विवाहित पुत्री को मिला अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि पूर्व में बने कानूनी प्रविधानों के कारण विवाहित बेटियों को अनुकंपा नियुक्ति का हकदार नहीं बनाया गया था। इसके चलते पिता की मृत्यु के बाद जिन बेटियों को अनुकंपा नियुक्ति की जरुरत होती थी उसे नहीं मिल पाता था। राज्य शासन द्वारा पूर्व में बनाए प्रविधान और नियम कानून आड़े आ जाता था। कानूनी अड़चन के कारण वास्तविक हकदारों को वंचित रह जाना पड़ता था। ऐसे ही दो मामले उनके पास भी आए। कानूनी प्रविधानों और अड़चनों के बारे में जानकारी होने के बाद मैने अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित प्रकरण को लिया। याचिकाकर्ता से बात की और याचिका की तैयारी में जुट गया। याचिका को तैयार करने में तकरीबन एक सप्ताह का समय लगा। नियमों व प्रविधानों सहित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
याचिका में हाई कोर्ट को इस बात की भी जानकारी दी कि विवाहित पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति देने का प्रविधान राज्य सरकार ने नहीं किया है। याचिका में इस बात की भी जानकारी दी गई थी कि याचिकाकर्ता विवाहित है और अपनी मां व स्वजनों के पालन पोषण के लिए पिता की जगह उसे अनुकंपा नियुक्ति की जरुरत है। राज्य शासन की ओर से विधि अधिकारियों ने इस बात का विरोध किया था और प्रविधानों का हवाला देते हुए इस तरह का काेई नियम होने से भी इन्कार कर दिया था। संविधान प्रदत्त शक्तियों और कानूनी प्रविधानों की जानकरी भी दी थी। लंबी चली बहस के बाद हाई कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला दिया। विवाहित बेटियों को अनुकंपा नियुक्ति देने राज्य शासन को निर्देशित किया। कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य शासन ने नियमों में संशोधन किया और विवाहित बेटियों को पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति देने का प्रविधान किया है। कोर्ट के फैसले के बाद विवाहित बेटियों को राहत मिली है।
एसईसीएल को भी बदलना पड़ा नियम
राज्य शासन के अलावा एसईसीएल को भी अनुकंपा नियुक्ति को लेकर नियमों को बदलना पड़ा है। अधिवक्ता श्रीवास्तव बताते हैं कि याचिकाकर्ता विवाहित बेटी के पिता झिरिया माइंस एसईसीएल में वरिष्ठ क्लर्क के रूप में पदस्थ थे। सेवाकाल के दौरान आठ फरवरी 2014 को काम के दौरान मृत्यु हो गई। बेटी की शादी हो गई है। मां और भाई की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने और देखरेख करने वाला कोई ना होने के कारण बेटी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए एसईसीएल प्रबंधन के समक्ष आवेदन पेश किया था। एसईसीएल ने विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति ना देने के प्रविधाना का हवाला देते हुए नौकरी देने से इन्कार कर दिया। उनका मामला भी हाई कोर्ट में दायर किया। याचिका में प्रविधानों का हमने हवाला भी दिया। बताया कि याचिकाकर्ता मृत एसईसीएल कर्मचारी की विवाहित बेटी है। राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौते के खंड 9.3.3 के अनुसार आश्रित रोजगार के लिए आवेदन किया, जो आश्रित रोजगार का प्रविधान प्रदान करता है। आश्रित रोजगार के लिए उसका आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि एनसीडब्ल्यूए विवाहित बेटी को आश्रित रोजगार प्रदान नहीं करता है। याचिका में, यह दलील दी कि उपर्युक्त समझौता केवल अविवाहित बेटी को आश्रित रोजगार के लिए पात्र बनाता है और विवाहित बेटी को आश्रित रोजगार के लिए प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
एसईसीएल ने इस तरह दिया था जवाब
याचिकाकर्ता की मां ने मौद्रिक मुआवजे के लिए आवेदन किया था, लेकिन अचानक, याचिकाकर्ता ने अपना दृष्टिकोण बदल दिया और उसने, विवाहित बेटी होने के नाते अनुकंपा नियुक्ति का दावा किया है, जिसके लिए वह हकदार नहीं है, क्योंकि उसका पति है। लाभप्रद रूप से कहीं और कार्यरत है और वह अपने मृत पिता की कमाई पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं थी और, इस तरह, याचिकाकर्ता आश्रित रोजगार के लिए हकदार नहीं है।
शादी के बाद भी बेटी अपने माता की लाड़ली रहती है
अधिवक्ता श्रीवास्तव बताते हैं कि एसईसीएल वाले प्रकरण में हाई कोर्ट में लंबी बहस चली। उस दौरान उसने दलीलें भी दी। कोर्ट के सामने कहा था कि अनुकंपा नियुक्ति देने के मापदंड विवाह के बजाय नौकरी देने का मापदंड निर्भरता होनी चाहिए। बेटी शादी के बाद भी अपने माता-पिता की बेटी ही रहती है और शादी को कभी भी बेटी के लिए अयोग्यता नहीं माना जा सकता है और इस तरह, शादी एक सामाजिक परिस्थिति और पुरुष और महिला का बुनियादी नागरिक अधिकार है। राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2 (पी) के अर्थ के तहत समझौता बाध्यकारी है।
सुप्रीम कोर्ट तक चला मामला
हाई कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्देश एसईसीएल प्रबंधन को दिया। एसईसीएल ने सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील पेश की थी। डिवीजन बेंच में याचिका खारिज होने के बाद एसईसीएल ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले के बाद एसईसीएल में विवाहित बेटियों के लिए अनुकंपा नियुक्ति का रास्ता खुल गया है। बेटियां सुखी रहें और अपनी जिम्म्मेदरी का निर्वहन करें इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।