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राहुल गांधी जैसे ही एक मामले में चुनाव आयोग-मोदी सरकार ने अपने सहयोगी को अयोग्यता से बचाया था

नई दिल्ली,एजेंसी, जिस तेजी से कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी को एक आपराधिक मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अयोग्य घोषित किया गया और जैसी कि संभावना है कि उनकी सजा समाप्ति के बाद वे छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होंगे, यह हाल ही में एक क्षेत्रीय नेता द्वारा मुख्यमंत्री बनने के लिए कानून को धता बताने की उस घटना के विपरीत है जिसमें उक्त नेता की नरेंद्र मोदी सरकार और यहां तक कि भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने भी मदद की थी.

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 8 के अनुसार, अगर एक मौजूदा विधायक, एमएलसी या सांसद ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है जिसमें कम से कम दो साल के कारावास की सजा हो तो वह सजा के आदेश वाली तारीख से ही विधानसभा/संसद से अयोग्य घोषित हो जाएगा. साथ ही, जेल से बाहर आने के बाद भी अगले छह साल की अवधि तक अयोग्य बना रहेगा. इसलिए वह इस अवधि में चुनाव नहीं लड़ सकता/सकती है.

इसलिए, अगर राहुल गांधी को अदास्लत द्वारा सुनाई गई दो साल की सजा प्रभावी हो जाती है और वह इस पर उच्च न्यायालय से रोक लगवाने में विफल रहते हैं तो पूरी संभावना है कि उन्हें करीब आठ वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाएगा.

बहरहाल, राहुल गांधी को अयोग्य घोषित करने में लोकसभा सचिवालय द्वारा अभूतपूर्व तत्परता दिखाई गई और अदालती फैसले के अगले ही दिन उन्हें संसद से निष्काषित कर दिया. इस मौके पर, एक ऐसे ही अभूतपूर्व कदम को याद करना महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें अक्टूबर 2019 में ईसीआई ने सिक्किम के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी प्रेम सिंह तमांग गोले को इस कानून से सुरक्षा प्रदान की थी.

एक और अभूतपूर्व क़दम, लेकिन परिणाम अलग

2010 में गोले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) सरकार में मंत्री थे. तब राज्य सतर्कता विभाग ने पशुपालन विभाग में 9.5 लाख रुपये की हेराफेरी को लेकर एक मामला दर्ज किया था. इसमें गोले के खिलाफ आरोप था कि उन्होंने राज्य सरकार की एक योजना के तहत गायों को खरीदने के लिए जनता को वितरित की जाने वाली राशि का गबन किया था. उन्होंने जल्द ही एसडीएफ छोड़ दी थी.

दिसंबर 2016 में गोले को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा एक साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी. जून 2017 में सिक्किम हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा, जिससे गोले पर कानून के समक्ष आत्मसमर्पण करने का दबाव बढ़ गया.

सत्र अदालत के फैसले के बाद गोले छिप गए थे. अगस्त 2017 में उन्होंने गंगटोक के सिची में जिला एवं सत्र अदालत में आत्मसमर्पण किया और फिर राजधानी गंगटोक की रोंगयेक जेल में उनके एक साल के कारावास की सजा शुरू हुई.

गोले ने इस मामले को एसडीएफ सुप्रीमो और तत्कालीन मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग द्वारा उनके खिलाफ ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ करार दिया. उन्होंने अगस्त 2018 में अपनी जेल की अवधि पूरी की और अपना खुद का क्षेत्रीय दल  सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) बनाया.

2018 के विधानसभा के चुनावों में गोले ने 25 साल के एसडीएफ शासन के खिलाफ अभियान का नेतृत्व तो किया, लेकिन खुद चुनाव लड़ने से दूर रहे क्योंकि यह माना गया था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-8 उन्हें भ्रष्ट आचरण के आधार पर अयोग्य घोषित कर देगी.

दिलचस्प बात यह थी कि तब तक भाजपा ने गोले की पार्टी के साथ तालमेल बिठाने के लिए एसडीएफ का साथ छोड़ दिया था- सिर्फ इसलिए क्योंकि चामलिंग चुनाव पूर्व गठबंधन में पूर्वोत्तर राज्य में राष्ट्रीय पार्टी को जगह देने के लिए राजी नहीं थे- हालांकि गोले भाजपा की शर्तों पर राजी थे बशर्ते उनकी पार्टी 32 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत हासिल करने में कामयाब रही तो उन्हें मुख्यमंत्री बनने के लिए सुरक्षा कवच मिले.

इसके बाद एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में  एस कीम भी भाजपा के नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का हिस्सा बन गई और इसकी कट्टर दुश्मन एसडीएफ भी इसका हिस्सा बनी रही. भाजपा ने जल्द ही एसकेएम के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन किया. हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार के नागरिकता विधेयक में संशोधन के फैसले के खिलाफ जनता के रुख को देखते हुए एसकेएम को औपचारिक गठबंधन से बाहर निकलना पड़ा.

2018 में मतगणना के बाद एसकेएम को 17 सीटें मिलीं, जबकि चामलिंग की पार्टी को 13 सीटों पर जीत मिली. फिर सवाल पूछा गया कि अगर गोले नहीं तो कौन मुख्यमंत्री बनेगा?

एसकेएम के अंदरूनी सूत्रों ने तब खुलासा किया कि नई दिल्ली से मदद का आश्वासन मिलने के बाद, एसकेएम ने गोले को विधायक दल का नेता चुन लिया. जल्द ही, राज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया.

नाराज एसडीएफ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिका में एक तर्क यह था कि राज्यपाल गंगा प्रसाद का निमंत्रण तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2001 के फैसले का उल्लंघन था.यहां दिलचस्प मोदी सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका है जिसने गोले और राज्यपाल को पांच जजों की पीठ के आदेश के खिलाफ जाने दिया.

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