कानून व्यवस्था

NAXALITE;आरएसएस से झगडे के बाद छात्र नेता से क्रांतिकारी बने बसवराजू बन गया नक्सली महानायक…

रायपुर, मार्च 2026 तक वामपंथी उग्रवाद के सफाए की केंद्र सरकार की घोषणा के बाद पिछले एक साल में देशभर में 357 नक्सली साथी मारे गए हैं, जिनमें कुख्यात नक्सली नेता बसवराजू समेत सबसे अधिक 281 नक्सली दंडकारण्य क्षेत्र में मारे गए। सीधी मुठभेड़ों में 269 लड़ाके एवं पीएलजीए बटालियन के 17 सदस्य मारे गए हैं। संगठन के महासचिव बसवा राजू सहित चार केंद्रीय समिति (सीसी) सदस्य, 16 राज्य स्तरीय नेता, 23 जिला स्तर के नेता, 83 एरिया कमांडर, 138 पार्टी सदस्य, और 17 पीएलजीए ओहदेदार इस वर्ष मारे गए है।

बहरहाल छत्तीसगढ़ में लाल आतंक खात्मे की ओर अग्रसर है. सुरक्षाबलों द्वारा लगातार चलाए जा रहे ऑपरेशन में अब तक कई बड़े और खूंखार नक्सली मारे गए हैं. इन्हीं मारे गए नक्सलियों में शामिल है सीपीआई का महासचिव और खूंखार नक्सली नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू. जिसे 21 मई 2025 को अबूझमाड़ के जंगलों में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के खिलाफ ‘आपरेशन कगार’ चलाया था. सुरक्षाबलों के इस ऑपरेशन में 30 नक्सली मारे गए. इस मुठभेड़ में कुख्यात नक्सली नेता बसवराजू भी मारा गया. बसवराजू पिछले चार दशक से नक्सलियों का सरगना बना हुआ था.

कालेज में छात्र नेता रहते बसवराजू बना क्रांतिकारी

नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियन्नापेटा का रहने वाला था. बसवराजू का जन्म 1955 में हुआ था। 25 साल की उम्र में उसने NIT वारंगल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इस दौरान वो कॉलेज की राजनीति में सक्रिय था. इस दौरान RSS के सदस्यों के साथ उसका झगड़ा हुआ और यहीं से वो एक क्रांतिकारी बन गया.

लिट्टे से ली गुरिल्ला वॉर की ट्रेनिंग

साल 1987 आते-आते उसका झुकाव LTTE यानि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम की तरफ होने लग. लिट्टे से ही उसने गुरिल्ला वॉर की ट्रेनिंग ली और धीरे-धीरे नक्सल प्रभावित इलाकों में सक्रिय हो गया. इसी दौरान बसवराजू ने स्फोटक बनाने, IED लगाना सीखा और इसका मास्टरमाइंड बन गया. उसने नक्सली आंदोलन से जुड़कर प्रकाश, कृष्णा, विजय, उमेश और कमलू जैसे कई नामों से दहशत फैलाई.

हर ज़िम्मेदारी और इलाक़े के साथ केशव राव का नाम बदलता गया

बसवराजू 18 सालों तक पोलित ब्यूरो सदस्य के तौर पर सक्रिय रहा. सात साल पहले यानि साल 2018 में बसवराजू को मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति की जगह CPI का महासचिव बना दिया गया. हर ज़िम्मेदारी और इलाक़े के साथ केशव राव का नाम बदलता जाता था- गगन्ना, प्रकाश, कृष्णा, विजय, केशव, बीआर, प्रकाश, दरपा नरसिंहा रेड्डी, आकाश, नरसिंहा, बसवराज, बसवराजू. लेकिन 1992 में जब पीपुल्स वार ग्रुप टूट की कगार पर था, तब गणपति के साथ खड़े केशव राव को केंद्रीय कमेटी के सदस्य के रूप में मिली ज़िम्मेदारी ने संगठन में महत्वपूर्ण बना दिया.

डेढ़ करोड़ का इनामी था

150 जवानों के हत्यारे बसवराजू पर कुल डेढ़ करोड़ का इनाम घोषित था. दरअसल, छत्तीसगढ़ सरकार में हाल ही में सभी सेंट्रल कमेटी के महासचिव और पोलित ब्यूरो सदस्यों पर एक-एक करोड़ के इनाम की घोषणा की थी. बसवराजू पर NIA, CBI समेत अलग-अलग राज्यों में कई इनाम घोषित थे, जिससे बसवराजू के ऊपर घोषित इनाम डेढ़ करोड़ तक पहुंच चुका था.

