रणाली कहा जाता है। 

वर्तमान समय में कुल 65000 किलो मिटर का सम्पूर्ण भारत में रेल नेटवर्क का कार्य है। इसमें मात्र 2 प्रतिशत रेल नेटवर्क को स्वचालित रेल सुरक्षा कवच प्रणाली से जोड़ा गया है। इस भीषण रेल दुर्घटना के प्रथम दृष्टि जाच के उपरान्त यह पाया गया है कि स्वचलित रेल सुरक्षा कवच प्रणाली का घटना स्थल पर नहीं पाया गया है। इसके अलावा हाई-स्पीड ट्रेन चलन के लिए बिमार ग्रस्त रेल पटरियों का अपग्रेडिंग का कार्य संतोषजनक स्थिति में नहीं है। वर्तमान समय के रेल पटरियों पर 80-90 कि.मी. प्रति घंटा की रफतार से ट्रेन चलती है। वहीं दुसरी ओर 130 कि.मी. प्रति घंटा की रफतार से ट्रनों को चलाना आपदा को निमंत्रण देना है। चल रही जाच रिपोर्ट में अन्य कारण भी स्पष्ट हो जायेंगे। रेल मंत्रालय में सिर्फ खाना पूर्ती एवं लिपा-पोती के कार्य से जनता दुखी है।

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