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चलो सिविलियन अवार्ड लौटाते है, नहीं लेते है !

हर देश में अपने उत्कृष्ट नागरिकों को उनके  प्रेरणास्पद कार्यों के लिए  नागरिक अलंकरण पुरस्कार की व्यवस्था रखती है। हमारे देश में 1954से ऐसे अलंकरण पुरस्कार के रूप में भारत रत्न, पद्म विभूषण पद्म भूषण और पदम श्री पुरस्कार रखे गए है जो  हर वर्ष (को छोड़कर) हर क्षेत्र में  उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। स्वाभाविक है कि ऐसे लोग देश के अन्य नागरिकों के लिए प्रेरणा बनते है। अब तक लगभग 5102 (48भारत रत्न, 334पद्म विभूषण, 1292पद्म भूषण,3478 पद्मश्री) व्यक्ति नागरिक अलंकरण पुरस्कार से सम्मानित हो चुके है।

 ऐसे पुरस्कार को पाना निश्चित रूप से बड़ी बात होती है लेकिन इससे भी बड़ी बात इस प्रकार के पुरस्कार को वापस करने या न  लेने की भी होती है। हाल ही में  भारतीय कुश्ती संघ में हुए विवाद के चलते बजरंग पुनिया और पैरा ओलंपियन वीरेंद्र यादव ने  अपने पद्म श्री पुरस्कार को लौटाने की घोषणा की है।

 नागरिक सम्मान पुरस्कार को लौटाने या न  लेने के पीछे  किसी विषय विशेष के प्रति विरोध का   चरमोत्कर्ष ही होता है अन्यथा इतने लोगो में से उंगलियों में गिनने लायक लोग सम्मान लौटाने या इनकार करने वाले नहीं होते। इसी कारण जब  पुरस्कार लौटाने या  न लेने की बात आती है तो मीडिया में सुर्खियां भी बनती है। पक्ष विपक्ष में भी बाते होती है। आजकल दलीय राजनीति भी चरम पर है तो राजनीतीकरण भी दौड़ लगाती है।वैसे नागरिक अलंकरण पुरस्कार न  लेने  या वापस करने  दौर इसके शुरुवाती साल1954से ही शुरू हो गया था।आशादेवी आर्यनयकम ने 1954में ही पद्म श्री लेने से इंकार कर दिया था।

भारतरत्न पुरस्कार 1992में सुभाष चंद्र बोस को दिया गया था लेकिन उनके परिवार वालों ने लेने से इंकार कर दिया क्योंकि वे मानते है कि सुभाष चन्द्र बोस का राष्ट्रीय मूल्यांकन करने में बहुत देर हो चुकी है। दो व्यक्ति एच एन कुंजरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारत रत्न इस कारण नहीं लिया था  कुंजरू नामंकित गणतंत्र में ऐसे सम्मान का विरोध किया था और आजाद ने चयन समिति के सदस्य होने के नाते इनकार कर दिया था। 

*पद्म भूषण वापस लौटाने वाले व्यक्ति

भारत ने नागरिक अलंकरण पुरस्कार के रूप में पद्म भूषण लौटाने का कार्य सांसद और हिंदी भाषी लेखक सेठ गोविंद दास के साथ शुरू हुआ। राजभाषा अधिनियम 1963 के विरोध में गोविंददास ने 1968में पद्म भूषण पुरस्कार वापस करने की घोषणा कर दी थी। उनके बाद राजभाषा अधिनियम 1963के विरोध में लेखक वरंदावन लाल वर्मा ने भी पद्म भूषण पुरस्कार लौटा दिया।

1971 में बाबा आमटे ने सरदार सरोवर में आदिवासियों के विस्थापन के विरोध में  पद्म भूषण पुरस्कार वापस कर दिया था।कन्नड़ लेखक शिवराम कारंत ने 1968में पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त किया था लेकिन आपातकाल के विरोध में1975में पद्म भूषण लौटा दिया।कृष्ण कुमार बिरला 1976,खुशवंत सिंह 1984,सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रमोहन 1990,सत्यपाल डांग 2005,पुष्यमित्र भार्गव2015सुखदेव सिंह ढिंडिया2020में पद्म भूषण पुरस्कार वापस करने का कार्य कर चुके है

