POLITICS; एकला चलो की नीति ने बघेल को अकेला कर दिया और भ्रष्टाचार से पलट गई बाजी, मोदी की गारंटी से कारगर हुई भाजपा की रणनीति
रायपुर, रविवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के आए अचम्भित नतीजों ने एक तरफ सत्ताधारी कांग्रेस को बड़ा झटका दिया तो वहीं भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई. बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में 54 सीटों पर जीत हासिल कर शानदार प्रदर्शन किया. इन नतीजों ने छत्तसीगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर जारी किए गए एग्जिट पोल को भी गलत साबित कर दिया. 2018 के मुकाबले बीजेपी ने इस बार तीन गुना से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. इस बार के चुनाव में भाजपा की जीत में जिन चीजों ने मदद की है, उनमें सबसे प्रमुख यह है कि 47 विधानसभा सीटों पर नए उम्मीदवारों को उतारने का फैसला. इसके अलावा बीजेपी का भूपेश बघेल को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरे रखना भी सफल रहा.
इसके विपरीत कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की स्टाइल में चुनाव लडा .इसके चलते कांग्रेस में अंतर्कलह बढा और एकला चलो की नीति से चुनावी प्रबंधन तार-तार हो गई. कर्मचारियों की नाराजगी ,पीएससी में गडबडी, आधी-अधूरी बेरोजगारी भत्ता से युवा भी खासे नाराज हो गए. पिछले चुनाव में 68 सीट जीतने वाली कांग्रेस 35 सीटों पर ही सिमट गई.
महज 35 सीटों पर सिमट कर रह गई कांग्रेस
एक तरफ जहां साल 2018 में कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत हासिल की थीं. वहीं इस बार के चुनाव में लगभग आधी होकर 35 हो गई. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अलावा मंत्री कवासी लखमा उमेश पटेल एवं अनिला भेडिया ही चुनाव जीत पाए. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को पहली सीट मिली, इसके संस्थापक हरि सिंह मरकाम के बेटे तुलेश्वर ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 714 वोटों से हराया और पाली विधानसभा सीट से जीत हासिल की. सरगुजा राजपरिवार के मंत्री टीएस सिंहदेव भी कुछ मतों से चुनाव हार गए और सरगुजा कांग्रेस विहीन हो गया.
इन मुद्दों पर भूपेश बघेल ने लड़ा चुनाव
भूपेश बघेल ने इस बार का चुनाव केवल तीन मुद्दों पर लड़ा. इसमें पहला मुद्दा- कल्याणकारी राजनीति, विभिन्न हितधारकों के लिए योजनाओं पर 1.75 लाख करोड़ रुपये खर्च करना, दूसरा मुद्दा- नरम-हिंदुत्व, राम वन गमन पथ की योजना बनाना, यानी वह मार्ग, जिसका पालन राम ने अपने वनवास के दौरान किया था और तीसरा- क्षेत्रीय छत्तीसगढ़िया गौरव का आह्वान करना. लेकिन उन्हें कोयले और शराब उत्पाद शुल्क के परिवहन पर भ्रष्टाचार के कई आरोपों से जूझना पड़ा. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके करीबी लोगों के विभिन्न ठिकानों पर छापे मारे, उनके सलाहकारों को बुलाया और उनमें से कुछ के खिलाफ मामला दर्ज किया और उन्हें गिरफ्तार भी किया.
धर्मांतरण के मुद्दे पर बघेल सरकार की किरकिरी
भूपेश बघेल को प्रधानमंत्री आवास योजना के कार्यान्वयन न होने और संविदा कर्मचारियों को नियमित न करने पर नाराजगी का भी सामना करना पड़ा. आदिवासियों के बीच धर्मांतरण एक और मुद्दा था जिस पर भाजपा ने उन पर दबाव बनाया. चुनावी नतीजा सामने आने के बाद भूपेश बघेल ने हार मान ली और राजभवन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. उन्होंने एक्स पर ट्वीट करते हुए कहा, ‘लोगों का जनादेश हमेशा सर्वोपरि रहा है. इस बात का संतोष है कि पिछले पांच वर्षों में मैंने आपसे किया हर वादा पूरा किया है और अपनी सर्वोत्तम क्षमता से प्रदेश की सेवा की है. लोगों की अपेक्षाएं और आकांक्षाएं ऊंची हैं और मैं उनकी बुद्धिमत्ता का सम्मान करता हूं.’
