POLITICS; स्पीकर पद पर केंद्र को समर्थन का ऐलान, फिर क्यों विपक्ष ने ओम बिरला के खिलाफ उतार दिया उम्मीदवार, घंटेभर में कैसे बिगड़ गई बात ?
नई दिल्ली, देश की राजनीति में जो पहले कभी नहीं हुआ वह अब होने जा रहा है। 26 जून की सुबह लोकसभा स्पीकर के पद के लिए वोटिंग होगी। स्पीकर पद पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आम सहमति ना बनने के कारण चुनाव की नौबत आई है। एनडीए ने एक बार फिर ओम बिरला को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं, आईएनडीआईए की तरफ से के सुरेश ने पर्चा दाखिल किया है।
लोकसभा स्पीकर को लेकर मंगलवार सुबह से ही सियासी माहौल गरमाया हुआ था। शुरुआत में उम्मीद जताई जा रही थी कि स्पीकर पद पर दोनों पक्षों के बीच सहमति बन गई है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर केंद्र को समर्थन देने का भी एलान किया था। हालांकि, घंटेभर बाद ही विपक्ष ने ओम बिरला के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया।
स्पीकर पद पर आम सहमति के लिए रक्षा मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने विपक्षी नेताओं से मुलाकात भी की। राजनाथ ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और डीएमके नेता एम स्टालिन से बातचीत भी की थी, लेकिन बात नहीं बनी।
राहुल ने किया था समर्थन का ऐलान
आज सुबह करीब 11 बजे राहुल गांधी ने स्पीकर के मुद्दे पर केंद्र सरकार को समर्थन देने का एलान किया था। राहुल ने कहा था कि हम स्पीकर के पद पर सरकार का समर्थन करेंगे, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को मिलना चाहिए।
क्यों बिगड़ी बात?
राहुल गांधी ने स्पीकर पद पर समर्थन का एलान तो कर दिया, लेकिन डिप्टी स्पीकर की बात पर सरकार असमहत नजर आई। इसी बीच, ओम बिरला ने पर्चा दाखिल कर दिया। वहीं, कुछ देर बाद विपक्ष ने उनके खिलाफ के सुरेश को उम्मीदवार बना दिया। उन्होंने भी नामांकन दाखिल कर दिया है।
अगर ओम बिरला स्पीकर का लोकसभा स्पीकर का चुनाव नहीं जीते तो क्या होगा, जीते तो मोदी साधेंगे कई तीर
18वीं लोकसभा में पैनी सियासी बिसात बिछने लगी है. पहले दिन से पक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी शुरू हो चुकी है. बीजेपी ने पिछले टर्म में स्पीकर रह चुके तीन बार के सांसद ओम बिरला को इस पद के लिए फिर खड़ा किया है. वहीं कांग्रेस इस पद के लिए के सुरेश को खड़ा कर रही है. दरअसल इस पद के लिए सत्ता पक्ष ने सर्वानुमति से राय बनाने की कोशिश नहीं की. नतीजा ये है कि साफ टकराव सामने नजर आ रहा है. सत्ता के समीकरण देखें तो यद्यपि संसद में एनडीए का पलटा मजबूत है लेकिन इंडिया ब्लाक भी कमर कस चुका है.
स्पीकर के चुनाव में सबकी निगाहें एनडीए और इंडिया ब्लाक के अलावा उस तीसरे पक्ष की ओर भी होगी, जो किसी ओर नहीं है.वे जिधर जाएंगे, उधर पलड़ा मजबूत हो सकता है और तभी एनडीए सरकार के सीधे ना सही लेकिन अपरोक्ष तौर पर बड़ा झटका लगेगा.
लोकसभा में वोटों का समीकरण क्या होगा, ये तो हम आगे देखेंगे लेकिन उससे पहले ये भी जान लेते हैं कि अगर ओम बिरला जीते तो क्या होगा और नहीं जीते तो क्या होगा. हालांकि ये कहना चाहिए लोकसभा में ताकत के हिसाब से एनडीए भारी पड़ेगा और ओम बिरला के हारने की स्थिति नहीं दिखती. कहने को ये महज स्पीकर का चुनाव है लेकिन मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी.
स्पीकर पद के लिए आज नामांकन की तारीख है. चुनाव के लिए कल वोटिंग होगी. इसमें वही सदस्य हिस्सा ले पाएंगे, जिन्होंने शपथ ले ली है. पिछली बार ओम बिरला निर्विरोध स्पीकर चुने गए थे. तब विपक्षी दलों ने भी उन्हें समर्थन दिया था.
अगर ओम बिरला जीते तो…
– सदन में एनड़ीए की पकड़ और मजबूत हो जाएगी. उसका अपना स्पीकर होगा तो ताकत में और इजाफा होगा. साथ ही विपक्ष का मनोबल टूटेगा
– सरकार को इस जीत के साथ बड़ा आत्मविश्वास मिलेगा, जो उसके आगे काम करने के लिए उसे ताकत देगा
– इस तरह एनडीए लोकसभा में अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन करेगा
– चूंकि लोकसभा में एनडीए गठबंधन के पास पर्याप्त सीटें हैं, लिहाजा वो उसे ताकत मिलेगी कि वो अपने तरीके से काम करता रहे
– लोकसभा में बेशक बीजेपी के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है लेकिन गठबंधन दलों को मिलाकर उसके पास भी कुछ भी करने की भरपूर ताकत है
– प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की पकड़ और दमदार होगी और उसकी सरकार को तीसरे टर्म में काम करने के लिए इसी जोश की जरूरत भी है.
अगर ओम बिरला नहीं जीते तो…
– अगर ऐसा हुआ तो तभी होगा यदि जेडीयू या टीडीपी वोटिंग के समय अलग राह चुनते हैं, तब ये इस सरकार के लिए बड़ा झटका होगा
– सरकार के लिए ये इतना बड़ा झटका होगा कि वो इस दबाव में आ जाएगी कि उसके पास सरकार चलाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है
– तब मोदी सरकार को तुरंत विश्वास मत लाकर सदन में अपना बहुमत साबित करना होगा. ऐसे में विपक्ष भी उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है
– ऐसे में सरकार के गिरने का खतरा लगातार बना रहेगा और विपक्ष के दबाव के आगे सरकार दिक्कत में होगी.
– अपना स्पीकर नहीं होने से एनडीए को विधायी कामों में लगातार मुश्किलों से गुजरना ही होगा
– एनडीए सरकार अगर बच भी जाती है तो अस्थिर ही नजर आएगी और उसका मनोबल टूटा हुआ नजर आएगा.
– स्पीकर अपना नहीं होने पर सरकार को सदन को चलाने और नए विधेयकों को पास कराने में ही नहीं बल्कि हर काम में दिक्कत होगी.
इस बार चूंकि बीजेपी अल्पमत में है और गठबंधन दलों के सहारे है लिहाजा इस बार उसके लिए अपना स्पीकर होना सबसे ज्यादा मायने रखता है, जो नाजुक मोड़ों पर उसकी चुनौतियों में संकटमोचक बन सके.