
चरित्र के बाद स्वास्थ्य दूसरा ऐसा महत्वपूर्ण विषय जिसका ध्यान सामने वाला रखता है। कहा जाता है कि धन गया तो थोड़ा नुकसान, स्वास्थ्य गया तो बहुत कुछ गया और चरित्र गया तो सब कुछ गया । व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के लिए अमूमन चिकित्सक और चिकित्सालय पर निर्भर रहता है। चिकित्सक याने अंग्रेजी भाषा में डॉक्टर को भगवान के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। चिकित्सा को पेशा,या व्यवसाय न मान कर सेवा माना गया है।
देश में आजादी के बाद चिकित्सा सेवा के लिए डॉक्टर्स बनाने का एकाधिकार केवल सरकार के पास था। देश में सारे मेडिकल कॉलेज सरकारी नियंत्रण में था। फिजा बदली और उदारीकरण के चलते निजी(प्राइवेट) मेडिकल कॉलेज की परंपरा 1942 में हुई।वेल्लोर में क्रिश्चियन कॉलेज खुला था। इसके बाद है लोगों ने दत्ता मेघे प्राइवेट मेडिकल कॉलेज का नाम सुना था।
निजी मेडिकल कॉलेज खुलने के पीछे सबसे अच्छा उद्देश्य आरक्षण के कारण वंचित योग्य सभी संभावनाओं के पास बेहतरीन विकल्प बनना था। ये भी बात थी निजी मेडिकल कालेज को सारा कुछ अपने जेब से लगना था सो सेवा भावना के आड में व्यवसाय ने जड़ जमाना शुरू किया। महंगे फीस के आधार पर शुरुआत में सीधे प्रवेश का दौर चला।इस कारण अयोग्य लोगों को लाभ मिलने लगा। सरकारी हस्तक्षेप के चलते प्रवेश प्रक्रिया में परिवर्तन हुए।
इस बीच शिक्षा का व्यवसायीकरण का जो दौर चला वह अपने आप में अद्भुद रहा। देश की हर सेवा भावना से जुड़ा क्षेत्र में व्यवसायिका की एंट्री हो गई। व्यवसाय का फंडा है कि यहां “सुविधा शुल्क देना और लेना” अनिवार्य तत्व हो चला है। चिकित्सा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा। दो दिन पहले सीबीआई ने देश के स्वास्थ्य मंत्रालय की पोल खोल कर रख दिया।निजी मेडिकल कालेज को मान्यता और निरीक्षण के नाम पर करोड़ो रुपए की रिश्वतखोरी चल रही थी। न खाऊंगा, न खाने दूंगा कि थ्योरी पर चलने वाले देश में स्वास्थ्य के नाम पर ये कैसा खेल चल रहा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक निजी मेडिकल कालेज का भी नाम आया है। सीबीआई के अनुसार स्वास्थ मंत्रालय,राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सहित हवाला बाजार सामूहिक रूप से शामिल है।
चिकित्सकों का प्रोडक्ट देने वाले प्रोडक्शन संस्थान ही गलत बुनियाद पर खड़ा हो तो भविष्य कैसा होगा ये किसी से छिपा नहीं है। ऐसी संस्थानों की शिक्षा और चिकित्सकों को ज्ञान देने और उनको काबिल बनाए जाने पर भी प्रश्न चिन्ह लग चुका है। वैसे भी निजी चिकित्सा संस्थानों में मरीज की सेवा भावना की जगह व्यावसायिकता के आरोप सरे आम लग ही रहे है। मरीज के ठीक होने पर ठीक न मानना, अनावश्यक रूप से भर्ती रखना, दवाई न देने पर दवाई का बिल बढ़ाना,सामान्य बात हो रही है। इन सबका कारण केंद्रीय स्तर पर बढ़ता भ्रष्टाचार ही है। सरकारी चिकित्सालय में सुविधा नहीं है, निजी चिकित्सालय में लूट खसोट है।सच में स्वास्थ्य सेवा ही बीमार है।
स्तंभकार- संजयदुबे