खड़े होकर पांच साल तक साधना कर रहे खड़गेश्वरी बाबा
अंबिकापुर, सरगुजा के बिश्रामपुर क्षेत्र के रुनियाडीह गांव स्थित भूत भावन शिव मंदिर में पांच वर्ष के लिए संकल्पित खडगेश्वरी बाबा (नागा महंत) का खड़े होकर साधना करते एक वर्ष पूर्ण हो गया है। बाबा की साधना की खबर से रोज काफी संख्या में साधना स्थल पहुंचकर बाबा के दर्शन का लाभ ले रहे है।
बता दें कि पिछले वर्ष 2022 में नवरात्र के समय ही बाबा ने पांच वर्ष के लिए खड़े रहकर साधना करने का संकल्प लिया था । रुनियाडीह गांव के इस मंदिर में दौलत गिरी साधु बाबा ने पांच वर्ष तक खड़े रहने का संकल्प लिया है। पिछले वर्ष नवरात्र में उन्होंने इसकी शुरुआत की थी। चैत्र नवरात्र में एक वर्ष पूर्ण होने पर यहां नौ दिनों तक शतचंडी पाठ का आयोजन किया गया था। इसके कारण उनके पैर भी कठोर हो गए, परन्तु उनकी परमात्मा के प्रति ऐसी लगन है कि उन्होंने प्रण किया है वे पांच साल तक खड़े होकर जिंदगी व्यतीत करेंगे और कभी भी इस तपस्या को भंग नहीं होने देंगे।
इसके लिए गांव के श्रद्वालुओं ने मंदिर से लगे एक स्थान पर एक विशेष चबूतरा (कुटिया) बनाया हुआ है और बाबा उस चबूतरे पर अपना सिर रखते है। साथ एक विशेष तरह का बेल्ट भी लगाया हुआ है। इसको वे बांध लेते है। जिससे वे जमीन में न गिर पड़ें। दिन के समय भी लकड़ी का झूला बनाकर उस पर हाथ रख कर ठहर जाते हैं। इस तपस्या के कारण दौलत गिरी बाबा के पैर सूजे हुए दिखाई देते है, वहीं उनके पैरों पर कई जख्म भी हो गए हैं। तप कर रहे बाबा ने कभी भी अपनी तपस्या भंग नहीं की और परमात्मा में विश्वास रखते हुए अपना तप जारी रखा है। उन्होंने बताया कि वे यह तपस्या विश्व शांति के लिए कर रहे हैं और उनकी बचपन से ही प्रभु भक्ति में लगन थी।
महंत दौलत गिरी नागा बाबा कोरिया जिले के कुडेली के है। जो 20 वर्ष आयु में सांसारिक मोह-माया परिवार को त्याग कर प्रयागराज चले गए। वहां अपना और परिवार का पिंडदान कर जूना अखाडे में वैदिक विधि विधान और अखाडे की परंपरा अनुसार जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी से दीक्षा लेकर पूर्णतया नागा महंत बने। वे बीकाम तक पढ़ाई भी किए है। माता के निधन के बाद उनका सांसारिक मोहमाया से मोह भंग हो गया था।शिव मंदिर के संस्थापक नंदलाल राजवाड़े ने बताया कि मंदिर की नीव 20 वर्ष पूर्व रखी गई थी। साल 2021 में ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ। मंहंत दौलत गिरी महाराज से वे चार सालों से मिलते रहे। इसी दौरान उक्त उनके गांव आगमन हुआ, तो वे रेणुका नदी के तट पर बने शिव मंदिर को देखकर वहां अभषिेक किया। उन्होंने वहां खड़े होकर पांच वर्षो की तपस्या करने की इच्छा प्रगट की और मेरे से संकल्प कराया।