राज्यशासन

EDUCATION; युक्तियुक्तकरण में शालाओं का समायोजन औचित्यहीन,आदेश वापस लेने की मांग

विरोध

रायपुर, राज्य सरकार द्वारा घोषित युक्तियुक्तकरण आदेश से शिक्षक समुदाय में बवाल मचना तय है, क्योंकि जिस तरीके से पुराने आदेश को नए लिफाफे में पैक करके मनमाने ढंग से लागू करने की नीति अपनाई जा रही है निश्चित ही इसका व्यापक विरोध होगा।

इसी क्रम में प्राथमिक प्रधानपाठक संघ के प्रदेश अध्यक्ष त्रिभुवन वैष्णव एवं प्रदेश सचिव कमलेश सिंह बिसेन ने पत्र जारी कर युक्तियुक्तकरण के विसंगति पूर्ण आदेश को वापस लेने की मांग की है। पिछले वर्ष अगस्त माह में जारी की गई आदेश जिसमें भारी गलती थी और इस आदेश का प्रदेश के सभी शिक्षक संगठनों ने भारी विरोध किया था। इस विरोध और पंचायत नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए सरकार बैकफुट में चली गई और आदेश स्थगित कर चुप बैठ गई। अब पुनः उसी आदेश को मनमाने तरीके से लागू करने की कवायद हो रही है जिसका फिर विरोध होना निश्चित है। शासन को चाहिए था जो बिंदु और तथ्य जिस पर शिक्षक संगठनों को आपत्ति थी उसमें सुधार करते हुए शिक्षा और छात्र हित में प्रक्रिया प्रारंभ करते।आदेश जारी करने के पूर्व सभी संगठनों के प्रतिनिधियों से मिलकर संगठनों का पक्ष भी जान लेते। परंतु प्रशासन में बैठे अधिकारियों को लगता है वो जो चाहे नीति लाए कोई कुछ नहीं कर सकता।

संघ को वर्तमान में जारी आदेश में तीन प्रमुख बिंदुओं पर घोर आपत्ति है पहला  शालाओं का समायोजन। कम दर्ज वाले और नजदीक के शालाओं का समायोजन तक तो ठीक है परंतु एक परिसर में संचालित प्राथमिक और मिडिल स्कूल का समायोजन अनावश्यक और औचित्यहीन है। इसका ताल्कालिक परिणाम यह होगा कि 12 हजार प्राथमिक 3 हजार माध्यमिक और 15 सौ हाई स्कूल का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। यहां के प्रधानपाठक पदविहीन हो जाएंगे। दूरगामी परिणाम यह होगा कि इन शालाओं में भविष्य में प्रधानपाठक और प्राचार्य के पद समाप्त हो जाएंगे जिससे शिक्षकों की पदोन्नति हेतु पद नहीं मिलेंगे।

दूसरा बिंदु शालाओं के समायोजन से समायोजित होने वाले शाला के प्रधानपाठक का पद विलुप्त हो जाएगा। प्रधानपाठक का पद शिक्षक के समकक्ष होकर अपनी गरिमा खो देगा। प्राथमिक प्रधानपाठक केवल सहायक रह जाएंगे जो मिडिल प्रधानपाठक और प्राचार्य के अधीन होकर कार्य करेंगे। यदि ऐसा है तो पदोन्नति देने का क्या मतलब रह जाएगा। शाला संचालन में प्रधानपाठक की अहम भूमिका होती है जिसे पद विहीन करके सरकार अन्याय कर रही है।

तीसरा समायोजन होने वाले दो शालाओं में प्रधानपाठक होने की स्थिति में जूनियर प्रधानपाठक को अन्यत्र शाला में जाना पड़ेगा। अभी तक प्रधानपाठक के पद को अतिशेष से मुक्त रखा गया था परंतु इस आदेश में प्रधानपाठक को भी अतिशेष बताकर इधर उधर किया जाना गलत है। सरकार की मंशा और जरूरत शालाओं में शिक्षकों की कमी दूर करने और अतिशेष शिक्षकों को जरूरत वाली शालाओं में भेजने की होनी चाहिए । न कि अनर्गल तरीके से पूरी व्यवस्था को तहस नहस करके बरसो पुरानी मजबूत व्यवस्था को कमजोर करने की।
छत्तीसगढ़ प्राथमिक प्रधानपाठक संघ ने राज्य सरकार के युक्तियुक्तकरण आदेश का विरोध किया है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष त्रिभुवन वैष्णव और प्रदेश सचिव कमलेश सिंह बिसेन ने इस आदेश को वापस लेने की मांग की है।

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