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धुन के धोनी…………….

 आईपीएल क्रिकेट का शोर थम गया है इस शोर के साथ कि महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में चेन्नई सुपरकिंग्स ने 5वी बार ट्रॉफी जीत ली है। जीत हार खेल का हिस्सा है। खेल जगह में इतने सारे नियम कानून बन गए है कि अगर असंभव ही न हुआ तो कोई न कोई टीम जीतेगी औऱ कोई न कोई टीम हारेगी।

अहमदाबाद( अभी तक नाम नही बदला!)  के पूर्व नामित सरदार पटेल स्टेडियम( अब नरेंद्र मोदी स्टेडियम, ) में  वर्षा से बाधित मैच में 5 ओवर कम होने के बाद  10.47 रन प्रति ओवर का लक्ष्य असंभव तो नही पर कठिन था।जीतने के लिए दोनो टीम के पास बराबर अवसर थे। आखरी 3 ओवर में  सारे ड्रामे हुए जो क्रिकेट को रोमांच के चर्मोत्कर्ष पर ले गया। अंतिम ओवर 13 रन । पहले चार बॉल में 3 रन औऱ फिर सर जडेजा का 2 बॉल में एक छक्का औऱ एक चौका।  पेंडुलम की तरह कभी टाइटन तो कभी सुपरकिंग्स की तरफ लुढ़कती जीत अंततः धोनी के टीम के हाथों में आ ही गयी।

 अद्भुद,अविश्वसनीय, अविस्मरणीय पल रहे  क्रिकेट प्रेमियों के लिए जो रात ढाई बजे तक जागते हुए वो सब देखे जो देखना और नहीं भी देखना चाहते थे। सबने अपने नजरिये से मैच देखा।  टाइटन के समर्थकों ने अपने टीम के कप्तान हार्दिक पांड्या की प्रतिक्रिया को सुना। सुपरकिंग्स के समर्थकों ने रविन्द्र जडेजा को सुना लेकिन क्रिकेट प्रेमियों ने महेंद्र सिंह  को देखा भी औऱ सुना भी।

 धोनी, रेल्वे में टिकट कलेक्टर के रूप में जीवन निर्वाह के लिए गए थे। क्रिकेट कद लिए जोखिम उठाये,नौकरी छोड़ी औऱ राज्य की टीम से राष्ट्रीय टीम के सफर में न जाने कितने स्टेशनो पर रुके या नहीं रुके। मैं उनको थ्री इडियट्स का “रैंचो” कहता हूँ।  थ्री इडियट्स  का एक  गाना “कहां से आया था वो, कहां गया उसे ढूंढो…” उन पर एक हज़ार प्रतिशत लागू होता है। औसत खिलाड़ियों के सहारे, सबसे बेहतरीन फिनिशर होने के बावजूद खुद के  बल्ले से रन न बना पाने की कमी से परे 41 साल की उम्र में 5वी बार आईपीएल  ट्रॉफी उठा रहे हो तो  कोई न कोई बात इस बंदे में है तो।

 पूरे टूर्नामेंट में विकेट के आगे एमएसडी नही थे लेकिन कप्तान थे, बेहतरीन विकेटकीपर थे। शुभमन गिल, कम से कम जिस तरह से स्टम्पिंग आउट हुए, उसके अलावा किसी अन्य तरीके से शायद ही आउट होते( उनके पिछले तीन प्रदर्शन तो यहीं बता रहे थे)। इधर पैर क्रीज़ को छोड़ा उधर बेल्स बाहर।स्टंप्ड!  यही से जीत हार का सफर शुरू हुआ था।

 खेल है, डकवर्थ लुइस का नियम है तो निर्णय होता ही। हुआ भी। हारने वाले कप्तान ने धोनी से हार को बड़े दिल से स्वीकार किया। अगर हार्दिक, ऐसे ही बढ़ते गए तो भविष्य के वे भी धोनी है याने भारतीय टीम के कप्तान। कूल होने का गुण, धोनी सभी को सिखाते है।

 मैंने क्रिकेट में रेडियो युग की कमेंट्री के दौर में भी सुनील गावस्कर के लिए दीवानगी देखी।टेलीविजन युग मे भी कपिलदेव के लिए पागलपन देखा लेकिन मोबाइल युग मे भावनाओ  का समुंदर देखा तो केवल धोनी के लिए। बंदे की क्या फेन फॉलोइंग है यार!  बच्चे से लेकर बुड्ढ़े तक इस इंसान की  इन्सानियत ही देखते रह जाता है।

 इस देश मे करिश्माई नरेंद्र मोदी, अमिताभ बच्चन, रतन टाटा, जैसे  व्यक्तित्व है  जिनके चाहने वाले बेशुमार है लेकिन दिल से चाहने वाले को खोजने पर केवल  माही ही है।  सेल्यूट यार तुमको…..

स्तंभकार-संजय दुबे

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