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CROWD; भीड़ का उन्माद भीड़ ही जानती है !…

कालम

कर्नाटक की राजधानी में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरू के जीत के जश्न में  भीड़ के अनियंत्रित व्यवहार के चलते क्रिकेट की टीम 11 खिलाड़ियों के संख्या के बराबर ही क्रिकेट प्रेमियों की जान चली गई। कितने लोग घायल हुए है। उनकी प्रमाणित संख्या का अता पता नहीं है। इस घटना का तत्काल प्रभाव ये पड़ा कि पुलिस के बड़े अधिकारी निलंबित कर दिए  गए। कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन सहित रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरू की टीम, प्रबंधन सहित  इवेंट का आयोजन करने वाली कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। 11मृतकों को कर्नाटक सरकार और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरू के मालिकों ने 10-10 लाख रुपए देने की घोषणा कर दी है। कुल मिला कर  डेमेज कंट्रोल के सारे नुस्खे आजमा लिए गए है।
भगदड़ में हुई मौत पर राजनीति होना कोई नई बात नहीं है। इस घटना पर भी पक्ष विपक्ष में बयानबाजी चल रही है। कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और आगामी मुख्यमंत्री डी .शिव कुमार  के दो स्वतंत्र गुट है। इनके बीच अघोषित प्रतिद्वंदिता है। चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर घटी घटना का राज्य की राजनीति में रोटी सेकेगी। ऐसा माना जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि जीत का जश्न नही मनाया जाता है। परंपरा है, विदेशों में तो जीत का विक्ट्री परेड ही एक जश्न होता है। खासकर फुटबॉल में विश्व विजेता  टीम के स्वागत में लाखों लोग जुटते है। विक्ट्री परेड आज की नहीं, जब से दुनियां में ओलंपिक खेलों का आयोजन शुरू हुआ है तब से चल रहा है। जीत का जश्न मन रहा है। दीगर खेलो में विश्व स्तरीय टूर्नामेंट शुरू हुए तो इनके भी विश्व विजेताओं का देश, खिलाड़ियों के नगरों में जश्न मना है। ऐसा माना जाता है कि जीत प्रेरणा देती है, राष्ट्र भावना को बढ़ाती है। देश का झंडा विश्व व्यापी हो जाता है। खिलाड़ी, महानायक हो जाते है।
भारत में बड़े पैमाने पर जश्न मनाने का मौका ज्यादा नहीं रहा। आजादी के बाद सीमित थे। यद्यपि 1948, 1952, 1956  और 1964 में भारत ने ओलंपिक खेलो में गोल्ड मेडल  जीता था। इस दौरान खुले रूप से जश्न नहीं मना। 1971 में अजीत वाडेकर की टीम ने वेस्टइंडीज और इंग्लैंड को उनके ही जमीं पर हराया तो  मुंबई में एक एक खिलाड़ी एक एक कार में एयरपोर्ट से  शहर भ्रमण कराया गया था।  1975 में अजीतपाल सिंह के नेतृत्व में भारतीय हॉकी टीम विश्व विजेता बनी थी। इस टीम को देश के कई शहरों में भ्रमण कराया गया। 1980 में भारतीय हॉकी टीम ने मास्को ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मेडल जीता था। 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में भारत वनडे चैंपियन बना तब भी शानदार स्वागत हुआ था। 2007, 2011और 2024 में भारतीय क्रिकेट टीम ने बड़ी जीत दर्ज की इसका भी जश्न मुंबई में मना था। विक्ट्री परेड  निकाली गई थी। ये सभी जश्न राष्ट्रीय टीम के थे इस कारण प्रशासन ने कमर कस रखी थी। दूसरे शब्दों में ये भी कह सकते है कि मुंबई के लोग अनुशासित है। इतने आयोजन में कही भी अव्यवस्था नहीं हुई।
बेंगलुरु में जिस टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरू का स्वागत होना था वह राष्ट्रीय टीम न होकर एक फ्रेंचाई टीम है। जिसके खिलाड़ियों को टीम प्रबंधन ने भाड़े पर लिया हुआ है। अच्छा खेले तो साथ रहो वरना बाहर। क्लब टीम के प्रति कितनी भीड़ उमड़ेगी ये सरल और सहज प्रश्न प्रशासन के पास नहीं था। उन्होंने ये भी मान लिया कि आमतौर पर भीड़ में से निश्चित संख्या जो स्टेडियम में बैठने की है उतने चले गए तो बाहर जो रहेंगे वे अनुशासित रहेंगे। ऐसा नहीं हुआ और अनियंत्रित भीड़ का व्यवहार गैर अनुशासित हो गया। स्टेडियम में घुसने के लिए अति उत्साह का दुष्परिणाम ये रहा कि एक टीम के प्लेइंग मेंबर के बराबर की संख्या में लोग मर गए। इसमें प्रशासन से ज्यादा दोष भीड़ का है। सभी जानते है कि जिन स्थानों में असामान्य भीड़ होती है वहां प्रशासन से ज्यादा भीड़ को अनुशासित होने की आवश्यकता होती है। भीड़ ने लोगों के कार पर चढ़ कर कार का कांच तोड़ डाला, भार के कारण कार पिचक गई, क्या ये भीड़ का सही व्यवहार है?
रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरू अठारह साल बाद ट्रॉफी जीती तो देश भर में जश्न इस बात का नहीं मना था कि आरसीबी जीती है बल्कि विराट कोहली के द्वारा इतने वर्षों की प्रतीक्षा फलीभूत हुई है इसका उत्साह था। अठारह साल से साथ क्लब की टीम जीत दर्ज कर चुकी है। धोनी की टीम चेन्नई सुपर किंग्स और रोहित शर्मा की टीम मुंबई इंडियंस तो पांच पांच बार की विजेता है उनके जीत पर ऐसा उन्माद कभी नहीं देखा गया। गलती सिर्फ ये हुई कि बहुत कम समय में आयोजन रख लिया गया। मुफ्त के प्रवेश ने उत्साह को अति उत्साह में बदल दिया। भीड़ का व्यवहार अनियंत्रित हुआ इसके लिए जिम्मेदार भी भीड़ ही है। 

स्तंभकार-संजयदुबे

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