पीएम मोदी के चेहरे पर टिका छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव
भाजपा का अभियान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर बहुत अधिक निर्भर था. उन्होंने इस साल छत्तीसगढ़ में नौ सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया था और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई दौरे किए और सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया.दोनों ने लगातार भूपेश बघेल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. हालांकि राज्य में बीजेपी के पास मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं था, लेकिन अमित शाह ने जनता से मोदी के लिए वोट करने की अपील की. राज्य में वोटिंग पैटर्न से पता चला कि भाजपा ने न केवल 2018 के चुनावों में 10.1 प्रतिशत के बड़े अंतर को कवर किया, बल्कि उसका वोट शेयर 2018 में 32.97 प्रतिशत से बढ़कर इस बार 46.27 प्रतिशत हो गया.
भाजपा के पुराने वोटरों की हुई वापसी
वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस का वोट शेयर 43.04 प्रतिशत से गिरकर 42.23 प्रतिशत हो गया. राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि भाजपा के पारंपरिक वोट जो 2018 में 15 साल की मजबूत सत्ता विरोधी लहर के बाद कांग्रेस में चले गए, 2023 में भगवा पार्टी में लौट आए. आदिवासी सरगुजा क्षेत्र में मतदान भी कांग्रेस के लिए एक झटका था.पार्टी 2018 में जीती गई सभी 14 सीटें हार गई, जिसमें अंबिकापुर भी शामिल है, जहां उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव भाजपा के राजेश अग्रवाल से सिर्फ 94 वोटों से हार गए. देव मुख्यमंत्री पद न मिलने से नाराज थे, उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी व्यक्त की थी और इस साल की शुरुआत में यहां तक कहा था कि वह चुनाव नहीं लड़ सकते.
किसान ने हरा दिया सात बार के विधायक को
हालांकि, बाद में उन्होंने अपना मन बदल लिया. कवर्धा में, भाजपा की हिंदुत्व राजनीति ने मंत्री के रूप में बघेल के नरम-हिंदुत्व रुख को पछाड़ दिया और चार बार के विधायक मोहम्मद अकबर भाई, जो 2018 में 59,000 से अधिक वोटों के रिकॉर्ड अंतर से जीते थे, भाजपा के विजय शर्मा के खिलाफ 39,592 वोटों से हार गए. शर्मा 2021 में सांप्रदायिक हिंसा में मुख्य आरोपी थे. हिंदुत्व की राजनीति साजा में भी काम आई, जहां एक किसान ईश्वर साहू, जिनके बेटे की इस साल की शुरुआत में सांप्रदायिक हिंसा में मौत हो गई थी, उन्होंने सात बार के विधायक और मंत्री रवींद्र चौबे को हराया .
ओबीसी वोटर्स का भाजपा की तरफ झुकाव
कहा जाता है कि आदिवासी वोटों के अलावा, साहू समुदाय, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटों का एक बड़ा हिस्सा है, भाजपा की ओर झुक गया है, जिससे पार्टी को बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर के तीन डिवीजनों में आसानी से जीत हासिल करने में मदद मिली है. एक अन्य कारक जिसने भाजपा के लिए काम किया वह है विधायक उम्मीदवारों की पसंद. 47 निर्वाचन क्षेत्रों में नए विधायक उम्मीदवारों को पेश करने के अलावा, इसने राम विचार नेताम, विष्णु देव साई जैसे कई पूर्व मंत्रियों और चार लोकसभा सदस्यों को मैदान में उतारा.
तीन सांसदों ने जीता चुनाव
चार लोकसभा सदस्यों में से, विजय बघेल को छोड़कर, जो मुख्यमंत्री बघेल के खिलाफ खड़े थे, अन्य तीन ने जीत हासिल की. 2018 में सात सीटें जीतने वाले जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़-जोगी (जेसीसी-जे) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन का इस चुनाव में सफाया हो गया.
जनादेश शिरोधार्य जनता के हितों के लिये संघर्ष जारी रहेगा : कांग्रेस
चुनाव परिणामों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि जनादेश का सम्मान है। चुनाव परिणाम हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं आये। हम अपनी बात को जनता तक ले जाने में सफल नहीं हो पायें। भाजपा के झूठ के सामने हमारा सच दब गया। चुनाव परिणाम से हम निराश है लेकिन हताश नहीं है। हम जनसरोकारों को लेकर अपना संघर्ष जारी रखेंगे।