कला-साहित्य

GURU NANAK;क्यों मनाया जाता है वीर बाल दिवस और कौन हैं चार साहबजादे ?

गोविंद सिंह

वीर बाल दिवस क्यों मनाया जाता है ?,कौन हैं चार साहबजादे और 22 से 27 दिसंबर का रहस्य क्या है?,आज भी युवा पीढी को इसकी जानकारी नहीं है। आप लोगों को याद है 22 से 27 दिसंबर तक क्या हुआ था ? दिसंबर 1705 में इन्हीं तारीखों में चार साहबजादों की शहीदी हुई थी। श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज का पूरा परिवार बलिदान हुआ था।

पुराने समय में चार साहबजादों की शहीदी के गम में लोग जमीन पर सोते थे, शोक मनाते थे, आज के लोगों को साहबजादों की कुर्बानी याद नहीं, माता गुजरी की कुर्बानी याद नहीं, चारों साहबजादों की शहीदी का कारण सबको जानना चाहिए। छोटे साहबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को उनकी दादी माता गुजरी के आंचल से निकाल कर उनके सामने ही मुगल शासक वजीर खान ने दीवारों में चुनवा दिया था, छोटे साहबजादों के बलिदान को सहन न कर पाने के कारण दादी माता गुजरी ने भी अपने प्राण त्याग दिए क्योंकि वह इस गम को सह नहीं पाई।

फतेहगढ़ साहिब का ठंडा बुर्ज आज भी वजीर खान के जुल्मों की कहानी बयां कर रहा है, गंगू तेली की गद्दारी के कारण ही माता गुजरी और दोनों छोटे साहबजादे सरहिंद के नवाब वजीर खान के जुल्मों के शिकार हुए। गंगू तेली के विश्वासघात से वजीर खान ने माता गुजरी और साहबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को भयंकर ठंड के बावजूद ठंडे बुर्ज में बिना कंबल चादर के तीन दिनों तक रखा। गुरु को मानने वाले मोतीराम मेहरा नामक सैनिक ने एक मुस्लिम सैनिक को रिश्वत देकर दोनों छोटे साहबजादों के लिए गर्म दूध की व्यवस्था की ताकि ठंड से उन्हें कुछ राहत मिल सके । मोतीराम मेहरा ने दो दिनों तक तो छोटे साहबजादे को दूध पिलाया परंतु तीसरे दिन वह पकड़ा गया और चोरी से दूध पिलाने की सजा मोतीराम मेहरा उसकी पत्नी और उसके बच्चों को मिली। वजीर खान ने उन्हें कोल्हू में डालकर पिसवा दिया, उनके बलिदान को भी आज के लोगों को याद कराना जरूरी है।

क्रूर शासक वजीर खान द्वारा छोटे साहबजादों को दीवाल में चुनवा कर मौत के घाट उतार दिए जाने के बाद उनके दाह संस्कार के लिए टोडरमल नामक गुरु गोविंद सिंह के भक्त ने जब बहुत मिन्नत की तो वजीर खान ने शर्त रखी की टोडरमल जितनी जगह पर सोने की मोहरी रखेगा उतनी जगह ही संस्कार करने के लिए दी जाएगी। टोडरमल ने संस्कार लायक जगह के लिए अपने पास रखी तमाम सोने की मोहरें जमीन पर बिछा दीं, वजीर खान को यह नागवार गुजरा वह फिर बेईमान हो गया। उसने टोडरमल से कहा कि सोने की मोहरी बिछाना नहीं है बल्कि खड़ी करना है और जितनी जगह पर यह खड़ी होगी उतनी जगह ही मिलेगी। वजीर खान के इस फरमान से परेशान टोडरमल अपनी सारी संपत्ति खेत – मकान बेचकर और मोहरें लाकर जमीन पर खड़ी कर संस्कार लायक जमीन की व्यवस्था कर पाया और भारी मन से उसने माता गुजरी और छोटे साहबजादों को कंधे पर उठाकर उनका दाह संस्कार किया ।

दुनिया की सबसे महंगी जमीन पर छोटे साहबजादों और माता गुजरी का हुआ दाह संस्कार हुआ। कहा जाता है कि दुनिया में आज तक कहीं भी किसी ने भी इतनी महंगी जमीन नहीं खरीदी, जितनी कि टोडरमल ने माता गुजरी और छोटे साहबजादों के संस्कार के लिए खरीदी। यह दुनिया का सबसे महंगा जमीन का सौदा था। दाह संस्कार के बाद वजीर खान ने टोडरमल को भी जीवित नहीं रहने दिया। उसके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया। यह भी दुनिया को जानना जरूरी है।

सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना सरवंश बलिदान कर दिया। ऐसे गुरु गोविंद सिंह , गुरु तेग बहादुर , माता गुजरी और चार साहबजादों के बारे में आज की युवा पीढ़ी सहित छोटे बच्चों उनके माता-पिता को जानना जरूरी है ताकि वह सिख धर्म, सिखों के बलिदान के साथ-साथ देश की रक्षा, देश प्रेम को समझ सके, हिंदू धर्म को समझ सके, मुगल शासको के आतंक को समझ सके, उनकी क्रूरता को समझ सके।

चार साहबजादों के बलिदान को वीर बाल दिवस के रूप में हर साल 26 दिसंबर को मनाने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। शासन स्तर पर भी इस दिन सभी स्कूलों के अलावा बड़े कार्यक्रमों के माध्यम से जन-जन तक साहबजादों की वीरता और बलिदान का वर्णन किया जाता है बच्चों को प्रेरित किया जाता है।

माता गुजरी, मोती लाल मेहरा, टोडरमल और गंगू तेली :

चार साहिबजादों की शहादत से जुड़े अनमोल पात्र माता गुजरी, मोती लाल मेहरा, टोडरमल और गंगू तेली के विश्वासघात का जिक्र उनके बलिदान और धर्म के प्रति अडिग विश्वास को और भी गहराई से दर्शाता है। बलिदान और साहस की प्रतीक माता गुजरी, गुरु गोबिंद सिंह की माता थीं। जब गुरु गोबिंद सिंह और उनके परिवार को आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, तो माता गुजरी, अपने छोटे पोतों, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह, के साथ अलग हो गईं। सरहिंद के नवाब वजीर खान के सैनिकों ने उन्हें गंगू तेली की गद्दारी के कारण गिरफ्तार कर लिया। वजीर खान ने उन्हें कैद कर ठंडे बुर्ज (एक बर्फीली जेल) में रखा। यह जेल कठोर सर्दी के दिनों में भीषण यातना का प्रतीक थी। इसके बावजूद माता गुजरी ने अपने पोतों को धर्म और साहस पर अडिग रहने के लिए प्रेरित किया।

26 दिसंबर 1704 को, जब उनके पोतों को निर्दयता से दीवार में जिंदा चुनवाया गया, उसी दिन माता गुजरी ने अपनी आत्मा त्याग दी। उनकी इस असीम सहनशीलता और धर्मनिष्ठा का इतिहास सिख समुदाय के लिए अमर प्रेरणा है।

गद्दारी का प्रतीक गंगू तेली (गंगाराम कश्यप) गुरु गोबिंद सिंह का पूर्व सेवक था। जब आनंदपुर साहिब छोड़ने के बाद माता गुजरी और साहिबजादे उसके घर पहुंचे, तो उसने पहले उन्हें शरण दी। लेकिन लालचवश गंगू ने उनकी अमानत (स्वर्ण मुद्राओं) को हड़प लिया और उनका विश्वासघात करते हुए सरहिंद के नवाब वजीर खान को सूचना दे दी। गंगू की इस गद्दारी ने माता गुजरी और साहिबजादों की गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त किया। सिख इतिहास में गंगू तेली को विश्वासघात का प्रतीक माना जाता है।

धर्मनिष्ठ टोडरमल को धर्म के प्रति सेवा का अनुपम उदाहरण दीवार में जिंदा चुनवाने के बाद साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह के शवों का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नवाब वजीर खान ने केवल जमीन खरीदने की शर्त पर दी। यह जमीन सोने की ईंटों के बराबर माप के बाद ही उपलब्ध हो सकती थी। सरहिंद के एक धनी व्यापारी और धर्मनिष्ठ हिंदू टोडरमल ने साहिबजादों के अंतिम संस्कार के लिए अपनी पूरी संपत्ति लगा दी। उन्होंने जमीन खरीदने के लिए सोने की ईंटें दान कीं और साहिबजादों व माता गुजरी का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया। टोडरमल का यह कृत्य मानवता और धर्म के प्रति निस्वार्थ सेवा का अद्भुत उदाहरण है। उनके इस बलिदान को सिख इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है, और उनके प्रति आज भी सिख समुदाय गहरी श्रद्धा रखता है।

इतिहास का संदेश माता गुजरी का बलिदान, गंगू तेली की गद्दारी और टोडरमल की सेवा हमें जीवन में धर्म, सत्य और कर्तव्य के महत्व को समझाते हैं। यह गाथा न केवल सिख धर्म का गौरव है, बल्कि पूरे विश्व को मानवता और साहस की प्रेरणा देती है।

लेखक-सुखबीर सिंघोत्रा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button