राजनीति

POLITICS; ‘घर-घर सिंदूर’ बांटने की योजना हुई विवादित

कालम

लेखक-इंजीनियर तपन चक्रवर्ती

पहलगाम में हुये आतंकी हमले से 27 पर्यटकों की जान चले जाने के बाद 6-7 मई की रात से 10 मई तक भारतीय सेना ने ‘‘आपरेश्न-सिंदूर’’ के जरिये पड़ोसी मूल्क के 11 आतंकवादीयों के ठिकानों को नष्ट कर दिया। भारतीय सेनाओं की वीरता और अदम्य साहस के आगे प्रत्येक देशवासी नतमस्तक है। अचानक ‘‘युद्धविराम’’ की घोषणा से देश जरूर हैरान हुआ है कि अन्य किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को क्यों माना गया है। यह ‘‘शिमला समझौता’’ का उल्लंघन है।

1971 को हुई पड़ोसी देश के साथ युद्ध में अमेरिका की मध्यस्थता को अस्वीकार करते हुए युद्ध हुआ और पड़ोसी मूल्क को दो-टुकड़े में बांट दिया गया। इस ऐताहासिक युद्ध सें नया मूल्क ‘‘बग्लादेश’’ का जन्म हुआ और पड़ोसी मूल्क के 90,000 सैनिकों के आत्मसमर्पण एवं शर्तो के उपरांत ही ‘‘युद्ध विराम’’ की घोषणा हुई थी। किंतु 10 मई 2025 को अमेरिका के द्वारा भेजे गये मात्र संदेश के जरिये ‘‘युद्ध विराम’’ की घोषणा से देश के सेनाओं का अपमान हुआ है। भेजे गये संदेश में कहा गया है कि-‘‘भविष्य में व्यापार नही होगा’’ देश हैरान जरूर हुआ है और सभी देशवासियों के मन मे यह प्रश्न बार-बार उठता है कि- देश की शान को ‘‘व्यापार के आगे क्यो झुक गया है? क्या देश की शान व्यापारियों के अधीन हो गया है?
भारतीय सेना द्वारा 6-7 मई से 10 मई तक पड़ोसी मूल्क से हुई ‘‘युद्ध’’ को ‘‘आपरेशन-सिंदूर’’ का नाम देकर शहादत हुए वीर-सैनिक एवं 27 मासूम पर्यटकों को उचित सम्मान में दिया गया है। देश की शान और मान की रक्षा, भारतीय सेनाओं द्वारा अपनी जान देकर करते आ रहा है। किंतु शर्म की बात है कि- देश मे सेना की वीरता को नजर अंदाज करते हुए, सेना की पोशाक पहने आदमकद के कट-आऊट, बढ़े-बढ़े शहरों के चौक-चौराहो में लगाकार सिर्फ चुनाव-जितने के लिए लगाना, एक हास्यास्पद नजीर बन गया है। और तो और मन तभी और दुखता है- जब देश की जनता ‘‘हास्यास्पद-घटना’’ को ‘‘वीरता का प्रतीक’’ मानकर स्वागत के लिए खड़ी रहती है।

इससे ज्यादा लज्जाजनक स्थिति है कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं द्वारा देश की सेना का लगातार अपमान करने में लगे है। इन सभी नेताओं का कहना है कि पड़ोसी-मूल्क को सबक, सिर्फ हमारे महामानव प्रधान के नाम पर होना चाहिए। क्योंकि इनके चरणों मे देश और देश की सेना नतमस्तक है। इस तरह सत्ता के नशे मे मग्न, नौटंकीबाज जमुरे से देश परेशान है। महामानव की चालीसा से झूठी अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से देश, प्रगति की दौड़ में बहुत ही पीछे हो चुकी है। मौजूदा व्यवस्था, दिशाहीन और लक्ष्यहीन होने के कारण देश-बर्बादी के कगार पर है।

आज देश का कोई भी मित्र-देश नही है। कई पड़ोसी मूल्कों के साथ रिश्तों में ‘‘खटासपन’’ आ चुकी है। इसकी वजह, सिर्फ कमजोर-विदेशनीति के तहत लिये गये निर्णय और कार्यवाही को माना गया है। 9 जून 2025 को ‘‘तीसरी बार’’ सत्तासीन की वर्षगांठ को ‘‘आपरेशन-सिंदूर’’ की सफलता को ‘‘घर-घर-सिंदूर की ढीबिया’’ भेजने की योजना का खूब प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। भारतीय संस्कृति में भारतीय विवाहित महिलायें सिर्फ अपने पति के नाम पर सिंदूर को लगाती है। और आज ‘‘आपरेशन सिंदूर’’ ब्रांड-सिंदूर की ढीबिया को, बेशर्म हो चुकी सत्तापक्ष के कार्यकताओं द्वारा ‘‘घर-घर-सिंदूर’’ विवाहित महिलाओं को देने का निर्णय लिया गया है। यह कृत्य, अशोभनीय और विवाहित महिलाओं का अपमान माना गया है।

भारतीय संस्कृति में ‘‘सिंदूर’’विवाहित महिलाओं का आत्म सम्मान का प्रतीक होता है। ऐसे में विवाहित महिलायें अपरिचित के द्वारा भेजा गया ‘‘सिंदूर’’ को अपने माथे में क्यों लगाईगी? दूसरी तरफ सत्तापक्ष द्वारा नारीशक्ति का ढोल बजाकर शोर जरूर मचाती है। ‘‘घर-घर सिंदूर की ढीबिया’’ भेजने की जगह ‘‘घर-घर नौकरी का नियुक्ती-पत्र’’देने पर सरकार की उदारता का परिचय मिलेगा। महिलाओं के शोषण को छुपाने के लिए ‘‘बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं’’ का नारा दिया गया है। मन में खौफ है कि, देश की बेटियो को किससे बचाये ? और बेटी को कैसे पढ़ाये? (स्कूल और कालेजों में भी असुरक्षित है) समाजिक बुराइयों से लिप्त, छुपी हुई नारों से देश में डर का माहौल बना हुआ है। जब दमनकारी नीति समाज पर हावी होता है तब क्रांति आती है। किंतु तानाशाह महामानव ने ‘‘क्रांति’’ से भी समझौता कर लिया है। ‘‘घर-घर सिंदूर’’ भेजने की योजना का पूरे देश में विवाहित महिलाओं द्वारा तीखी अलोचना एवं एक सुर में कड़ा विरोध किया जा रहा है।
आज देश विषम परिस्थिती से गुजर रहा है। और देश के राजनेताओं में ‘‘अर्थ-प्रेम’’ होने के कारण देश और समाज की रीति और नीति नही बची है। सत्तापक्ष का महामानव 24ग7 घंटे चुनावी मोड मे रहने के कारण, देश की जनता ‘‘खेला’’ बन चुकी है। देश मे आतंकी घटना को ‘‘इवेंट’’ बनाकर, चुनावी-लाभ लेने का प्रयास जारी है। यह खेला तब-तक जारी रहेगा, जब तक इस घिनौने ‘‘खेला’’ में देश की जनता मुक-दर्शक बनी रहेगी।

( यह लेखक के विचार हैं)

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