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हर माह 5 करोड खर्च करने के बाद भी छत्तीसगढ़ के सघन जंगल में बाघ का कुनबा क्यों नहीं बढ़ रहा ?

रायपुर, देश के सबसे सघन जंगल एवं 44 फीसदी वन क्षेत्र वाले राज्य छत्तीसगढ़ में बाघों का संरक्षण चुनौती बनती जा रही है। हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद बाघ बढ़ने की बजाय कम हो रहे हैं। यहां वर्ष 2014 में 46 बाघ हुआ करते थे, मगर 2018 की गणना में बाघों की संख्या घटकर सिर्फ 19 रह गई।

राज्य में तीन टाइगर रिजर्व सीतानदी- उदंती, इंद्रावती और अचानकमार टाइगर रिजर्व है। इन तीनों ही टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल करीब 5555 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है। एक और गुरु घासीदस टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव है। राज्य के इन दो टाइगर रिजर्व इंद्रावती व सीतानदी उदंती उन इलाकों में हैं, जहां माओवादियों का प्रभाव है। इन स्थितियों में वन विभाग का अमला भी इन दोनों टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से बचता है।

जनकारों का कहना है कि राज्य में बाघों की संख्या में वृद्धि न होने का कारण जंगलों में उनकी निजता का अभाव है। जंगलों में पर्यटन के नाम पर लोगों की आवाजाही बहुत ज्यादा बढ़ गई है। इसके अलावा जंगली इलाकों में बढ़ती बसाहट भी बाघों की वंश वृद्धि रोकने का बड़ा कारण बन रही है। सरकार की ओर से टाइगर रिजर्व पर, जिस राशि को खर्च किया जाना बताया जा रहा है, वह आसानी से कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता। आज जरूरत इस बात की है कि टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बसे लोगों को हटाने की दिशा में सख्त कदम उठाए जाएं। साथ ही पर्यटन को ज्यादा बढ़ावा देने की बजाय बाघों को प्राइवेसी सुलभ कराई जाए, अगर ऐसा नहीं होता है तो यह संख्या और भी घट सकती है।

तीन वर्षों की अवधि में 183 करोड रुपए खर्च

सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि तीनों टाइगर रिजर्व में तीन वर्षों की अवधि में 183 करोड रुपए खर्च किए गए। यह राशि बाघों के संरक्षण, उनके लिए बेहतर सुविधाएं विकसित करने के मकसद से जंगल में वृद्धि और शाकाहार जंतुओं के इजाफे पर खर्च किए गए। एक तरफ जहां यह राशि खर्च की गइर्, वही दूसरी ओर बाघों की संख्या कम होती जा रही है। सरकार की ओर से जारी आंकड़े बताते हैं कि तीन साल में जहां 183 करोड़ रुपए खर्च किए गए, वही भाजपा के शासन काल के तीसरे कार्यकाल में चार साल में 229 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, उसके बावजूद बाघों की संख्या कम हुई थी।

दो बाघों की मौत

बाघों पर खर्च हो रही राशि की गणना की जाए तो हर साल 60 करोड़ रुपये का खर्च आता है, मतलब एक माह में पांच करोड़। देश के अन्य टाइगर रिजर्व में एक बाघ पर हर साल औसतन एक करोड़ रुपये खर्च होता है। इस तरह इस राज्य में खर्च होने वाली राशि के लिहाज से 60 बाघ होने चाहिए। लेकिन यहां सिर्फ 19 बाघ ही पाए गए थे। उसके बाद भी बस्तर में दो बाघों की मौत भी हो गई।

23 वर्ष की शंकरी का नाम लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में
नंदनवन की बाघिन शंकरी का नाम लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली बाघिन के रूप में दर्ज है। शंकरी ने 23 साल और छह महीने की उम्र में दम तोड़ा। वेटनरी डाॅ जयकिशोर जड़िया ने अंतिम समय तक शंकरी का इलाज किया था। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि रिकार्ड 2009-10 में बनाया था। गरियाबंद, मैनपुर क्षेत्र में भालू पकड़ने के फंदे में फंसी शंकरी कोे मैनपुर जंगल से रायपुर के नंदनवन में लाया गया था। तब उसकी उम्र महज पांच-छह साल थी। आमतौर पर जंगल से जू लाने के बाद कोई जंगली जानवर इतने ज्यादा दिनों तक नहीं जी पाता। डा. जड़िया ने बताया कि असम के चिड़ियाघर से नया रायपुर के जंगल सफारी में शेर के दो बच्चे रागिनी और शिवाजी लाए गए हैं। इनकी मां स्वाति पिछले साल 30 साल की उम्र में मरी है। वह जू में दुनिया में अब तक की सबसे ज्यादा समय तक जीने वाली जंगली शेरनी है।

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