राज्यशासन

छत्तीसगढ़ की सियासत ‘कही-सुनी’

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  रवि भोई

निगम और पंचायत चुनाव पर छाये बादल

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार निगम और पंचायत चुनाव को लेकर अब तक रुख साफ़ नहीं कर पाई है। महापौर और जिला पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण को लेकर जिस तरह तारीख बढ़ रही है, उससे साफ़ लग रहा है कि दोनों चुनाव जल्दी नहीं होने वाले हैं। चर्चा है कि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा अभी अपनी जमीन मजबूत नहीं पा रही है। कहते हैं चुनाव से पहले भाजपा पंचायतों और निकायों में आधार जमाना चाहती है। 14 नगर निगमों में से 13 में अभी कांग्रेस नेता महापौर हैं। इसी तरह कई पालिका अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष भी कांग्रेसी हैं। अधिकांश नगर निगमों में महापौर का कार्यकाल जनवरी के पहले हफ्ते में ख़त्म होने जा रहा है, ऐसे में नगर निगमों में प्रशासकों की नियुक्ति तय मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि जनवरी में स्थानीय निकायों के चुनाव न होने पर मतदाता सूची का लोचा भी आएगा। नए सिरे से पुनरीक्षण करना होगा। फरवरी से स्कूली परीक्षा भी शुरू हो जाएगी। इस कारण कहा जा रहा है कि निकाय और पंचायत चुनाव अप्रैल-मई तक के लिए खिसक सकता है। निकाय और पंचायत की तारीख भले तय नहीं हो पा रही, पर दावेदारों की होड़ तो लगनी शुरू हो गई है।

अगला प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कौन होगा ?

भाजपा में इन दिनों संगठन चुनाव चल रहा है। अधिकांश मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति हो चुकी है। इक्के-दुक्के जगह बचे हैं। बताते है विवाद या आपत्ति के चलते कुछ मंडल अध्यक्ष की घोषणा रुकी है। जिला अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों को घोषणा जल्द होने की उम्मीद है। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा होगी। अरुण साव के मंत्री बनने के बाद पार्टी हाईकमान ने किरणदेव को करीब सालभर पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाया था। प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री होने के कारण प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का पद सामान्य या अन्य पिछड़े वर्ग के नेता को देने चर्चा है। किरण देव को मंत्री बनाए जाने की सुगबुगाहट है। बस्तर से अभी केदार कश्यप ही मंत्री हैं। बस्तर से किरण देव के अलावा और भी दावेदार हैं, ऐसे में किरण देव मंत्री नहीं बनते हैं, तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने रह सकते हैं। किरण देव के मंत्री बनने की स्थिति में प्रदेश अध्यक्ष का पद किसी ओबीसी नेता को मिलने की चर्चा है।

डीजीपी के पैनल पर ग्रहण

छत्तीसगढ़ सरकार ने नए डीजीपी के लिए तीन अफसरों का पैनल भारत सरकार को भेजा था। पैनल में अरुणदेव गौतम, पवनदेव और हिमांशु गुप्ता का नाम यूपीएससी को गया था। कहते हैं यूपीएससी ने आपत्ति के साथ राज्य सरकार को प्रस्ताव लौटा दिया है। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ के एक सीनियर आईपीएस द्वारा यूपीएससी को लिखे पत्र के बाद पैनल को वापस कर दिया गया। राज्य सरकार ने पहले डीजीपी के लिए विचार क्षेत्र में पांच अफसरों का नाम रखा था, बाद में दो नाम हटाकर यूपीएससी को प्रस्ताव भेजा गया। पहले विचार क्षेत्र में रखे एक अफसर ने ही पैनल को लेकर यूपीएससी के सामने आपत्ति की है। यूपीएससी से डीजीपी का पैनल लौटने का मतलब चयन प्रक्रिया पर ग्रहण लगना है। अब देखते हैं नया पैनल यूपीएससी को जाता है या फिर डीजीपी अशोक जुनेजा साहब की लाटरी लगती है। अशोक जुनेजा अभी एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। छह फरवरी तक उनका कार्यकाल है।

स्वास्थ्य को सवारेंगे अमित कटारिया

कहते हैं न सब्र का फल मीठा होता है, ऐसा ही कुछ आईएएस अमित कटारिया के साथ हुआ। पोस्टिंग के लिए महीने भर से ज्यादा इंतजार के बाद 2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया को सरकार ने स्वास्थ्य विभाग का सचिव बना दिया। बताते हैं आजकल स्वास्थ्य विभाग में मोटा बजट है। भारत सरकार से भी फंड आता है। स्वास्थ्य विभाग इन दिनों कुछ ज्यादा चर्चा में भी है। अमित कटारिया भारत सरकार में शहरी विकास विभाग में रहे हैं। वे कुछ महीने पहले ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे हैं। दिल्ली से रायपुर लौटने के बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। अमित कटारिया को राज्य के एक मंत्री का काफी पसंदीदा कहा जा रहा है। चर्चा है कि मंत्री के कनेक्शन के कारण उन्हें स्वास्थ्य जैसा बड़ा महकमा मिला है।

क्या भूपेश बघेल आ सकते हैं ईडी की जद में

शराब घोटाले में पूर्व मंत्री और कोंटा विधायक कवासी लखमा पर ईडी की नजरें टेढ़ी होने के बाद लोग कयास लगाने लगे हैं कि ईडी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी दरवाजा खटखटा सकती है। शराब घोटाले में अभी कई अफसर सलाखों के पीछे हैं। ईडी ने शराब घोटाले में पहली बार राजनीतिक व्यक्ति को निशाने पर लिया है। ईडी ने कवासी के साथ कांग्रेस के एक नेता के घर पर भी रेड डाला है। ऐसे में माना जा रहा है कि ईडी शराब घोटाले की तह तक जाना चाहती है। कवासी लखमा को अक्षर ज्ञान नहीं है, ऐसे में आबकारी विभाग की फाइलों का निपटारा कौन करता था, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। चर्चा है कि ईडी प्यादों के सहारे राजा तक पहुंचना चाहती है।

सीएमओ में डॉ रमन की छाप

1997 बैच के आईएएस सुबोध सिंह के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के प्रमुख सचिव बनने के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की छाप दिखाई देने लगी है। मुख्यमंत्री सचिवालय में 2005 बैच के आईएएस मुकेश बंसल भी आ गए हैं, उन्हें भी मुख्यमंत्री का सचिव बना दिया गया है। सुबोध सिंह और मुकेश बंसल दोनों ही डॉ रमन की सरकार में मुख्यमंत्री सचिवालय में रह चुके हैं। अभी मुकेश बंसल वित्त और सामान्य प्रशासन विभाग के भी सचिव हैं। सीएमओ में मुकेश बंसल की पोस्टिंग के बाद अब मुख्यमंत्री के चार सचिव हो गए हैं। आईएएस पी दयानंद, बसवराजू और आईपीएस राहुल भगत पहले से सचिव थे।

जीपी सिंह को पोस्टिंग का इंतजार

बहाली के बाद आईपीएस जीपी सिंह ने पिछले दिनों पुलिस मुख्यालय में ज्वाइनिंग दे दी। ज्वाइनिंग के बाद उन्हें अभी कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। 1994 बैच के आईपीएस जीपी सिंह अभी एडीजी स्तर के अधिकारी हैं। बर्खास्तगी के चलते वे प्रमोशन में पीछे छूट गए। उनके बैच के आईपीएस अधिकारी हिमांशु गुप्ता डीजी बन गए हैं।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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