स्वास्थ्य

प्रारंभिक उपचार से संभव है रुमेटोलॉजी के रोगियों का पुनर्वास;एम्स में दो दिवसीय सिम्पोजियम

 0 एम्स में प्रति सप्ताह 150 से अधिक रोगी रुमेटोलॉजी के; अब सप्ताह में एक से बढ़कर तीन दिए तक चलेगा स्पेशल क्लिनिक

रायपुर, देशभर में रुमेटोलॉजी संबंधी रोगों जिनमें गठिया और वात के रोगी शामिल हैं, तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। प्रमुख विशेषज्ञों ने इसके लिए विभिन्न विभागों के संयुक्त प्रबंधन से रोगियों को त्वरित उपचार प्रदान कर शुरूआत में ही इसे ठीक करने पर जोर दिया है। एम्स में भी अब रुमेटोलॉजी के स्पेशल क्लिनिक की अवधि को एक दिन से बढ़ाकर तीन दिन किया जा रहा है।

इंडियन रुमेटोलॉजी एसोसिएशन, एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन इंडिया और एम्स के सामान्य चिकित्सा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में रुमेटोलॉजी पर राष्ट्रीय सिम्पोजियम का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता रुमेटोलॉजी एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. बी.जी. धर्मानंद का कहना था कि देशभर में बढ़ती जनसंख्या में गठिया और वात संबंधी रोगियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। जागरूकता की कमी की वजह से इन रोगों को पहचानने में देरी हो जाती है जिससे रोगी की स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती है।

उन्होंने कहा कि सुपर स्पेशियल्टी होने की वजह से इसमें विशेषज्ञों की भी कमी है। रुमेटोलॉजी ऑटोइम्यून श्रेणी के रोगों की श्रृंखला है जिसमें विभिन्न अंगों में विकृति के साथ ही आर्गन्स पर भी असर पड़ता है। अतः प्रारंभिक लक्षणों जैसे जोड़ों में दर्द, अकड़न के तुरंत बाद उपचार प्रारंभ कर देना चाहिए अन्यथा अंगों में विकृति संभव है।

अधिष्ठाता (अकादमिक) प्रो. आलोक चंद्र अग्रवाल ने कहा कि एम्स में सामान्य चिकित्सा विभाग और अस्थि रोग विभाग मिलकर रुमेटोलॉजी रोगियों को उपचार प्रदान करने के साथ ही अनुसंधान में भी संलग्न है। एम्स में साप्ताहिक रुमेटोलॉजी क्लिनिक के डॉ. जसकेतन मेहेर और डॉ. जयदीप सामंता ने बताया कि एम्स में प्रति सप्ताह औसतन 150 रोगी रुमेटोलॉजी संबंधी रोगों के आ रहे हैं। अब क्लिनिक की अवधि बढ़ाकर प्रति सप्ताह तीन दिन करने का निर्णय लिया गया है।

प्रो. विनय पंडित ने बताया कि सिम्पोजियम में देशभर के 200 से अधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया। इसमें एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़, निजाम हॉस्पिटल, हैदराबाद सहित विभिन्न एम्स के विशेषज्ञ भी शामिल थे। इसमें विभिन्न विभागों में रुमेटोलॉजी के संयुक्त प्रबंधन के बारे में विभिन्न विशेषज्ञों ने अपने अनुभवों को साझा किया।

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