राजनीति

POLITICS; वोट चोरी बनाम चुनाव आयोग………..

लोकतांत्रिक देश भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति लोकसभा, विधानसभा सहित  त्रि स्तरीय स्थानीय चुनाव की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग पर है। केंद्रीय  निर्वाचन आयोग राज्यों के  निर्वाचन  आयोग के सहयोग से राज्यों के विधानसभा चुनाव को सम्पन्न कराते आ रहा है।
देश के सबसे जटिल जातीय समीकरण वाले राज्य बिहार में चुनाव आसन्न है। सभी पार्टियां  आम जनता के बीच अपने कार्यक्रम को लेकर जाएंगी। कांग्रेस एक नए आरोप के साथ चुनाव में उतरने वाली है। ये आरोप है – फर्जी मतदाता।  दूसरे शब्दों में कहे वोट चोरी और इसका लाभ उठाने वाले वोट चोर!
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने तथाकथित एक बम फोड़ा है जिसमें हुए विस्फोट का लब्बोलुआब ये है कि
1. वोटर का नाम अनेक स्थानों में है याने एक वोटर के पास एक से अधिक वोटर आईडी है और वो इसका दुरुपयोग कर भाजपा के पक्ष में वोट डालकर कर रहा है वह भी थोक में।,
2.इसका ये भी अर्थ लिया जाना चाहिए कि एक वोटर का नाम अलग अलग स्थानों के वोटर लिस्ट में है।एक जगह वो वैध वोटर है और बाकी जगह अवैध वोटर ही माना जाएगा।
3. एक ही पते में  बहुत से मतदाता का पता है (ये संख्या 80 तक है)।
ये दोनों  बात को खारिज नहीं किया जा सकता है। लेकिन ये बात केवल वोटर लिस्ट के लिए मानी जा  सकती है।
  मतदाता दो प्रकार के होते है
1.स्थाई मतदाता
स्थाई रूप से रहने वाले मतदाताओं के पते स्थाई होते है।इस कारण इनके नाम एक ही स्थान में होते है। इनके नाम  सालों से एक ही मतदाता सूची में है और इनके वोटर आई डी भी अपरिवर्तनीय है।इनके नाम आपको कभी भी कही भी नहीं मिलेंगे। ये देश के ईमानदार और वैध वोटर है। इनकी संख्या देश में 85 फीसदी है
2अस्थाई मतदाता
देश के संविधान के मूल अधिकार में हर नागरिक को  स्वतंत्रता का  अधिकार मिला हुआ है ।इसका उपयोग कर कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी स्थान में रह सकता है।कोई भी वैध रोजगार अपना सकता है।
भारत  एक कृषि प्रधान देश है।71फीसदी आबादी कृषि कार्य करता है। देश में पूर्व की सरकारों ने किसानों को मानसून के भरोसे छोड़ रखा था।वक्त के साथ परिवार के सदस्यों की बढ़ोतरी के चलते जमीनें  विभाजित होने लगी और परिवार के पालन पोषण के लिए पलायन, अनिवार्यता हो गई। ग्रामीण क्षेत्र से उन शहरी क्षेत्रों में अस्थाई पलायन आज की अनिवार्यता है। जो व्यक्ति समृद्ध होना चाहते है।इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए।

