राज्यशासन

छत्तीसगढ की सियासत ‘कही-सुनी’

रवि भोई

छत्तीसगढ़ की साख पर बट्टा कहा जा रहा है बलौदाबाजार की घटना से छत्तीसगढ़ की साख पर बट्टा लग गया। एक जमाना था जब छत्तीसगढ़ को शांति का टापू कहा जाता था। फिर नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ को तार-तार किया। अब कलेक्टोरेट-एसपी दफ्तर जलाने का दाग छत्तीसगढ़ पर लग गया। कलेक्टोरेट-एसपी दफ्तर जिले की जान होती है, वही सुरक्षित नहीं रह पाया। सरकार वहां के कलेक्टर और एसपी को सस्पेंड तो कर दिया, पर राज्य में बैठे आला अफसरों की भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है। चर्चा है कि पुलिस के ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी के कारण इतनी बड़ी घटना हो गई। कहते हैं पुलिस के छोटे से लेकर बड़ा अफसर तक का जनता से संपर्क टूट गया है। वे न तो लोगों से मिलते हैं और न ही लोगों का फोन उठाते हैं। पुराने समय में पुलिस के छोटे से बड़े अधिकारी लोगों से व्यक्तिगत संपर्क रखते थे और उन्हें सटीक सूचना मिल जाती थी। अब तो मैसेज-मैसेज खेल का जमाना आ गया है। इस कारण पुलिस को शहर के नब्ज का सही अंदाजा नहीं हो पा रहा है। बलौदाबाजार जैसी घटना पुलिस के पास सटीक सूचना न होने का नमूना है। बलौदाबाजार की घटना से पुलिस सबक ले और कार्यप्रणाली में बदलाव लाए। नए के साथ पुराने और टेस्टेड सिस्टम को अपनाए।

तीन की लड़ाई में तोखन को फायदा

कहते हैं न दो की लड़ाई में तीसरे को फायदा,ऐसा ही कुछ हो गया छत्तीसगढ़ से केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व को लेकर। केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान के लिए बृजमोहन अग्रवाल, संतोष पांडे और विजय बघेल सशक्त दावेदार थे। तीनों की मजबूत दावेदारी थी। कहते हैं तीनों में किसी एक को केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया जाता तो राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा जाते। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिलासपुर के सांसद तोखन साहू को कैबिनेट के लिए चुन लिया। तोखन साहू को मंत्रिमंडल में शामिल करने से सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी वाली कहावत चरितार्थ हो गई। इसके साथ एक पंत दो काज वाला मामला भी फिट हो गया। तोखन साहू को मंत्री बनाकर छत्तीसगढ़ में साहू समाज को भी खुश कर दिया गया। बताते हैं चुनाव से पहले साहू समाज लोकसभा में अपने समाज से एक ही व्यक्ति को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने से नाखुश था। साहू समाज को परंपरागत रूप से भाजपा का वोटर माना जाता है।

दीपक बैज को बदलने की सुगबुगाहट

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को बदलने का हल्ला है। दीपक बैज को मोहन मरकाम की जगह छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। दीपक बैज के प्रदेश अध्यक्ष रहते कांग्रेस को विधानसभा में भी हार का सामना करना पड़ा। दीपक बैज खुद भी विधानसभा चुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव में भी परफॉर्मेंस अच्छा नहीं रहा। लोकसभा में कांग्रेस केवल एक सीट कोरबा ही जीत सकी। कहते हैं कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता दीपक बैज की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए एक महिला नेत्री को राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलवाने ले गए थे, पर बात कुछ बनी नहीं। कहा जाता है जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी तब महिला नेत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दो ध्रुव थे। समय बदला तो दोनों का गणित एक जैसा हो गया है। अब देखते हैं आने वाले दिनों में क्या होता है ?

सुर्ख़ियों में बृजमोहन अग्रवाल

रायपुर लोकसभा क्षेत्र से रिकार्ड मतों से सांसद चुने गए राज्य के शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सुर्ख़ियों में हैं। लोग कयासबाजी में जुटे हैं कि बृजमोहन अग्रवाल सांसद की भूमिका में रहेंगे या फिर विधायक-मंत्री। बृजमोहन अग्रवाल के पास अपनी भूमिका तय करने के लिए कुछ दिन है। कहते हैं नियमानुसार लोकसभा निर्वाचन की अधिसूचना जारी होने के 14 दिनों के भीतर बृजमोहन अग्रवाल को एक सदन की सदस्यता को चुनना होगा। आठ बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल राज्य के वरिष्ठ और जमीनी नेता हैं। बृजमोहन अग्रवाल 1990 में पहली बार विधायक चुने गए और संयुक्त मध्यप्रदेश में मंत्री बने। बृजमोहन अग्रवाल पार्टी लाइन पर चलने वाले नेता माने जाते हैं और ऐसे नेताओं की भूमिका का निर्धारण पार्टी हाईकमान करती है।

रीना कंगाले को अच्छी पोस्टिंग की चर्चा

2003 बैच की आईएएस रीना बाबा साहेब कंगाले को विष्णुदेव साय की सरकार में जल्द अच्छी पोस्टिंग की चर्चा है। रीना कंगाले अभी राज्य की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी हैं। विधानसभा और लोकसभा निपटने के बाद अब मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पास कोई ख़ास काम नहीं रह गया है। सरकार ने अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी नीलेश क्षीरसागर को कांकेर का कलेक्टर बना ही दिया है। पहले भी मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पास सरकार में चार्ज रहे हैं। इस कारण माना जा रहा है कि रीना कंगाले को मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के साथ मंत्रालय में कोई अच्छा विभाग मिल सकता है। भूपेश बघेल की सरकार रीना कंगाले के पास कुछ दिनों तक महिला बाल विकास विभाग रहा। फिर वे अवकाश पर चली गई थी। छुट्टी से लौटने के बाद कोई ख़ास विभाग नहीं मिला और उन्हें मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बना दिया गया। इस कारण भी भाजपा सरकार में उन्हें अच्छी पोस्टिंग मिलने की चर्चा है। रमन सरकार में उन्हें अच्छे विभाग मिले थे।

प्रशासनिक फेरबदल की कयासबाजी

मंत्रालय से लेकर जिलों में प्रशासनिक फेरबदल की कयासबाजी चल रही है। माना जा रहा है कि कई जिलों के कलेक्टरों के साथ मंत्रालय में कई अफसरों के विभागों में हेरफेर हो सकता है। कई जिलों के पुलिस अधीक्षक में बदले जा सकते हैं। कहते हैं बलौदाबाजार की घटना के बाद सरकार प्रशासनिक चुस्ती पर नजर दौड़ानी शुरू कर दी है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले हफ्ते कुछ प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। वैसे मुख्यमंत्री ने विभागवार समीक्षा भी शुरू कर दी है।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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