राजनीति

प्री और पोस्ट पैड मतदाता………………….

विधानसभा चुनाव  अंततः अपने अंतिम सोपान की ओर बढ़ते जा रहा है। मिरोजम में  मतदान 7 नवम्बर को हो चुका है । मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव 17 नवंबर को पूर्ण हो जायेंगे। आगे के पखवाड़े में तेलंगाना और राजस्थान के चुनाव संपन्न होने के बाद 3 दिसंबर को “मतदाताओं” का फैसला भी आ जायेगा।

 भारत में मतदाता केवल मतदाता नहीं है बल्कि “वर्गीकृत” मतदाता है। अनेक  वर्गो में विभाजित मतदाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण वर्ग आर्थिक आधार पर विभाजित मतदाता है। अभिजात्य वर्ग, संपन्न वर्ग, मध्यम वर्ग और अंततः गरीब वर्ग। अभिजात्य वर्ग, आमतौर पर मतदान के प्रति लापरवाह होता  है। मध्यम वर्ग से कोई भी राजनेतिक दल सहयोग न ले सकता है और न ही दे सकता है। इस प्रकार का मतदाता निरपेक्ष होता है। समझदार मतदाता इसी वर्ग को माना जाता है।

गरीब वर्ग में भी दो उपवर्ग है। पहला साधारण गरीब और दूसरा अंत्योदय गरीब अर्थात गरीबों में भी गरीब। इस प्रकार के गरीब  आर्थिक विपन्नता के शीर्ष पर माने जाते है जिनके पास न तो कृषि भूमि होती है और न ही आवासीय भूमि होती है इन्हे भूमिहीन भी कहा जाता है। ये स्थाई और अस्थाई होते है। स्थाई लोग वैध  रूप से बहुत  ही छोटे घरों में न्यूनतम सुविधाओ में जीते है। काम का कोई स्थाइत्व नहीं होता हैं। दूसरे अवैध कब्जा कर झुग्गी झोपड़ी बना कर  रहते वाले होते है।अवैध बिजली जलाते है। तालाब  या सार्वजनिक नल से पानी लाते है। माना ये भी जाता है जिस दल की  सरकारें  होती है उनके पार्टी के सदस्यो के द्वारा सुनियोजित तरीके से ऐसी बसाहट की जाती है। समूचे भारत के हर नगर गांव में ये काम अबाध चल रहा है। इन्हे मतदान का अधिकार देर सबेर मिल ही जाता है। ये लोग ही सबसे ज्यादा सुविधा के आकांक्षी होते है।

 ये मान लेना चाहिए कि देश के लोकतंत्र में गरीब आदमी ही सरकार बनाने की क्षमता ज्यादा रखता है। इस कारण हर राजनैतिक दल की कोशिश होती है कि इस वर्ग को ज्यादा खुश रखा जाए।  सरकारी आंकड़े को माने तो देश में 80 करोड़ व्यक्ति याने 26 करोड़ परिवार गरीबी का जीवन जी रहे है जिन्हे मूलभूत रूप से आवास, पीने का साफ पानी, बिजली, आनाज, शिक्षा और चिकित्सा की आवश्यकता है।  वह भी मुफ्त में। इन आवश्यकताओं के अलावा  सामाजिक कार्य, दैनिक आवश्यकता की वस्तु सहित कपड़े  आदि के अलावा अन्य व्यसनो के लिए नगद राशि की जरूरत होती है।

 एक कल्याणकारी राज्य  के अवधारणा में सफल सरकार वही है जो आम गरीब व्यक्ति की आवश्यकता मुफ्त में परोस दे। आवश्यकता की पूर्ति के बाद अपेक्षा का सिद्धांत भी जन्म लेता हैं  और इन अपेक्षाओं को पूरी करने के लिए राजनैतिक दल खुद को झोंक देते है।

स्तंभकार-संजयदुबे

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