कला-साहित्य

MEMORIES; छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र ने माटी से जोड़ा नाता …

सुरेंद्र दुबे

बड़े शौक से सुन रहा था कविता तुम्हारी, तुम्ही सो गए कविता कहते कहते। मुझे याद नहीं आता कि मैं कितने सालों से कवि सुरेन्द्र दुबे को कवि सम्मेलन में प्रत्यक्ष सुनते आया हूं। मुझे ये भी याद नहीं है कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म में गाहे बेगाहे  सुरेन्द्र दुबे को भाव विभोर कर सुनता रहा हूं
छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से पृथक होकर स्वतंत्र राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी बोली को प्रमुखता मिलने लगी थी लेकिन देश विदेश के सार्वजनिक मंच में कविता के माध्यम से छत्तीसगढ़ी बोली को स्वीकार्यता दिलाने का इकलौता कार्य किसी ने किया तो वे कवि सुरेन्द्र दुबे थे।
ऐसा माना जाता है कि हास्य बोध को कविता के माध्यम से जगाना कठिन काम होता है।कवि सुरेन्द्र दुबे ने बड़ी सहजता के साथ इस कार्य को न जाने कितने सालों से करते रहे।
केवल हास्य रस तक ही कवि सुरेन्द्र दुबे सीमित नहीं थे उन्होंने गंभीरता के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और संस्कृति  व्यवस्था में बढ़ती कुव्यवस्था पर शाब्दिक प्रहार किया।
उनके सामयिक होने का भी बड़ा मसला हुआ करता था। वे समय से पीछे नहीं बल्कि समय से आगे चलकर कवित्व को जिंदा रखे हुए थे। उनकी न जाने न कितनी कविता के शब्द मनो  मस्तिष्क में आ जा रहे है लेकिन जिस उम्र में वे गए उस उम्र में छत्तीसगढ़ी बोली में  वे सियान(उम्रदराज) हो गए थे याने पीपल का झाड़। इसी सियान पर उनकी कविता श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है………….
सियान तरिया के पीपल हे
सियान आंगन के तुलसी हे
सियान मिट्ठू हे कोयल हे मैना हे
सियान लइका मन के खिलौना हे
सियान होरी हे देवारी हे त्यौहार हे
सियान नई हे तो सबो तिहार बेकार हे
मान सकते है कि छत्तीसगढ़ का एक पीपल,एक तुलसी, एक मिट्ठू, एक कोयल,एक मैना,एक होरी एक देवारी ह सरग के रद्दा रेंग दिस| श्रद्धांजलि कवि सुरेन्द्र दुबे ……………

स्तंभकार -संजयदुबे

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