पद्म श्री लौटाने वाले व्यक्ति

 गोपाल प्रसाद व्यास ने 1968 में राजभाषा अधिनियम 1963के विरोध में पद्म श्री पुरस्कार वापस करने की घोषणा की थी।  मैला आंचल के लेखक फणीश्वर नाथ रेणु ने आपातकाल के विरोध में 1975में पुरस्कार वापस कर दिया था। अख्तर मोइनुद्दीन को 1968में पद्म श्री मिला था। मकबूल बट्ट के फांसी के विरोध में पद्म श्री वापस कर दिया था। साधु सिंह हमदर्द को 1984जनवरी में पद्म श्री मिला था। आपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में छः माह बाद ही पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी। कैफ़ी आज़मी 2001, रतन थियाम 2001,रंजीत कौर तिवाना2015,जयंत महापात्रा2015, ईशम श्याम शर्मा2019, मुज्तबा हुसैन2019ने भी कारण बताते हुए पद्म श्री पुरस्कार वापस किया है। इस सूची में बजरंग पुनिया और  वीरेंद्र यादव का नाम भी 2023के जाते जाते शामिल हो गया ।

* पुरस्कार न लेने वाले व्यक्ति अलग ही रहे या तो उन्हे लगा कि नियम विपरीत पुरस्कार मिल रहा है या फिर वे जिस सम्मान के हकदार है उससे कमतर आंका गया है।

 भारत रत्न पुरस्कार लेने से इंकार करने वाले

भारतरत्न पुरस्कार 1992में सुभाष चंद्र बोस को दिया गया था लेकिन उनके परिवार वालों ने लेने से इंकार कर दिया क्योंकि वे मानते है कि सुभाष चन्द्र बोस का राष्ट्रीय मूल्यांकन करने में बहुत देर हो चुकी है। दो व्यक्ति एच एन कुंजरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारत रत्न इस कारण नहीं लिया था  कुंजरू नामंकित गणतंत्र में ऐसे सम्मान का विरोध किया था और आजाद ने चयन समिति के सदस्य होने के नाते इनकार कर दिया था।

*पद्म विभूषण न लेने वाले व्यक्ति

 पी एन हक्सर1973, ई एम एस नंबूदरी पाद1992,स्वामी रंगनाथन सहित स्व लक्ष्मी चंद जैन के परिवार ने मरणोपरांत  पद्म विभूषण पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था।

 पद्म भूषण पुरस्कार न लेने वाले व्यक्ति

सिसिर कुमार भादुड़ी1959, सी एस धुर्य1959,निखिल चक्रवर्ती1990, रोमिल थापर1992, के.सुब्रमणियम1999,केशव महेंद्रा 2002, दत्तोपंत ठेंगड़ी2003,सिद्धराज ढड्ढा 2005, कृष्णा सोबती2010और एस जानकी 2013में पद्म भूषण पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जे एम वर्मा के परिवार ने 2013में  मरणोपरांत पद्म भूषण पुरस्कार लेने से ये कह कर इंकार कर दिया कि उनका कार्य दायित्व था जिसका भुगतान मिल चुका है।

पद्म श्री लेने से इंकार करने वाले व्यक्ति

आशादेवी आर्यनायकम1954,काशी प्रसाद पांडे1967,कालीचरण पटनायक1974,तारापार चक्रवर्ती1974,हेमंत मुखर्जी1998,दीपक स्वराज गार्डी  2002,मयोमी राजसोम  गोस्वामी2002 चंद्रप्रकाश सैकिया 2002,कनकसेना डेका 2005,कुंतागोड़ी विभूति2005,सुकुमार अझिकोड2007,सलीम ख़ान 2015,दाऊदी बोहरा(मरणोपरांत परिवार द्वारा,) बी.जयमोहन2016,विलायत खान2017,सिद्धेश्वर स्वामी2018,गीता मेहता 2019,संध्या मुखर्जी2022अनिंदो चटर्जी2022,

 कोई भी भले ही अपना अलंकरण पुरस्कार वापस करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन इसे देने के बाद वापस नहीं लिया जाता है। एक बार विजेता का नाम राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद संशोधन की कोई प्रक्रिया नही है।ये जरूर है कि राष्ट्रपति किसी  नागरिक अलंकरण से पुरस्कृत व्यक्ति के आपराधिक कदाचार की विधिक पुष्टि होने के बाद राष्ट्रीय सम्मान को रद्द कर सकता है।

स्तंभकार -संजय दुबे

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