
फिल्म इंडस्ट्री में अधिकांश कलाकारों के माता पिता के द्वारा दिए गए नाम के अलावा एक और नाम होता है। ये नाम फिल्म जगत में शायद नए पहचान के लिए ज्यादा होता है। अब मैं आपसे पूछूं कि बसंत कुमार शिव कुमार पांडुरंग नाम के किसी ऐसे नायक, लेखक, निर्देशक को जानते है क्या? स्वाभाविक रूप से आपका उत्तर “नहीं” ही होगा। अब अगर पूछूं गुरुदत्त को जानते है क्या? सभी का उत्तर हां ही होगा। आपको बता दूं बसंत कुमार शिव कुमार पादुकोण ही गुरुदत्त का असली नाम है।
गुरुदत्त 9 जुलाई 1925 को इस दुनियां में आए थे। महज 39 साल की उम्र में चले भी गए लेकिन एक दशक तक उन्होंने सार्थक व्यावसायिक फिल्म बनाने की जुगत लगाई और ऐसी ऐसी फिल्मे बनाई जिन्हें देखना तब के दौर में भी सुकून देता था और आज भी देता है। गुरुदत्त, नायक होने के अलावा निर्माता, निर्देशक,लेखक भी रहे। बाजी,जाल, मि एंड मिसेज55, प्यासा, कागज के फूल, काला बाजार, चौदहवीं का चांद, साहेब बीबी और गुलाम उनकी यादगार फिल्मों रही है।
गुरुदत्त की फिल्मों में सारी बातों के अलावा गाने का अहम किरदार रहा करता था। उनकी हर फिल्म के गाने यादगार है तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले(बाजी), ये रात, ये चांदनी फिर कहां( जाल), ठंडी हवा काली घटा आ गई झूम के( मि एंड मिसेज55), ये दुनियां अगर मिल भी जाए तो क्या है(प्यासा), वक्त ने किया क्या हसीं सितम तुम रहे न तुम( कागज के फूल), चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो( चौदहवीं का चांद), पिया ऐसे जिया में समाय गयो रे(साहेब बीबी और गुलाम),आज की मुलाकात बस इतनी( भरोसा) सदाबहार गाने है। गीता घोष राय चौधरी, बनाम गीता दत्त उनकी पत्नी थी जिन्होंने गुरुदत्त की अधिकांश फिल्मों के गाने गाए।गुरुदत्त की फिल्म निर्माण में समझ इतनी थी कि पूरी दुनियां उन्हें जीनियस मानती थी। उनकी फिल्म “प्यासा” को सौ सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में गिना जाता है।
एक वाक्या याद आता है गुरुदत्त की फिल्म साहेब बीबी और गुलाम का अंत उनके मित्र को पसंद नहीं आया था। गुरुदत्त को सलाह मिली कि आम दर्शक सुखद अंत (happy ending) देखना पसंद करता है। इस कारण साहेब बीबी और गुलाम का अंत बदल दो। गुरुदत्त ने सेट भी बनवा लिया, मीना कुमारी को बुला भी लिया लेकिन एन समय में फिल्म का अंत जस का तस रखा। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फिल्म और फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला। मीना कुमारी, सर्वश्रेष्ठ नायिका पुरस्कार जीती और डायरेक्टर अबरारत अल्वी को सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर का फिल्म फेयर अवार्ड मिला। गुरुदत मरा नहीं करते है….
स्तंभकार-संजयदुबे