राजनीति

डा. रमन सिंह, मेरी नजर में………..

कवर्धा नगरपालिका के विंध्यवासिनी वार्ड से एक व्यक्ति की 1990 से लेकर अब तक की राजनैतिक  यात्रा में  अगर पड़ावों पर रुक कर देखे तो ये जरूर पाएंगे कि इस व्यक्ति ने अपने नाम के  “ऋषि रमन” से एक आदर्श वाक्य को गहनता के साथ आत्मसात किया है- “मौन ही सत्य है, यह उत्तम उपदेश है, जिसे ग्रहण किया जाना चाहिए” यदि आप डा रमन सिंह से मिले तो ये जरूर पाएंगे कि उनमें मौन रहने का अद्भुद गुण है। यही मौन उन्हे  भाजपा में प्रतिष्ठित करती है।

 भारत की राजनीति में “विपक्ष” को परिभाषित करे तो 1977 के बाद 1990 में गैर कांग्रेसी सरकार अस्तित्व में  आई थी।इसी दौर में कवर्धा नगर पालिका की स्थानीय राजनीति से डा रमन सिंह का सफर विधायक के रूप में शुरू हुआ। 1990और1993में डा रमन सिंह विधायक बने। उनकी अग्नि परीक्षा का वर्ष1999था जब उन्हें राजनांदगांव  लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के सशक्त मोतीलाल वोरा के सामने खड़ा कर दिया गया। इस अग्नि परीक्षा में डा रमन सिंह की जीत ने भाजपा को एक ऐसी नींव दिया जिसके चलते जब नव राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया तो पहली निर्वाचित सरकार भाजपा की बनी और डा रमन सिंह ही मुख्य मंत्री बने।

 अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में डा रमन सिंह  वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री थे। छत्तीसगढ़ में विभाजन के कारण विधायको की संख्या अधिक  होने के कारण कांग्रेस की सरकार बनी।अजीत जोगी मुख्य मंत्री बने। अजीत जोगी ने खुद को निरंकुश शासक के रूप में स्थापित करने की कोशिश की ऐसे दौर में डा रमन सिंह को छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बना कर राजनीति का खांडवप्रस्थ सौपा गया था। इस कार्य के लिए कई दिग्गज राजनीतिज्ञो को परखा गया था लेकिन उन्होंने केंद्र की राजनीति को प्रमुखता दी। डा रमन सिंह ने अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में जिम्मेदारी स्वीकार की। अजीत जोगी भाजपा में सेंध लगा चुके थे लेकिन वे भूल गए थे कि छत्तीसगढ़ में  निरंकुशता स्वीकार्य नहीं है। डा रमन सिंह की रणनीति और मेहनत ने परिणाम दिया और भाजपा को बहुमत मिला।

  2004से डा रमन सिंह छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री के रूप में शपथ लेकर 2018तक आसीन रहे। उनके हिस्से में  जितने भी कार्य और दायित्व आए उनमें से आम आदमी के भूख से निजात के लिए भोजन की व्यवस्था का कार्य था। मैनुअल राशनकार्ड से  कम्प्यूटराइस्ड राशनकार्ड का निर्माण से लेकर समयबद्ध राशन भंडारण और वितरण के कार्य ने  डा रमन सिंह को “चाऊंर वाले बाबा”के रूप में स्थापित कर दिया। देश के सभी राज्यों के लिए प्रदेश की राशन वितरण प्रणाली  एक नंबर की आदर्श बनी थी। 10साल तक किसी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाना डा रमन सिंह की खासियत रही। दुर्भाग्य ये भी रहा कि 2018में कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रदेश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली  को “निजी वितरण प्रणाली” बना दिया गया। देश  में 1नंबर की शानदार व्यवस्था को घटिया बनाकर 18वे नंबर पर पटक दिया।  ये अव्यवस्था उनकी निजी पीड़ा रही और 2019से लेकर2023तक वे सदन में, मीडिया में, जनसभा में मुद्दा उठाते रहे।पिछली सरकार ने जिद पकड़ी थी सो लीपापोती होती रही लेकिन अब फिर से भाजपा की सरकार आई है तो सीबीआई जांच होगी ऐसे संकेत मिल रहे है।

 डा रमन सिंह ने धान के कटोरे कहे जाने वाले राज्य के 28लाख किसानों के धान उपज के लिए शून्य प्रतिशत में ऋण और खरीदी के साथ बोनस की नीति ने उन्हें हैट्रिक दिलाई थी। अगर 2013 में केंद्र शासन उनके बोनस योजना को अवरोधित नही करता तो चौथे  बार भी डा रमन सिंह मुख्यमंत्री रहते। दो साल का बोनस नहीं दिया जाना वादा खिलाफी  माना गया और किसानों ने माफ नही किया। इस बात को ऐसे भी समझे कि 2023में कांग्रेस ने 3200रूपये क्विंटल में धान खरीदी की घोषणा की थी,कर्जा माफी का भी आश्वासन दिया था लेकिन किसानों ने अस्वीकार  कर दिया । 2018 में यदि बोनस नियमित रहता तो पराजय नहीं होती।

2018में भाजपा विपक्ष में उसी संख्या पर आई जहां  2003में  थी। ये पराजय डा रमन सिंह की व्यक्तिगत पराजय के रूप में देखी गई।  अगर दिल्ली के सूत्रों की माने तो बीते 5सालो में डा रमन सिंह के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के अलावा राज्यपाल बनने की भी चर्चाएं हवा में रही । ये भी सुना गया कि2018 अपनी असफलता को डा रमन सिंह 2023में सफलता के रूप में परिवर्तित करने की गहन मंशा रखते है। इस कारण सविनय 2023 तक राज्य में पार्टी हित की बात को तवज्जो दिया। उनकी पार्टी पुनः बहुमत के साथ सत्ता में लौटी। तीन राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में नए मुख्यमंत्री बने।छत्तीसगढ़ छोड़ दो राज्यो के पूर्व मुख्यमंत्री को  सत्ता में सहभागिता नही दी गई लेकिन डा रमन सिंह को विधान सभा का अध्यक्ष बनाया जाना, उनकी पार्टी के आदेश के पालन के 2003के इतिहास की पुनरावृति है। 

 किसी भी पार्टी में कर्तव्यनिष्ठ होना प्रथम अनिवार्यता है,अनुशासित होना दूसरी ओर आज्ञा पालन तीसरा गुण होता है। डा रमन सिंह में सभी गुण है। उम्मीद है कि वे विधानसभा की आसंदी से एक ऐसा उदाहरण जैसा कि चाऊर वाले बाबा के रूप में की थी पुनः आसंदी वाले बाबा के रूप में करेंगे। अगले पांच साल मुख्य मंत्री  सहित  नेता प्रति पक्ष, 12मंत्री सहित पक्ष के 41विधायक सहित प्रतिपक्ष के 34विधायक अध्यक्ष जी संबोधन के लिए तैयार रहे।

स्तंभकार-संजय दुबे

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