पलायन का भी राजनीतिकरण होता है। हर राज्य की विपक्षी पार्टियां घड़ियाली आंसू बहाती है। खैर, इस पलायन के चलते ही  पलायन करने वालो के दो पते हो जाते है।स्थाई पता और अस्थाई पता।  वोट पाने के लिए इनको अस्थाई शहर में  वोटर बनाया जाता था। याने एक वोटर और दो वोट।
लोकसभा और विधान सभा  चुनाव में  इस प्रकार के वोटर अपने दो वोट का उपयोग कर सकते है बशर्ते   लोक सभा चुनाव में  दो महीने का अंतर हो। क्योंकि  वोट डालने से पहले उंगली में अमिट स्याही लगाई जाती है। ये स्याही दो महीने पहले तभी  मिटाई जा सकती है जब इसे ब्लेड से रगड़ा जाए।इसके बावजूद   स्किन में भी लगने के कारण  कोई वोटर फर्जी वोट डाल दे तो बड़ी बात होगी।
दूसरी बात ये है कि वे व्यक्ति जो  ऐसी नौकरी करते है जिसमें ट्रांसफर होता है तो ऐसे व्यक्ति का नाम हर स्थान  के वोटर लिस्ट में जुड़वाने पर हर स्थान के वोटर लिस्ट में जुड़ा ही रहेगा।  जब तक वह स्वयं  अपना नाम वोटर लिस्ट से  अधिकृत रूप से  आवेदन देकर कटवा न ले।ये संख्या ट्रांसफर वाले स्थान  की संख्या के साथ बढ़ते जाएगा । इसका मतलब ये नहीं है कि एक व्यक्ति दस जगह वोट डाल देगा। अगर दो राज्यों के चुनाव में बहुत अधिक समय का अंतर है तो   जरूर ही एक वोटर दो राज्यों के अलग अलग  विधान सभा चुनाव में वोट डाल सकता है।  उदाहरण के लिए महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव  नवंबर 2024 में हुआ है। बिहार का  चुनाव संभावित रूप से  नवंबर 2025में होना है। ऐसे में बिहार के ऐसे प्रवासी वोटर जिनका नाम महाराष्ट्र और बिहार  के वोटर लिस्ट में है वे अवैध वोटिंग कर सकते है।
इस बात को चुनाव आयोग समझ चुका था इसी कारण बिहार में वोटर लिस्ट से वे नाम काट दिए गए जो मौके पर नहीं मिले। ये  वोटर बिहार के स्थाई  लीगल वोटर और दीगर  राज्यों के अस्थाई और इलीगल वोटर्स थे।
* एक पते पर बहुत से वोटर का नाम होना
ऐसा माना जाता है कि एक शहर का वोटर दूसरे शहर जाता है  तो सामूहिक रूप से एक ही मोहल्ला, एक ही फैक्ट्री, या एक ही निर्माणाधीन स्थानों में काम करते है। वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के वक्त ये लोग ऐसे ही स्थान  का पता लिखवाते है। मजदूर किसी के घर में रहकर काम करता है तो उस घर का पता  उस वोटर का पता बन जाता है। इसे गलत नहीं मान जा सकता है।
प्रश्न ये भी उठता है कि आखिर  इस देश के वोटर इतने जागरूक कैसे है कि वोट डालने वह भी भाजपा को सैकड़ों किलोमीटर का  सफर तय करके वोट डालने  आएगा? और आयेगा तो भाजपा को ही वोट क्यों डालेगा?
इस देश में अवसर परस्त राजनैतिक पार्टी , उनके प्रत्याशी  तो है ही जिन्हें चुनाव जीतने के लिए वोट मैनेजमेंट आता है। वोटर को अपने पक्ष में वोटिंग कराने के लिए एक से एक प्रलोभन दिया जाना आम बात है। घरेलू सामान, नगद राशि, शराब  चुनाव पूर्व बंटवाना साधारण बात है। इसका लाभ उठाने के लिए  पक्के रूप से लालची वोटर  जरूर ही सात समुंदर पार करके आएगा। ऐसे वोटर  सारी पार्टियों से लाभ लेते है और अपने हिसाब से वोट डालते है। ये वोटिंग  विचारधारा, चुनाव के पूर्व राजनैतिक दलों द्वारा  परोसे गए प्रलोभनों के चलते होती है।इसे ये भी कह सकते है कि जिसमें जितना दम होगा वो पार्टी  इलीगल वोटर को अपने तरफ का लेगी।
आखिर वोटर इतना सुविधाभोगी क्यों है?
हमारे देश में अधिकार के प्रति सजग और कर्तव्य के प्रति लापरवाह लोग ही ऐसे  मुद्दे को उठाने के लिए जिम्मेदार है। खास कर प्रवासी और   पलायनकर्ता लोग। ये पढ़े लिखे और अनपढ़ दोनों है। इन्हें  अवसर परस्त भी कहना चाहिए। अगर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहे है तो पहले स्थान से अपना नाम वोटर लिस्ट से कटवा लेना चाहिए। दूसरा, अगर एक स्थान पर वोटर लिस्ट में नाम है तो दूसरे स्थान पर नाम नहीं जोड़वाना चाहिए।
किसी भी राज्य का चुनाव आयोग ठेका लेकर नहीं रखा है कि ये जानकारी देश के दीगर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लेता फिरे। इसी कारण एक शपथ पत्र भरवा लेता है। अब व्यक्ति गलत शपथ लेता है तो चुनाव आयोग नहीं व्यक्ति जिम्मेदार है।
राजनैतिक दलों की सुचिता होना चाहिए कि वे खुद भी इस प्रकार के दलदल को साफ करे लेकिन स्वार्थ सिर चढ़ कर बोलता है तो शासकीय मशीनरी पर आरोप थोप दिया जाता है।
राहुल गांधी , देश के नेता प्रतिपक्ष है, उनको बड़ी जिम्मेदारी से सवाल उठाना चाहिए। वे देश के करोड़ो लोगों का प्रतिनिधित्व करते है। उनको ज्ञात होना चाहिए कि शासन लिखित कागजों में चलता दौड़ता है। यहां मुंह याने जबान की कोई कीमत नहीं है। केवल  मंचों से आरोप लगाने को संज्ञान में नहीं लिया जा सकता है। अगर निर्वाचन आयोग राहुल गांधी से शपथ पत्र मांग़ रहा है तो कहा गलत है?  आप प्रेस कांफ्रेंस में  वोटर लिस्ट भले ही लहरा दे लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं है।  राहुल गांधी का ये कहना कि वे संसद में शपथ ले चुके है इसके बाद देश में कही शपथ पत्र देने की जरूरत नहीं है, हास्यास्पद बात है। कांग्रेस में नामी गिरामी वकील है, राहुल गांधी को कानूनी परामर्श लेना चाहिए।  कल के लिए न्यायालय जाएंगे तो शपथ पत्र  नहीं  देंगे तो कोई वकील  आपकी वकालत नहीं करेगा।
नेता प्रतिपक्ष, देश के संवैधानिक व्यवस्था से ऊपर नहीं है।अपनी बातों  को सप्रमाण रखना  उनकी देश के प्रति जिम्मेदारी है। अगर  ऐसा नहीं कर पा रहे है तो  ये तय है कि उनकी बातों का असर कुछ समय के लिए हो सकता है लेकिन ये नुस्खा चुनाव जिताऊ नहीं है
🖊️ संजय दुबे 

Related Articles

Back to top button