राजनीति

ELECTION; महासमुंद में चौधरी Vs साहू, चलेगी मोदी की गारंटी या कायम रहेगा कांग्रेस का भरोसा ? कांग्रेस पर ब्रेक लगाने कभी भाजपा ने उतारा था साहू प्रत्याशी

महासमुंद, छतीसगढ़ के बहुचर्चित महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के लिए प्रत्याशी का ऐलान होते ही मुकाबला दिलचस्प दिख रहा है. भाजपा इस बार बसना क्षेत्र की ओबीसी वर्ग की महिला पूर्व विधायक रुप कुमारी चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस ने नहले पे दहला फेंकते हुए ओबीसी वर्ग से ही साहू समाज के पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू को अपना प्रत्याशी बना कर भाजपा का खेल बिगाड़ने की कोशिश की है. प्रत्याशी तय होते ही दोनों पार्टी में नाराजगी भी खुल कर सामने आई है.

कांग्रेस से दावेदारी कर पीसीसी के प्रदेश महामंत्री रहे किसान नेता चंद्रशेखर शुक्ला ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी को झटका दे दिया. कांग्रेस में साहू समाज से स्थानीय दावेदार माने जा रहे धनेंद्र साहू को टिकट नहीं दिया गया तो उनके समर्थक खुल के ताम्रध्वज को पैराशूट लैंडिंग बोलकर विरोध कर रहे हैं. इधर साहू समाज से भाजपा के 4 बड़े चेहरे की अनदेखी की आग भी भीतर से सुलग रही है. हालांकि भाजपा सत्ता में होने के साथ ही अनुशासन में सख्त है. इस लिहाज से नाराजगी खुल कर सामने नहीं आ रही है.

इस लोकसभा सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. दोनों दल से 4-4 विधायक हैं. लेकिन वोट के लिहाज से कांग्रेस आगे है. कांग्रेस से खल्लारी विधायक द्वारिकाधीश, धमतरी के ओंकार साहू, बिंद्रांवागढ़ के जनक ध्रुव, सरायपाली से विधायक बनी चातुरीनंद को मिलाकर कांग्रेस ने कुल 6 लाख 97 हजार 187 वोट हासिल किए. तो वहीं भाजपा से कुरूद विधायक अजय चंद्राकर, बसना के संपत अग्रवाल, राजिम के रोहित साहू, महासमुंद के योगेश्वर ने मिलकर 6 लाख 87 हजार 909 मत हासिल कर सके. कांग्रेस, भाजपा की तुलना में 9 हजार 278 वोटो से आगे है.

1957 से अब तक इस सीट से 18 सांसद बने. जिसमें सबसे ज्यादा 7 बार सांसद बनने का रिकॉर्ड कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल के नाम दर्ज है. लोकप्रियता ऐसी थी कि 1989 का चुनाव वे जनता दल के बैनर से लड़े और भाजपा-कांग्रेस दोनों को अपना लोहा मनवाया था. भाजपा ने कांग्रेस पर ब्रेक लगाने के लिए 1991 में चंद्रशेखर साहू को अपना प्रत्याशी बनाया था. लेकिन संत पवन दीवान की लोकप्रियता को कांग्रेस ने भुना लिया था. 1996 में भी दोनों का आमना-सामना हुआ. इस बार भी फायदा कांग्रेस को हुआ. लेकिन तीसरी बार 1998 के चुनाव में पवन दीवान को मात देने में चंद्रशेखर साहू सफल रहे. कांग्रेस ने 1999 में श्यामाचरण शुक्ल, तो 2004 में अजीत जोगी जैसे नेता को उतार सीट को बचाती रही. लेकिन 2009 के बाद लगातार साहू प्रत्याशी महासमुंद सीट पर भाजपा का परचम लहराते रहे. 2009 और 2014 में लगातार चंदू लाल साहू, तो 2019 में चुन्नीलाल साहू सर्वाधिक 50.42 प्रतिशत मत लेकर सांसद बने. यह दौर मोदी लहर का दौर माना जा चुका था. लिहाजा कांग्रेस से प्रत्याशी बने धनेंद्र साहू को 43.02 प्रतिशत वोट में ही संतोष होना पड़ा था.

अंतर्कलह का फायदा उठा सकती है कांग्रेस

दुर्ग के बाद सबसे बड़े साहू समाज का वोट बैंक महासमुंद लोकसभा में हैं. राजिम, धमतरी, महासमुंद, खल्लारी और कुरूद इन 5 विधानसभा सीटों पर साहू समाज का ज्यादा प्रभाव है. इस बार दो बार के सांसद चंदूलाल साहू, पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू के अलावा संघ की ओर से सिरकट्टी आश्रम के पीठाधीश्वर गोवर्धन शरण ब्यास जो साहू समाज से आते हैं इनकी दावेदारी थी. समाज के 4 बड़े चेहरे को दरकिनार कर पार्टी ने इस बार महिला वंदन का कार्ड खेल दिया. इससे समाज में नाराजगी भी है. कांग्रेस द्वारा बनाई गई आंतरिक रिपोर्ट में इसका जिक्र भी है. लिहाजा सुलगते इस आग को हवा देकर कांग्रेस अपनी रोटी सेंकने में कामयाब हो सकती है. अब ये आने वाला वक्त ही बताएगा कि इस बार कांग्रेस का भरोसा काम आएगा या फिर इस बार भी मोदी की गारंटी से कांग्रेस को अपने मजबूत सीट से हाथ धोना पड़ेगा.

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