राज्यशासन

छत्तीसगढ की सियासत ‘कही-सुनी’

रवि भोई

छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री का फार्मूला

कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में किसी आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। वैसे अभी भी सर्वमान्य नेता के तौर पर डॉ रमन सिंह की चर्चा ज्यादा है, लेकिन दिल्ली के नेता पुराने चेहरों को कमान सौंपने के पक्ष में नहीं हैं। इस कारण पेंच फंस रहा है। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह मुख्यमंत्री बनेंगे या उनकी सहमति से किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। ऐसे में विष्णुदेव साय के नाम पर सहमति बनने की संभावना ज्यादा व्यक्त की जा रही है। विष्णुदेव साय कई बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। वे साफ़ सुथरी छवि के साथ सहज और सरल भी हैं। मुख्यमंत्री की दौड़ में आदिवासी नेता रामविचार नेताम और रेणुका सिंह भी हैं, लेकिन इनके नाम पर आम सहमति बन पाने की संभावना कम नजर आ रही है। माना जा रहा है कि भाजपा 2024 के लोकसभा और ओडिशा एवं झारखंड विधानसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरा का दांव खेलना चाहती है। माना जा रहा है कि आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की स्थिति में किसी ओबीसी नेता को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इसके लिए अरुण साव का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। अरुण साव अभी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं और साहू समाज से आते हैं। बताते हैं इस बार साहू समाज ने दिल खोलकर भाजपा का साथ दिया है। बताया जा रहा है कि रविवार या सोमवार को छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लग जाएगी।

ओपी चौधरी तो मंत्री बनेंगे ही ?

कहा जा रहा है कि ब्यूरोक्रेट से राजनेता बने ओपी चौधरी भले मुख्यमंत्री न बने, मंत्री तो जरूर बनेंगे ? चुनावी सभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा चौधरी को बड़े आदमी बनाने के फार्मूले के बाद यह धारणा प्रबल हो गई है। केदार कश्यप, लता उसेंडी, विजय शर्मा, गजेंद्र यादव के भी मंत्री बनने की चर्चा है। माना जा रहा है इस बार भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल में आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व ज्यादा होगा। इस बार अनुसूचित जाति वर्ग से एक ही नेता को मंत्री बनाए जाने की संभावना है। पुन्नूलाल मोहले या दयालदास बघेल का नंबर फिर लग सकता है। अग्रवाल-जैन समुदाय से एक ही मंत्री बनाए जाने की चर्चा है। इस वर्ग से किसी एक को विधानसभा अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। खबर है कि कैबिनेट में दो महिलाएं भी हो सकती हैं।

सुबोध सिंह के पीएस सीएम बनने की चर्चा

1997 बैच के आईएएस सुबोध सिंह के पीएस सीएम बनने की चर्चा है। सुबोध सिंह अभी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के महानिदेशक हैं। वे 2019 से केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। सुबोध सिंह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही दिल्ली चले गए थे। ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा ,रजतकुमार, मुकेश बंसल जैसे छत्तीसगढ़ कैडर के अफसर अब वापस आ जाएंगे। निहारिका बारीक़ को अब अच्छी पोस्टिंग मिलने की संभावना है। भाजपा सरकार में सुब्रत साहू पर गाज गिर सकती है। भूपेश बघेल की सरकार में सुब्रत साहू पावरफुल अफसर थे। माना जा रहा है कि नई सरकार एसीएस रेणु पिल्लै को भी मुख्यधारा में नहीं रखेगी। नई सरकार में आईएएस अफसरों में कई बदलाव की चर्चा है। कई कलेक्टर और एसपी भी फील्ड से मंत्रालय में आएंगे।

डीजीपी के बदले जाने की सुगबुगाहट

विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा के नेताओं ने चुनाव आयोग से डीजीपी अशोक जुनेजा की शिकायत की थी। इस कारण राज्य में सरकार के बदलाव के साथ ही डीजीपी के बदले जाने की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है। वैसे तो अशोक जुनेजा 60 साल के हो गए हैं, पर तकनीकी कारणों से वे डीजीपी के पद पर बने हैं। माना जा रहा है कि तकनीकी पेंच नहीं फंसा तो भाजपा सरकार अशोक जुनेजा की जगह किसी दूसरे अफसर को डीजीपी के पद पर बैठा सकती है। वैसे तो अशोक जुनेजा के बाद 1990 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा सबसे वरिष्ठ हैं। राजेश मिश्रा भूपेश सरकार में लूप लाइन में ही रहे, लेकिन वे जनवरी 2024 में रिटायर हो जाएंगे। सरकार चाहे तो सेवाविस्तार के साथ जिम्मेदारी सौंप सकती है। इनके बाद 1992 बैच के आईपीएस अरुण देव गौतम और पवन देव हैं। कहा जा रहा है कि पवनदेव के खिलाफ एक जांच का निपटारा न होने के कारण मामला फंस सकता है, ऐसे में नए डीजीपी के लिए अरुण देव गौतम का पलड़ा भारी रह सकता है।

