राजनीति

RSS; 100 साल का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

देश में राष्ट्रीय दल के रूप में तीन ही ऐसी पार्टी रही है जिनके प्रधानमंत्रियों ने देश में राज किया। कांग्रेस के प्रधान मंत्रियों की फेरहिस्त लंबी है। भारतीय जनता पार्टी के दो और जनता पार्टी के एक  प्रधान मंत्री के हिस्से में ये उपलब्धि है। हर राजनैतिक दल की एक स्थाई विचारधारा होती है जिसके आधार पर वे जनता से  सत्ता के लिए वोट मांगते है।
कांग्रेस के थिंक टैंक में  गांधीवादी  विचारधारा का प्रभाव देखने को मिलता है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस के पीछे गांधी खड़े है। जनसंघ जो अब  स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी है उनके पीछे थिंक टैंक के रूप में राष्ट्रीय स्वयं संघ मजबूती के साथ खड़ा है। माना जाता हैं कि  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के मुख्यालय नागपुर से महत्वपूर्ण नीतियां पार्टी तक पहुंचती है और क्रियान्वित  होती है।
सौ साल पहले दशहरा के दिन ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का जन्म हुआ था।ये भी माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  “हिंदुत्व” के एजेंडे पर ही जन्मी है।  देश का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर हुआ था इस आधार पर जब पाकिस्तान मजहबी तौर पर उदित हुआ तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मानना था कि हिन्दुस्तान का भी जन्म  हिंदुत्व के आधार पर होना चाहिए।  गांधी के उदारवादी दृष्टिकोण को कांग्रेस ने माना और दो खिचड़ी राष्ट्र का निर्माण हो गया।दोनों देश में दूसरे संप्रदाय को रहने का विकल्प मिला लेकिन विभाजन की त्रासदी में नुकसान हिन्दुओं का हुआ।इसी नुकसान को नाथूराम गोडसे बर्दाश्त न कर सके और गांधी की हत्या हो गई।   गोडसे ने व्यक्ति के बजाय उन विचारों की हत्या करना बताया था जिसके चलते  देश को आजादी के बाद हो रहे नुकसान थे।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ऊपर ये आरोप कांग्रेस लगाती है।इससे परे विगत सौ साल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने तरीके से देश में हिंदुत्व को बढ़ाने के लिए संघर्ष किया और बहुत हद तक सफलता भी प्राप्त की।इसमें कोई दो मत नहीं है कि बाला साहब ठाकरे के उग्र हिंदुत्व ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काम को  बहुत आसान कर दिया।इसी के चलते अटल बिहारी बाजपेई प्रधान मंत्री भी बने। स्पष्ट हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर नरेंद्र मोदी भी अवतरित हुए  कमोबेश माने जा सकता है कि बीते ग्यारह साल में परिस्थिति परिवर्तित हुई है और जो स्थिति 2014से पहले थी  वह पलट सी हो गई है।
इस सफलता का श्रेय भले ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  न ले लेकिन ये संघ की स्पष्टवादिता ही है। देश में राम मंदिर की स्थापना का दीर्घ संघर्ष के पीछे भी संघ की ही भूमिका थी।
बात राजनैतिक दलों के पीछे के थिंक टैंक के विचारों के अलावा इसके प्रसार प्रसार के लिए किए गए कार्य भी मायने रखते है।  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने विचारों के प्रस्फुटन के लिए शिक्षा को वैसे ही जरिया बनाया जैसे अंग्रेजों ने अपने  और ईसाई धर्म को स्थापित करने के लिए शिक्षण संस्था के रूप में मिशन स्कूल  खोला था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देश भर में  सरस्वती शिक्षण संस्थान को जन्म दिया। 1नवंबर 1952 को  गोरखपुर में  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नानाजी देशमुख और कृष्ण चंद गांधी के प्रयास पहला सरस्वती शिक्षण संस्था प्रारंभ हुई। 73 साल में  चार पीढ़ी को  संघ अपने विचारों से मजबूत कर  चुका है। कांग्रेस को शायद ये आभास नहीं था कि देश में कभी कोई अन्य राजनैतिक दल या विचारधारा  उनके साम्राज्य को ध्वस्त कर देगी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने  विचारधारा को धीरे धीरे देश भर में स्थापित कर दिया है। 

दशहरा  को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी स्थापना दिवस मानता है याने बुराई पर अच्छाई की जीत। कांग्रेस के पास ऐसा ही एक संगठन सेवा दल है।  ये दल 1924 को स्थापित हुआ था । एन एस हार्डिकर  की सोच दूरगामी थी लेकिन इस संगठन को कांग्रेस ने इतना कमजोर कर दिया या उपेक्षित कर दिया कि आज की स्थिति में इसका नाम लेवा नहीं है। अगर कांग्रेस इस संगठन की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समान ही उपयोग करती तो फायदे में रहती।

स्तंभकार- संजयदुबे

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