राजनीति

एक वोट की कीमत क्या होती है ?

ये अटल बिहारी वाजपेई, कृष्णमूर्ति और सी पी जोशी जान पाए कि एक वोट की कीमत क्या होती है ? दीपिका पादुकोण की पहली फिल्म “ओम शांति ओम” का एक डायलॉग बहुत चर्चित हुआ था – ‘एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू’। इसी प्रकार त्रिशूल फिल्म में संजीव कुमार का एक डायलॉग था – जानते हो, विजय और हमारे टेंडर में सिर्फ एक रूपये का फर्क है।

एक चुटकी सिंदूर और एक रूपये के समान ही एक वोट की भी कीमत कितनी होती है ये मतदाता नहीं जानते है लेकिन देश के एक पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई सहित  कर्नाटक और राजस्थान  के दो विधायक न बनने वाले इस एक वोट की कीमत को भुला नहीं सकते, आजीवन। इसके अलावा विदेशों में भी ऐसी घटनाएं हुई है जिसमे सिर्फ एक वोट के चलते जो परिवर्तन हुए वे बेमिसाल बन गए।

1999 में एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को विश्वास प्रस्ताव रखना पड़ा। विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े और सरकार गिर गई। 2004 में कर्नाटक राज्य के संथेरहाल्ली विधानसभा क्षेत्र से जेडीएस के एआर कृष्णमूर्ति को 40,751 मत मिले और कांग्रेस के आर ध्रुवनारायण को 40,752 । कृष्णमूर्ति के द्वारा अपने ड्राइवर को छुट्टी नही दी जिसके कारण ड्राइवर वोट नहीं डाल पाया था। अन्यथा टाई हो जाता।

2008 के राजस्थान के नाथद्वारा विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में कांग्रेस के सीपी जोशी को 62,215 व  भाजपा के कल्याण सिंह को 62,216 वोट मिले। तब जोशी सीएम के दावेदार थे। खास बात ये रही कि  सी पी जोशी की मां, पत्नी व ड्राइवर ने वोट नहीं डाला था।

 विदेशों में एक वोट की कीमत

1776 अमेरिका को एक वोट के कारण ही जर्मन भाषा के बदले अंग्रेजी राजभाषा को चुनने का अधिकार मिला

1875 : फ्रांस में तो सत्ता का पूरा रूप ही बदल गया था। एक वोट की जीत से ही फ्रांस में राजशाही खत्म हुई और लोकतंत्र का आगाज हुआ। वरना वहां के लोग अब तक राजशाही ही ढो रहे होते।

1876 : 19वें अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में रदरफोर्ड बी हायेस ने 185 वोट हासिल किए थे और सैमुअल टिलडेन ने 184। जबकि शुरुआती दौर में टिलडेन 2.5 लाख वोट से जीते थे।

1910 में  रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार एक वोट से चुनाव हार गया था

1923 का साल ; जर्मनी के लोगों  ने बताया था एक वोट की ताकत क्या होती है, क्योंकि साल 1923 में एडोल्फ हिटलर एक वोट के अंतर की जीत से ही नाजी दल का मुखिया बना था।

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