हार के बाद निशाने पर भूपेश और सिंहदेव

राज्य में कांग्रेस की पराजय के बाद नेताओं और कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूटने लगा है। बृहस्पत सिंह जैसे कुछ लोग खुले आम टीएस सिंहदेव को निशाने पर ले रहे हैं, तो अमरजीत भगत जैसे लोग परोक्ष रूप से अपने प्रतिद्वंद्वियों को निशाने पर ले रहे हैं। भूपेश बघेल से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले एक पूर्व मंत्री हार का ठीकरा कामचलाऊ मुख्यमंत्री पर फोड़ रहे हैं। चुनाव में हार सिंहदेव के लिए नीम का काढ़ा जैसा हो गया है। वे 94 वोटों से हार को न तो पचा पा रहे हैं और न ही उगल पा रहे हैं। यह हार रविंद्र चौबे के लिए सदमा जैसा है। एक गैर राजनीतिक व्यक्ति ने उन जैसे अनुभवी और चतुर राजनीतिक खिलाड़ी को पटखनी दे दी। 2023 का चुनाव परिणाम कांग्रेस -भाजपा के कई नेताओं को बड़ा सबक सीखा गया और घमंड को चूर-चूर कर दिया।

एससी सीटों में दांवपेंच से बची कांग्रेस

कहते हैं कांग्रेस अनुसूचित जाति बहुल विधानसभा सीटों में आखिरी क्षण में खेला करने में कामयाब रही, नहीं तो कांग्रेस को 35 सीटें भी नहीं मिलती। खबर है कि कांग्रेस सराईपाली से सारंगढ़ होते जांजगीर-चांपा और बिलासपुर जिले के एससी सीटों में घुसी और दांव चला, उसे कामयाबी मिली। इन इलाकों के एससी सीटों में रणनीतिक दांवपेंच से कांग्रेस के वोट न तो बसपा के प्रत्याशी ज्यादा काट सके और न ही जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार। खबर है कि दूसरे चरण में एससी वोटरों को साधने के कारण ही चंद्रपुर और कसडोल जैसे विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के कब्जे में आ गए । बताते हैं एससी सीटों में भाजपा का मिशन फेल हो गया।

कौन बनेगा नेता प्रतिपक्ष ?

भूपेश बघेल नेता प्रतिपक्ष बनेंगे या डॉ चरणदास महंत, यह सवाल लोगों के जेहन में तैर रहा है। कांग्रेस के विधायकों में ये दो लोग ही काफी अनुभवी हैं। 2003 में मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद अजीत जोगी नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे, पर हाईकमान ने महेंद्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष बना दिया। भूपेश बघेल निवर्तमान मुख्यमंत्री हैं। वैसे मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद कमलनाथ काफी दिनों तक नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाते रहे। डॉ चरणदास महंत पांच साल तक विधानसभा अध्यक्ष थे। विधानसभा अध्यक्ष रहने के बाद धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष बने थे। यह अलग बात है कि कौशिक पांच साल नेता प्रतिपक्ष नहीं रहे। पार्टी ने उन्हें बदल दिया था।

इतिहास की पुनरावृति

कहते हैं इतिहास की पुनरावृति होती है। छत्तीसगढ़ में 2023 का चुनाव परिणाम 2003 जैसा ही रहा। 2003 में भी हर किसी की जुबान पर कांग्रेस की सरकार बनने की बात निकलती थी। अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस 37 सीटों में निपट गई। 2023 में भी कांग्रेस की सरकार बनने की बात होती रही। एक्जिट पोल में भी यहां कांग्रेस की सरकार की संभावना व्यक्त की गई थी, लेकिन 54 सीटों के साथ भाजपा की सरकार बन गई। वास्तविकता का आंकलन करने की जगह कांग्रेस 75 पार के नारे लगाने में जुटी रही। 2003 में भी 70 पार के ख्वाब में कांग्रेस की नाव डूब गई थी। तब अजीत जोगी के ऊपर सीबीआई तलवार लहरा रही थी। इस बार ईडी का भूत भूपेश बघेल को डरा रहा था।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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