बसवराजू के परिवार की कहानी

बसवराजू का पूरा परिवार हैदराबाद से लगभग 720 किलोमीटर दूर जियान्नापेट गांव में रहता था. बसवराजू के पिता वासुदेव राव इस छोटे-से गांव में एक शिक्षक थे. बसवराजू की तीन बहनें और दो भाई थे. बसवराजू के नक्सल संगठन से जुड़ने के बाद भी उसका पूरा परिवार जियान्नापेट में ही रहता है. बसवराजू की मां 82 साल की हैं. बसवराजू का एक भाई विशाखापत्तनम पोर्ट ट्रस्ट में विजिलेंस ऑफिसर है. उसके परिवार में डॉक्टर, शिक्षक और स्थानीय नेता तक मौजूद हैं.

पत्नी शारदा थी माओवादी कमांडर

बसवराजू की पत्नी का नाम शारदा था, जो एक माओवादी कमांडर थी। साल 2010 में शारदा ने आत्महत्या कर ली. बसवराजू की मौत के बाद उसके दोनों भाईयों ने सुरक्षाबल के जवानों पर गंभीर आरोप भी लगाए. बसवराजू के छोटे भाई नंबाला रामप्रसाद ने कहा कि शव लेने के दौरान पुलिस अधिकारियों ने उसकी हिंदी न समझने का फायदा उठाने की कोशिश की और उसे हिंदी में लिखे कुछ कागजों पर दस्तख़त करने को कहा गया. वहीं, बड़े भाई ढिल्लेश्वर राव ने कहा कि पुलिस ने उनके छोटे भाई रामप्रसाद को गिरफ्तार करने की कोशिश की.

बसवराजू के नेतृत्व में हुए हमले

नक्सल संगठन से जुड़ने के बाद से ही बसवराजू ने नक्सली वारदातों को अंजाम देने लगा. उसने सबसे पहला हमला साल 2003 में किया, जब अलीपीरी में बम विस्फोट हुआ. इस विस्फोट के जरिए नक्सलियों ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू की हत्या की कोशिश की थी. इसके बाद साल 2010 में हुए दंतेवाड़ा नरसंहार में भी बसवराजू शामिल रहा. नक्सलियों के इस हमले में CRPF के 76 जवान मारे गए थे.

झीरम घाटी का भी मास्ट्रमाइंड था

फिर 2013 में हुआ झीरम घाटी हमला, जब नक्सलियों ने कांग्रेस के काफिले पर हमला करते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मार दिए। इस घटना में भी बसवराजू का हाथ था. चौथी घटना साल 2019 में हुई, जब नक्सलियों ने शयामगिरी पर हमला किया. इसमें बीजेपी विधायक भीमा मंडावी सहित पांच लोग मारे गए. बसवराजू का नाम साल 2020 में भी सुर्खियों में रहा, जब मिनपा में नक्सलियों के एंबुश में सुरक्षाकर्मी फंस गए और इसमें 17 जवान शहीद हो गए. जबकि साल 2021 में बीजापुर के टेकलगुड़ेम में नक्सलियों ने बड़ी वारदात को अंजाम देते हुए 22 जवानों को मार दिया. इस हादसे में भी बसवराजू का हाथ बताया जाता है.

अंतरराष्ट्रीय चरमपंथियों से संपर्क

खुफिया एजेंसियों का कहना है कि बसवराजू न सिर्फ भारत में बल्कि विदेश में भी चरमपंथियों से संपर्क में था. उसने अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी संगठनों के साथ भी संबंध बनाए. कहा जाता है कि उसने जर्मनी, तुर्की और पेरू की यात्रा तक की, जिसका मकसद विदेश से संबंध स्थापित करना था.

बसवराजू की मौत से टूटी नक्सलियों की रीढ़

बसवराजू नक्सल संगठन का मुख्य रणनीतिकार था. वो बड़े-बड़े हमले की साजिश रचने में भी कामयाब था, जिसकी नतीजा ये रहा कि उसके कार्यकाल में बस्तर में कई बड़े हमले हुए. बसवराजू कई सालों तक अंडरग्राउंड रहा और खुफिया जाल से बचा रहा. आखिरकार सुरक्षाबलों को उसे लेकर जानकारी मिली कि वो बीजापुर और दंतेवाड़ा के बीहड़ में छिपा हुआ है, जिसके बाद DRG, CRPF और STF ने संयुक्त अभियान चलाते हुए 50 घंटे तक नक्सलियों को घेरे रखा और आखिरकार जवानों को बड़ी सफलता मिली. इस मुठभेड़ में बसवराजू समेत 30 नक्सली मारे गए. नक्सली बुकलेट के अनुसार, यह वर्ष नक्सल संगठन के लिए अब तक का सबसे बुरा साबित हुआ है।

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