FOREST; हरियर छत्तीसगढ के ‘जंगल में मंगल’

नारायण भोई
दागी अफसरों की फौज
छत्तीसगढ़ सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के वन विभाग में तैनात हर 5वें आईएफएस अफसर पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति, रिश्वत लेने, शासन की योजनाओं में धांधली जैसे गंभीर आरोपों की जांच चल रही है। छत्तीसगढ़ में 118 आईएफएस में 24 के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की जांच चल रही है। अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के 31 गंभीर शिकायतें भी है, जो अब सीधे विभाग के कामकाज पर प्रभाव डाल रहा है। छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता बोनस के नाम पर करोड़ों के घोटाले में भारतीय वन सेवा के अफसर अशोक पटेल के जेल जाने के बाद विभाग के कई अधिकारी भ्रष्टाचार की शिकायतों में घिरते नजर आ रहे हैं। कुछ अफसर रिटायर भी हो चुके है। एक अफसर की फाइल मंत्री के पास भी भेजी गई है।
शेरनियों की दहाड़
हरिहर छत्तीसगढ़ के जंगल में भले ही जंगल घट रहे हैं। वन्य प्राणियों की संख्या घटती जा रही है। बाघों की दहाड़ भी सुनाई नहीं देती लेकिन ‘अरण्य’ में शेरनियों की दहाड़ गूंजने लगी है। ‘अरण्य’ में नीचे से ऊपर तक अब महिला आईएफएस अफसरों का दबदबा बढने लगा है। आने वाले वर्षों में वन बल प्रमुख की कुर्सी भी इनके कब्जे में हो सकती है। ‘महानदी’ भी महिला अफसरों के हाथों में है। कांग्रेस शासन काल में एक महिला आईएफएस अफसर ने जिले के आईएएस अफसर को जमकर टक्कर दी थी। ऐसे में भविष्य में इस विभाग को भी एक महिला मंत्री की जरूरत पड़ सकती है। वैसे भी 14 सदस्यीय मंत्रिमंडल में एक ही महिला मंत्री हैं । इसलिए आने वाले समय में एक और महिला को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिल सकता है।
बैठे बिठाए मुसीबत
स्वाधीनता दिवस के एक विज्ञापन से महासमुंद वन मंडल के एक रेंजर की मुश्किलें बढ़ गई है। यह मुसीबत उन्हें बैठे बिठाए मिली है । रिटायरमेंट के लिए तीन माह बचे हैं और वह विवादों में फंस गए हैं। इसकी शिकायत भी उच्च अधिकारियों से की गई है। दरअसल इस रेजर ने दो ताकतवर नेताओं को आमने-सामने कर दिया है। विज्ञापन में प्रोटोकॉल के विपरीत अपना फोटो तो छपवाया ही बल्कि विधायक का फोटो ऊपर और संसद का फोटो नीचे करके दोनों में तनाव बढ़ा दिया है। सांसद का फोटो भला विधायक से नीचे कैसे हो सकता हैं। इसे मीडिया का करामात बताया जा रहा है। इसलिए बलरामपुर जिले के एक रेंजर ने स्वाधीनता दिवस पर अपना फोटो अकेले छपाया है। उसने वन मंडलाधिकारी को भी नजरअंदाज कर दिया । जब खुद को विज्ञापन का पैसा देना है तो दूसरों का फोटो क्यों छपवाना।
कर्मचारी नेता बुरे फंसे
बरसों से अपने साथियों को मुसीबत से बचाते आ रहे वन कर्मचारी संघ के नेता इन दिनों खुद ही मुसीबत में फंस गए हैं। वह ऐसे फंसे हैं कि उन्हें कोई बाहर निकाल भी नहीं पा रहा हैं। उनके पास बड़ा पद भी है मगर लंबे समय से निलंबित चल रहे हैं। कभी मंत्री के साथ भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं पर संबंध भी अब काम नहीं आ रहा है। इसलिए कहते हैं कि जब बुरा दिन आता है तो अपनी परछाई भी साथ नहीं देती। कुछ ऐसा ही हाल इस कर्मचारी नेता का है। अपनी पीड़ा बयान भी नहीं कर पा रहे हैं।
प्रदेश का सबसे बडा परिक्षेत्र दफ्तर
राजधानी रायपुर में जंगल है ही नहीं फिर भी यहां वन मंडल कार्यालय है लेकिन राजधानी के बीचों बीच वन परिक्षेत्र कार्यालय है। संभवत: प्रदेश का सबसे बडा परिक्षेत्र कार्यालय करोड़ों की जमीन पर है। भले ही भवन छोटा है और स्टाफ कम है लेकिन यहां पदस्थ रेंजर का हमेशा जलवा रहा है। पहले तो यहां रेंजर के बिना वन अफसरों का काम ही नहीं चलता था। भोपाल -दिल्ली से आने वाले अफसरों की अगवानी रेंजर साहब ही करते रेहे है। वैसे अभी भी ये अफसर राजधानी के वरिष्ठ अफसरों का चहेता है। बहुत सारे काम ये ही कर सकते है, दूसरा नहीं। लेकिन अब “अरण्य” के अफसरों की नज्रें इनायत नहीं हो रही है। भवन पुराने हो गए है रंगरोगन भी समय पर नहीं हो पा रहा है। दफ्तर परिसर कम पार्किंग ज्यादा लगने लगा है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में अफसर -कर्मचारियों की गाड़ियां खड़ी रहती हैं। अव्यवस्था में तब्दील हो रहे इस परिसर में व्यावसायिक लुक देकर किराए में चल रहे वन दफ्तरों के लिए भवन बनाए जा सकते हैं। ताकि कीमती जमीन की छवि भी कायम रहे।
नेताओं का चक्कर
वन विभाग में वर्षों से दैनिक वेतन पर काम कर रहे हैं कर्मचारी नियमितीकरण की मांग को लेकर वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं उनके नाम सर्वाधिक 48 दिनों तक आंदोलन करने का भी रिकॉर्ड है। लंबे आंदोलन से सरकार को नाकों चने चबा दिया था लेकिन मांग पूरी नहीं हो रही है। मानमनोव्वल के साथ हड़ताल तो वापस हुई लेकिन आश्वासन पर अमल नहीं हो रहा हैं । मंत्री विधायक सांसद सभी से मिल चुके हैं लेकिन हमेशा आश्वासन का झुनझना ही मिला है। स्थाईकरण के चक्कर में कई कर्मचारी रिटायर भी हो गए हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ में अभी विधानसभा चुनाव काफी दूर है। इसलिए वन विभाग के दैनिक वेतन भोगी मजदूर अभी नियमित हो पाएंगे इसमें संदेह है।
हम नहीं सुधरेंगे
छत्तीसगढ़ में सरकार बदल गई और नई सरकार आ गई लेकिन डेढ साल बाद भी कुछ अफसर सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं जंगल विभाग के एक अफसर का रवैया पहले जैसा था अभी भी वैसा है। उन पर अभी भी भाजपा सरकार का रंग नहीं चढ़ा है। उनकी करतूतें गाहें- बगाहें नजर आती भी रही हैं। कांग्रेस शासन काल में इस अफसर को भरी सभा में मुख्यमंत्री ने फटकार लगाई थी। यहां तक की निलंबन की चेतावनी भी दी थी। जब फटकार का कोई असर नहीं पड़ा तब भला उनसे सुधरने की उम्मीद करना फजूल है। विभागीय अफसर बेवजह उन्हें सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। इसकी शिकायत मंत्री से भी हो चुकी है ।