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आईएएस 4 लड़कियां जो trailblazers बनी है …..

 कभी कभी हमारे इर्दगिर्द ऐसी घटनाएं घटित होती है कि उनका असर बहुत दिनों तक मनोमस्तिष्क पर थम सा जाता है। क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया क्या प्रिंट मीडिया और क्या सोशल मीडिया, सभी जगहों पर  घटना सुर्ख हो जाती है। बात भविष्य की उन 4 आईएएस महिला अफसरों की है जो 4दिन बाद भी अपनी मेहनत के परिणाम के कारण आम घरों में चर्चा  का विषय बनी है। इसलिए नही कि वे पहले चार  स्थानों पर लड़को को  पीछे कर सामने आई है बल्कि इसलिए कि वे असफलता का स्वाद भी चखी है।इस असफलता से उन्होंने सफल होने की सीख ली और हम सबको ये सीख भी दी कि लगन रहे तो कुछ भी सम्भव है। 

  सबसे पहले बात करे चारो लड़कियों के आईएएस बनने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की। यूपीएससी की भारतीय प्रसाशनिक सेवा के लिए उम्र और अवसर निर्धारित है। सामान्य परीक्षार्थियों के लिए 32 साल औऱ 6 अवसर, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 35 साल 9 अवसर औऱ अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए 37 साल औऱ इस अवधि में जितने भी अवसर ले सकने की पात्रता है।

 3रे स्थान पर आई उमा हराथी एन को  पांचवी बार मे सफलता मिली है। पहले औऱ चौथे स्थान पर आई इशिता किशोर औऱ स्मृति मिश्रा को तीसरे प्रयास में सफलता मिली। दूसरे स्थान पर आई गरिमा लोहिया को दूसरी बार मे ही सफलता मिल गयी।

 पहली बार मे सफलता मिल जाये तो क्या कहने लेकिन पहली बार मे असफल होने पर जब आगे के प्रयास होते है तो  प्रतिद्वंद्वियों की संख्या ही नही बढ़ती है बल्कि प्रतियोगिता भी बढ़ती है।  पहले के प्रयासों से खुद के  मेहनत पर चूक समझ आती है और जो उन्हें सुधार लेते है वे अपनी मेहनत से सफल हो जाते है। आप इशिता किशोर, गरिमा लोहिया, उमा हराथी एन के सफलता की कहानी जरूर खोज कर पढ़े क्योकि ये आपके संतान को या आपको सफल होने का मूलमंत्र तो बता ही देंगी। सभी का मानना है कि जब आप बड़े इम्तेहान में शामिल हो तो तैयारी भी वैसी ही करनी पड़ेगी। असफलता भी मिलेगी लेकिन सफलता के रास्ते भी  खुलेंगे।

इशिता औऱ गरिमा के पिता इस दुनियां में नहीं है। इस कमी के बावजूद दोनो एक औऱ दो नंबर पर है। दोनो के लिए उनकी माँ ही सब कुछ रही और त्याग उन्होंने किया इसका प्रतिफल भी सामने है।

 पुरुष सत्तात्मक समाज मे महिलाओ का आगे आना शुभ संकेत है। देश की पहली आईएएस अफसर अन्ना राजन मल्होत्रा 1951   को तो चयन समिति ने आईएएस के बजाय  भारतीय विदेश सेवा में जाने का विकल्प दिया था लेकिन वे प्रसाशनिक सेवा की जिद में रही।7 मुख्यमंत्रियो के साथ काम किया। केंद्रीय सेवा में भी रही। पद्मभूषण भी पाई। अब तो परिस्थिति बदल गयी है लेकिन पुरुषो की सोंच में बदलाव नही आया है।वे  अभी भी महिला अधिकारियों के  लिए जुदा सोच रखते है। चार महिलाओं की असफलता औऱ सफलता दोनो ही जीवन मे प्रेरणा देने वाले है । ये लोग सिखाते तो है कि कोशिश करने वालो की हार नही होती है। ये लोग सही में trailblazers है। जिन्होंने अपनी मेहनत की नई गाथा लिखी है।

स्तंभकार-संजयदुबे

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