राजनीति

गुम हुए अन्ना, जुदा हुआ आंदोलन…..

इंजीनियर तपन चक्रवर्ती

भारतीय लोकतंत्र की ताकत है कि जनता को अपने उचित मांगो के लिए विरोध-प्रदर्शन के लिए देश के संविधान ने अधिकार जरूर दिये है। किंतु कुछ राजनैतिक दलों द्वारा अपने निहीत स्वार्थ साधने के लिए समर्पित समाज-सेवी व्यक्ति के जरिये आंदोलन व धरना प्रदर्शन करते है। जिससे-सरकार एवं जनता को परेशानीयों का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही घटना एक दशक से ज्यादा तकरीबन 12 वर्ष पहले 5 अपैल 2011 को दिल्ली के जंतर-मंतर मैदान में प्रसिद्ध समाजसेवी व उनके साथियों के साथ भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोकपाल अधिनियम बताने के लिए अनशन के साथ विराट धरना-प्रदर्शन के साथ आंदोलन की शुरूवात किये।

‘‘ 15 जून 1937 को किशन बाबूराव हजारे (अन्ना हजारे) महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगन सिद्धि में गरीब किसान परिवार में जन्म लिये। बचपन आर्थिक अभावों के चलते मात्र सातवीं दर्जे तक शिक्षा प्राप्त किये। घर में आर्थिक सहयोग के लिए फूल की दुकानों में काम भी किये ।1960 में अन्ना सेना में भर्ती हुए और सेना के कार्य से अन्ना हजारे दिल्ली आये थे। दिल्ली स्टेशन मे विवेकानंद जी के किताब पढ़कर उनके जीवन में गहरा असर पड़ा और आजीवन अविवाहित रहकर समाजिक कार्य के लिए दृढ़ संकल्पित हुए।

अपने लिये गये निर्णय के अनुसार 1975 में सेना की नौकरी से इस्तीफा देकर, अपने गांव ‘‘रालेगन-सिद्धि’’ आकर समाजिक कार्य में व्यस्त हो गये। सर्वप्रथम अन्ना हजारे सूखाग्रसित ‘‘रालेेगन-सिद्धि’’ मे वर्षा जल संग्रह के लिए अथक परिश्रम किये। उसके बाद अपने गांव को समृद्ध एवं स्वावलंबी बनाने के लिए, सौर उर्जा बायो गैस प्रयोग के अतिरिक्त पवन-उर्जा के उपयोग हेतू मिशन चलाकर अभूत पूर्व समाजिक कार्य किये। पूरा देश अन्ना हजारे को ‘‘वाटर-शेड-विकास पुरूष‘‘ के नाम से जानते हैं। चूकीं अन्ना का कहना है कि – भारत गांव में बसता है। सन् 1992 को अन्ना हजारे को उनके समाजिक कार्यो पर भारत – सरकार द्वारा ‘‘पदमविभूषण‘‘  से सम्मानित हुये। सन् 2000 को अन्ना हजारे द्वारा पूनः समाजिक आंदोलन ‘‘सूचना का अधिकार‘‘ अधिनियम बनाने के लिए अनशन  के साथ आंदोलन की शुरूवात किये। अंततः भारत सरकार द्वारा 2005 में ‘‘सूचना का अधिकार‘‘ अधिनियम को पूरे देश में लागू किया गया है। अन्ना हजारे के समाजिक आंदोलन से प्रभावित हुए राज्य सरकार महाराष्ट्र द्वारा ‘‘कृषि भूषण‘‘ अवार्ड, भारत सरकार द्वारा ‘‘पदम श्री‘‘ अवार्ड, शिरोमणी अवार्ड, इंदिरा प्रियदर्शनीय ‘‘वृक्ष-मित्र‘‘ अवार्ड के अलावा विदेशों से भी सम्मानित हुए।

