HINDI;हिन्दी हमारी संस्कृति, इसके बिना विकसित भारत के निर्माण की परिकल्पना बेमानी

0 हिन्दी पखवाड़े के समापन पर कृषि विश्वविद्यालय में एक दिवसीय संगोष्ठी
रायपुर, हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं बल्कि यह हमारी संस्कृति है, संस्कार है, चेतना है और भारत की आत्मा है। हिन्दी के उपयोग के बिना विकसित भारत की परिकल्पना नहीं की जा सकती। विकसित भारत की निर्माण में हिन्दी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राजभाषा के साथ-साथ संपर्क तथा समन्वय की भाषा भी है और भारत के विभिन्न राज्यों को एक सूत्र में पिरोती है।
यह विचार इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में आज यहां हिन्दी पखवाड़ा 2025 के समापन के अवसर पर ‘‘विकसित भारत के निर्माण में हिन्दी की भूमिका’’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में वक्ताओं द्वारा व्यक्त किये गये। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि भारत के विकास में हिन्दी ने अहम योगदान दिया है। हिन्दी में शिक्षा देने से अधिक लोगों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है। हिन्दी एक साझा भाषा के रूप में देश के विभिन्न राज्यों के लोगों को जोड़ने में मदद कर सकती है जिससे आपसी संचार और एकता में आसानी होगी। भारत की समृद्ध सांस्कृत विरासत को संरक्षित और प्रसारित करने में हिन्दी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
वक्ता के रूप में डॉ. चितरंजन कर ने कहा कि हिन्दी राजभाषा के साथ-साथ भारत की सामाजिक – सांस्कृतिक संपर्क भाषा भी है। यह हमारी संस्कृति है, अस्मिता है। उन्होनें कहा कि हिन्दी जनसंख्या के आधार पर विश्व में दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। आज भारत के अलावा दुनिया के अन्य कई देशों में भी हिन्दी बोली और पढ़ी जा रही है। जिस दिन हमारे देश वासियों में हिन्दी के प्रति गौरव की चेतना का विकास हो जाएगा, भारत तब एक विकसित देश के रूप में पहचान बना लेगा।
वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हिन्दी पूरी दुनिया में फैल रही है लेकिन दुर्भाग्य है कि भारत में सिमटती जा रही है। इसका मुख्य कारण हम लोगों में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रगौरव के भावना में कमी है। छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष शशांक शर्मा ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के उपरांत दो साल ग्यारह महिनों तक चली संविधान सभा की बैठकों में काफी अंतर्द्वदों के पश्चात हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई लेकिन आज भी हिन्दी के महत्व को रेखांकित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. संजय शर्मा ने स्वागत भाषण दिया। आयोजन सचिव एवं प्रभारी राजभाषा प्रकोष्ठ के प्रभारी संजय नैयर ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राकेश बनवासी ने किया। इस अवसर पर विभिन्न साहित्यिक प्रतियोगिताओं विजेता रहे प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया।