राजनीति

राजनीति में रिश्ता और रिश्ते में राजनीति….

सामाजिक परिवेश में संबंधों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो प्रकार के रिश्ते होते है।प्रत्यक्ष और परोक्ष।  प्रत्यक्ष रिश्ते  माता पिता के कारण बनते है। भाई, बहन, चाचा चाची, बुआ फूफा, मौसा मौसी  मामा मामी आते है। परोक्ष  रिश्ते में प्रत्यक्ष संबंध से जुड़े रिश्ते आते है। जैसे चाची  के भाई, भाभी, आदि,आदि। राजनीति में रिश्तों की सिमितता है। इस क्षेत्र में झखमारी का रिश्ता होता है।सामने वाले को क्या कहे? राजनीति पुरुष सत्तात्मक है,  दस प्रतिशत महिलाएं राजनीति में है और वे जगत दीदी तक सीमित है। रिश्ते की राजनीति में परिवारवाद जन्म लेता है, फलता है, फूलता है। लेकिन राजनीति में रिश्तेदारी  कार्यकर्ताओं की राजनैतिक मजबूरी होती है। इस कारण  वे नेतृत्व कर्ता से सामाजिक संबंध बनाने के लिए रिश्ते को राजनैतिक नाम देते है। इनमे सबसे ज्यादा प्रचलित रिश्ता “भाई” का रहा है। राजनीति में निर्वाचित जनप्रतिनिधि का मूल्य ज्यादा होता है क्योंकि वे बहुमत के नेतृत्वकर्ता हुआ करते है। अमूमन सौ  में से निन्यानवे जन प्रतिनिधि “भईया” ही कहलाए जाते है लेकिन छत्तीसगढ़ में समय के साथ राजनीति में रिश्तेदारी ने संबोधन बदला है।

 वैसे तो राजनीति में ये रिश्ता क्या कहलाता है ये अलग बात है लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति में  रिश्ते ही रिश्ते मिलते है। सर्वमान्य रिश्ते में पहला  क्रम  भईया का है। निर्वाचित जन प्रतिनिधि से उम्र में बड़े लोग भी  भईया शब्द से ही  संबोधन करते है। छत्तीसगढ़ में शुक्ल बंधु राजनैतिक रिश्तेदारी में सर्वमान्य भईया थे । श्यामा भईया और विद्या भईया। श्यामा भईया लिहाज वाले थे इस कारण लोकप्रिय भईया नही बन पाए । सही मायने में भइया थे तो विद्या भईया। दादा नाना के उम्र में भी विद्या भईया, अकेले दमदार भइया रहे।

विद्या भईया के रहते रहते मोती लाल वोरा , छत्तीसगढ़ की राजनीति में कद्दावर बने। उनके साथ रिश्ते का नया नाम आया बाबू जी। मोतीलाल वोरा आकार प्रकार से बुजुर्ग ही दिखते थे सो बाबू जी उनके नाम के साथ जुड़ गया और मोती लाल वोरा जगत बाबू जी हो गए। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दीर्घकालीन कोषाध्यक्ष भी बने तो बाबू जी ही बने रहे।भारतीय राजनीति में दो ही व्यक्ति पूर्व में जगत बाबू जी थे, राजेंद्र बाबू और बाबू जगजीवन राम। बात छत्तीसगढ़ की हो रही है तो  मध्य प्रदेश से पृथक होकर  अस्तित्व में आए राज्य छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक अफसर का आगमन हुआ। अजीत जोगी, नए राज्य  के पहले मुख्य मंत्री बने। सामाजिक रिश्ते  की जगह प्रशासनिक रिश्ते के संबोधन ने जन्म लिया।भईया राजनीति की जगह पर “साहब” शब्द का प्रवेश हुआ। मुख्य मंत्री निवास और कार्यालय में साहब-साहब गूंजने लगा। अजीत जोगी महज तीन साल  ही मुख्य मंत्री रह पाए। जग्गी हत्याकांड में “साहब” शब्द  का काफी दिनों तक बोलबाला रहा था।

 भईया, बाबू जी और साहब  का नेतृत्व कालातीत हुआ।  डा रमन सिंह मुख्यमंत्री बने तो  राजनीति में नए शब्द का प्रवेश हुआ “बाबा” का। छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पारदर्शी और जनोन्मुखी बनाने मे डा रमन सिंह देश भर में लोकप्रिय हो गए। उनको  चांऊर वाले बाबा के नाम से जाने जाना लगा। राजनीति के रिश्ते के शब्दकोश में “बाबा” नया शब्द था। डा रमन सिंह कद काठी से बाबा नही दिखते थे लेकिन कम उम्र में वे बहुत बड़े रिश्ते के नाम से प्रचलन में आ गए।

रमन सिंह पंद्रह साल तक बाबा रहे। उनकी पार्टी से सत्ता कांग्रेस को हस्तांतरित हुई तो प्रदेश में  भूपेश बघेल नए मुख्य मंत्री बने। उनको न भईया कहा गया, न बाबू जी कहा गया न ही बाबा कहा गया। राजनीति में रिश्ते का नया भावार्थ आया। टाइगर अभी जिंदा है के तर्ज पर कका अभी जिंदा है के साथ कका शब्द राजनीति के गलियारे में गूंजने लगा। रिश्ते  के काका, बड़े भाई के लिए बना है। छत्तीसगढ़ी बोली भाषा में काका को कका कहा जाता हैं। भूपेश बघेल अपने रंग रूप और व्यक्तित्व के अलावा राजनीति में छत्तीसगढ़ी फ्लेवर के कारण “कका” बने ।

अब विष्णु देव साय आए है सांय सांय करते हुए। उनके लिए फिलहाल कोई संबोधन नही बना है। राजनीति के रिश्तों की किताब में शब्द  की तलाश  जारी है। भईया, बाबू जी, साहब, बाबा, कका के बाद रिश्ते की राजनीति के लिए साय जी क्या कहलाएंगे? विष्णु को पालनहार माना जाता है। पालनहार के लिए  फिलहाल  खाली” साय जी” चल रहा है। जशपुर में प्रचलित संबोधन की तलाश जारी है।

स्तंभकार-संजयदुबे

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