देश के प्रगतिशील एवं स्थिर सरकार को अस्थिर एवं जनता को भ्रमित करते हुए, लोक-तंत्र की अधिकार को कुछ राजनैतिक दलों द्वारा निहीत स्वार्थ साधने के लिए दुरूपयोग करते आ रहें है। आदतन अनुसार सत्ता के लोलूप चंद मुट्ठी भर के छद्म राष्ट्रवादियों द्वारा देश को अस्थिर एवं जनता को परेशान करने के लिए, विख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे का सहारा लेकर गहरी साजिश रचा गया। 5 अप्रेल 2011 को अन्ना हजारे अपने साथियों के साथ, दिल्ली के जंतर-मंतर मैदान में भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल अधिनियम बनाने के लिए, अनशन के साथ धरना-प्रदर्शन एवं विरोध की शुरूवात किये। 8 अप्रेल 2011 को आंदोलन के बढ़ते प्रभाव को देखकर, भारत सरकार ने 16 अगस्त 2011 को मानसून सत्र में लोकपाल के नियम बनाने के वादे साथ, 9 अप्रेल 2011 को अन्ना द्वारा लगातार 98 घंटे के अनशन को तोड़ते हुए, अंदोलन समाप्ती की घोषण की गई। अन्ना हजारे एवं आंदोलनकारी लगातार भारत सरकार द्वारा बनाए जा रहे अधिनियम पर, एक-टक नजर बनाये रखे थे। भारत सरकार द्वारा 28 जुलाई 2011 को लोकपाल अधिनियम के प्रारंभिक स्वरूप को देश के सामने रखा गया। किंतु अन्ना हजारे एवं उनके समर्थको ने कमजोर लोकपाल बताकर आपत्ति दर्ज की। अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित मजबूत लोकपाल अधिनियम के दायरे में – प्रधान मंत्री एवं मुख्यमंत्री के अलावा सांसद, विधायक मंत्री, न्यायाधीश एवं सभी शासकीय अधिकारी भी रहेंगे।

अन्ना हजारे अपने समर्थकों के साथ 15 अगस्त 2011 के शाम को राजघाट में, गंभीर चिंतन के बाद यह निर्णय लिया गया है कि – 16 अगस्त 2011 को पुनः अनशन के साथ विरोध प्रदर्शन किया जावेगा। भारत सरकार द्वारा आंदोलन को रोकने के लिए अन्ना हजारे को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके, सात दिनों की न्यायिक हिरासत में तिहाड जेल भेज दिया गया, जंहा पर स्वयं हजारे अनशन पर बैठ गये और दुसरी तरफ अन्ना के समर्थकों के द्वारा 16 अगस्त 2011 को जंतर-मंतर मैदान में विरोध एवं धरना प्रदर्शन की शुरूवात कर की गई। इस विशाल विरोध धरना प्रदर्शन में बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, आशुतोष के अलावा अन्य प्रतिष्ठित नागरिक शामिल हुए। 03 दिनों के बाद भारत सरकार द्वारा दिये गये शर्तानुसार, जंतर-मंतर मैदान को छोड़कर, किसी अन्य जगह प्रदर्शन करने की अनुमति मिलने पर अन्ना हजारे रिहा हुए। तद्पश्चात्  18 अगस्त 2011 से पुनः अन्ना हजारे एवं उनके समर्थकों के साथ ‘‘रामलीला मैदान‘‘ में अनशन के साथ विरोध प्रदर्शन की तीखी हवाएं बहने लगी। जिससे भारत सरकार की चिंताये बढ़ने लगी। अंततः भारत सरकार को अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित भ्रष्टाचार विरोधी मजबूत लोकपाल अधिनियम को दोनों सदनों में स्वीकृति देते हुए, देश के राष्ट्रपति द्वारा लोकपाल अधिनियम को मंजूरी प्रदान कर दिये। 

अन्न हजारे के 22 दिनों की अनशन एवं धरना प्रदर्शन के उपरान्त ही भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल अधिनियम बनाने के लिए उनके उपलब्धियों में एक कडी और जुड़ गईं। गांधीवादी समाजसेवी हजारे को आंदोलन समाप्ति के बाद देश के सत्ता पर आसीन शासक द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर, भीषण मंहगाई एवं बेरोजगारी से त्रस्त एवं अराजकता से जकड़ा देश की दुर्दशा पर गहन चिंतन करना चाहिए। देश के स्थिर एवं प्रगतिशील सरकार के हाथों से अन्ना हजारे लगातार राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होते आयें है। किंतु आज सत्ता पर आसीन शासक द्वारा किये गये देश की दुर्दशा पर, गांधीवादी अनशनधारी अन्ना हजारे आखिर मौन क्यों हैं ?   

( यह लेख के निजी विचार है )

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