राजनीति

आधी आबादी का पूरा जश्न………….

विश्व के सबसे ताकतवर कहे जाने वाले देश अमेरिका जहां 1776 से राष्ट्रपति चुने जाते रहे है उस देश में महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1920 याने 144 साल बाद मिला। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पुरुषों ने महिलाओं को समानता का अधिकार देने में हमेशा आनाकानी की है। सुखद बात ये भी है कि उन्ही पुरुष सत्तात्मक समाज ने ही महिलाओं को आगे बढ़ाने का साहस भी किया है।

इस बात का उल्लेख आज इसलिये किया जा रहा है क्योंकि गणेश चतुर्थी के दिन  नए संसद भवन में सबसे पहला नया बिल महिला नारी शक्ति वंदन  बिल प्रस्तुत हो गया है। इस बिल के कानून बनने के बाद  लोकसभा, विधानसभाओं में कुल सीट के 33 प्रतिशत सीट महिलाओ के लिए सुरक्षित हो जाएगी।  राजनीति में हर विषय की टाइमिंग देखी जाती है। 2024 के लोकसभा चुनाव सहित आगामी एक साल में होने वाले 12 राज्यो के विधानसभा चुनाव होने वाले है। आधी आबादी का मन इस 33 प्रतिशत आरक्षण को किस रूप में लेंगे ये तो आगामी चुनाव के परिणाम बताएगा, लेकिन महिला आरक्षण  तुरुप का पत्ता साबित होगा। यदि  महिला आरक्षण संबधी बिल जल्दी ही कानून का रूप ले लेता है और आगामी विधानसभा चुनाव में प्रभावशील हो जाता है तो चुनाव लड़ने वाली राजनैतिक पार्टियों के समीकरण बदल जाएंगे।

 देश मे 1952 से लोकसभा और राज्यो के विधानसभा चुनाव के साथ ही महिलाओं  का प्रतिनिधित्व आरंभ हो गया था। 1952 में जहां केवल 24 महिलाएं चुनाव जीतकर आयी थी वह 2019 के लोकसभा चुनाव में 78 याने तीन गुना प्रतिनिधित्व बढ़ गया लेकिन आधी आबादी को पूरा प्रतिनिधित्व देने के मामले  पुरूष सत्तात्मक पार्टियां चुप्पी साधी हुई थी। ऐसा नही है कि महिलाओं को आरक्षण देने के संबंध में प्रयास नहीं हुए, प्रयास हुए लेकिन ईमानदारी नहीं थी।इसका भी कारण था 1991 से लेकर 2008 तक किसी भी सरकार के पास स्पष्ट बहुमत नही था। गठबंधन की सरकारों में अनेक दल ऐसे थे जिन्हें महिला आरक्षण से परहेज था। कम से कम समाजवादी और राष्ट्रीय जनता दल इस मामले में मुखर थे, उनके ही हठधर्मिता के चलते कांग्रेस शासनकाल में महिला आरक्षण बिल, बिल ही रहा। राज्यसभा में पारित होने के बावजूद लोकसभा में आया ही नहीं। हर राजनैतिक दल को ये हक़ होता है कि वह सत्ता में बने रहने के लिए प्रयोग करते रहे। सफलता  कैसे मिलेगी ये मतदाता पर निर्भर करता है। 

1991 में भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव( जिन्हें मणि शंकर अय्यर पहला भाजपा प्रधानमंत्री बताते है) ने  बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए संभावनाओं के द्वार खोले इसके बाद महिलाओं के रोजगार के जो अवसर निजी क्षेत्र में बने उससे अगले तीन दशक में फिजा ही बदल गयी है। खेती किसानी से लेकर अंतरिक्ष तक  महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ते गया।संघ लोक सेवा आयोग की पिछली दो परीक्षाओं में पहले तीन स्थान में महिलाओं का आना महिलाओं की सशक्तिकरण को प्रमाणित करता है। देश के प्रथम नागरिक याने राष्ट्रपति पद पर आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचित होना पूर्व में ही संकेत था कि  प्रधानमंत्री  राजनीति के बिसात पर ऐसे मोहरे लेकर आएंगे जो सामने वाले को मजबूर कर देंगे कि बराबरी करो या हारो।

 कल  लोकसभा में बिल पर चर्चा होने के बाद आम सहमति बनना तय है साथ ही राजसभा में इस बिल को सर्वसम्मति मिलना तय है क्योंकि हर पार्टी के पास विकल्प ही नही है।सभी अपना  समर्थन इतिहास दोहरा रहे है इससे समर्थन की पुष्टि होती है। क्या ये मान लिया जाए कि महिला आरक्षण बिल के कानून बनने के बाद आगामी  चार राज्यो मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ के चुनाव में नया  परिदृश्य दिखेगा?  क्या महिला आरक्षण बिल के बदौलत वन नेशन वन  इलेक्शन      अगला पड़ाव बनेगा और शायद इन चारों राज्यो के चुनाव  तय शुदा समय मे न होकर आगे बढ़ जाएगा?

 जो भी हो लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के रूप में चुनाव में आधी आबादी अपने 33 प्रतिशत सफलता का आज पूरा जश्न मना सकती है। अगर अगले लोकसभा, विधानसभा चुनाव 33 प्रतिशत आरक्षण  के साथ हुए तो अनेक पुरुष दिग्गजों को  लोकसभा, विधानसभा क्षेत्र से बैठे बैठाए नुकसान होना तय है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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Narayan Bhoi

Narayan Bhoi is a veteran journalist with over 40 years of experience in print media. He has worked as a sub-editor in national print media and has also worked with the majority of news publishers in the state of Chhattisgarh. He is known for his unbiased reporting and integrity.

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