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दक्षिण अफ्रीका के हार के मायने………….

 किंग्सटन में खेले गए टी 20 के फाइनल मैच में दक्षिण अफ्रीका ,भारत से सात रन के अंतर से हार गया। पूरे टूर्नामेंट में दक्षिण अफ्रीका, भारत के समान ही अपराजित  रहा था और फाइनल के सोलह ओवर तक भी उनकी उम्मीद बरकरार थी।

क्रिकेट, अनिश्चितता का खेल है, ये फिर सिद्ध हुआ और पासा पलटा, जीतती टीम हार गई और हारती टीम जीत गई। दक्षिण अफ्रीका के चार बल्लेबाज क्लासेन, डिकॉक, स्टबस और मिलर ने 142 करोड़ भारतीयों के हाथ पांव फूला दिए थे।  गनीमत है कि भारतीय क्षेत्र रक्षकों ने इनमे से किसी को भी मौका नहीं दिया अन्यथा जश्न दक्षिण अफ्रीका मनाता और हम मातम पीटते । क्लासेन तो मानो रुकने का नाम ही नही ले रहे थे, डिकॉक, विराट कोहली जैसे खिलाड़ी है , रुक कर खेलना उनकी खासियत है लेकिन वे भी जाल में फंसे। अंततः भाग्य का गच्चा फिर खा गए लेकिन इस बार दक्षिण अफ्रीका ने अपने ऊपर लगे चोकर या पनौती के लेबल को हटाने में सफलता हासिल की। 

1991 से दक्षिण अफ्रीका को क्रिकेट में फिर से प्रवेश मिला था इसके बाद से सीमित ओवर के मैच में वे अच्छा खेलने के बावजूद बुरे तरीके से हार जाते थे।  सेमीफाइनल में उनके सफर खत्म होने की गारंटी रहती थी। इस बार फाइनल पहुंचे है तो भविष्य में जीतेंगे भी। दक्षिण अफ्रीका ,अंग्रेजों की दासता से निकला हुआ देश है और इस देश की टीम में अभी भी  यहां के मूल निवासियों का प्रतिनिधित्व कम है। आने वाले समय में दूसरी वेस्ट इंडीज की टीम का जन्म यहां होगा।

 दक्षिण अफ्रीका के आधे से ज्यादा खिलाड़ी भारत में आईपीएल खेलते है। एक हद तक उनके साथ खेलने का फायदा भारत को मिला तो नुकसान उन्हे हुआ।  अंत  में बात खेल भावना की तो ओलंपिक का आदर्श वाक्य है कि जीतो तो गर्व नहीं हारो तो शर्म नही। सात रन से फाइनल हारना ,जीत से कुछ दूर ही रहना है। दक्षिण अफ्रीका के कप्तान सहित सभी खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन के लिए बधाई, शुभकामनाएं। भविष्य उनका भी है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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