RACISM;मासूम बेटी के साथ बर्बर सलूक कर कहा भारत भागो… आयरलैंड में नस्लीय बर्बरता, जड़ें जलियांवाला बाग हत्याकांड में

नई दिल्ली, दुनिया का एक खूबसूरत देश है आयरलैंड। ब्रिटेन के पास स्थित इस छोटे से देश में नस्लवाद चरम पर पहुंच चुका है। खासकर भारतीयों के खिलाफ नफरत इतनी भर गई है कि छोटी बच्चियां भी नहीं बच पा रही हैं। हाल ही में 6 साल की एक मासूम बच्ची पर ऐसा ही नस्लीय हमला हुआ है। हमलावरों ने बच्ची को डर्टी इंडियन कहते हुए उसके साथ बर्बर सुलूक किया। उसके प्राइवेट पार्ट पर भी चोट पहुंचाया। हैरानी की बात यह है कि नस्लवाद का यह जहर आयरलैंड में नाबालिग बच्चों तक में कूट-कूटकर भर चुका है। बच्ची के हमलावर 12 से 14 साल के लड़के थे। जानते हैं कि इस आयरिश देश में नस्लवाद की जड़ें कहां हैं?
बेटी को बाल खींचकर कहा डर्टी इंडियन भाग जाओ
द आयरिश मिरर की रिपोर्ट में पीड़ित बच्ची के हवाले से बताया है कि उसकी बेटी पर 12 से 14 साल के पांच लड़कों ने हमला किया। इन सभी ने उसकी खेल रही बेटी के चेहरे पर मुक्के मारे और एक ने साइकिल का पहिये से बच्ची के प्राइवेट पार्ट पर चोट पहुंचाई। यहां तक कि उसके बाल खींचते हुए कहा भारत भाग जाओ। बच्ची की मां पेशे से नर्स है और आठ साल से आयरलैंड में रह रही हैं। वह हाल ही में आयरिश नागरिक बनी हैं। इस घटना से पूरा परिवार आहत और खौफ में है। उन्होंने कहा कि वह अब आयरलैंड में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं।
आयरलैंड में क्यों बढ़ गया नस्लवाद और हिंसा
आयरिश नेटवर्क अगेंस्ट रेसिज्म आयरलैंड नाम की एक रिसर्च के अनुसार, आयरलैंड में 2022 की रिपोर्ट में अभद्र भाषा, बदसलूकी और हमलों सहित 600 नस्लीय घटनाएं सामने आई थीं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आयरलैंड में नस्लवाद ऐतिहासिक और वर्तमान समय में नस्लीय भेदभाव , धार्मिक भेदभाव और त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव सहित कई तरह के भेदभावपूर्ण नजरिया सामने आता है। हालांकि आयरलैंड खुद ब्रिटिश शासन के अधीन एक उपनिवेश राष्ट्र था। 1990 के दशक से यह देश बहुसांस्कृतिवाद की चुनौतियों से जूझ रहा है। इन चुनौतियों में शरणार्थियों, शरणार्थियों, रोमा समुदाय और अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और एशियाई मूल के लोगों के प्रति नस्लवाद शामिल है, जो अक्सर जेनोफोबिया, इस्लामोफोबिया, ऑनलाइन गलत सूचना और आप्रवासी-विरोधी भावनाओं के मुद्दों से और भी जटिल हो जाता है।
हिटलर के नरसंहार से भागकर यहूदियों से प्रेरित
विकीपीडिया के अनुसार, आयरलैंड का नस्लीय और जातीय भेदभाव के साथ एक लम्बा और जटिल रिश्ता है, जिसमें गैर-श्वेत निवासियों और आप्रवासियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार भी शामिल है। इतिहासकार ब्रायन फैनिंग के अनुसार, आयरलैंड गणराज्य में नस्लवाद की जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत में हैं। उस वक्त आयरलैंड में राष्ट्रवाद की प्रक्रिया के तहत यहूदियों और आयरिश यात्रियों जैसे अल्पसंख्यक समूहों को नस्लीय रूप से दूसरा समझा जाता था। फैनिंग ने यह भी तर्क दिया कि 1930 और 40 के दशक में नाजी जर्मनी के दौरान तानाशाह हिटलर के होलोकॉस्ट से भागकर आए यहूदी शरणार्थियों के प्रति आयरिश राज्य की प्रतिक्रिया भी नस्लवाद से प्रेरित थी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड से निकली सोच
विकीपीडिया के अनुसार, भले ही आयरलैंड ऐतिहासिक रूप से एक उपनिवेश राष्ट्र था, मगर राजनीतिक और पादरी वर्ग के भीतरी तत्वों ने साम्राज्यवादी विचारधाराओं का समर्थन किया, जिसमें अंग्रेजों की वर्चस्ववादी सोच भी शामिल थी। यह उस दौर की बयानबाजी ‘श्वेत व्यक्ति का बोझ’ और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन में आयरिश अभिजात वर्ग की भागीदारी में साफ झलकता था। कभी औपनिवेशिक भारत में पंजाब के गवर्नर जनरल रहे माइकल ओ’डायर ने भारत में 1919 के अमृतसर नरसंहार का आदेश दिया था। जिसे जलियांवाला बाग हत्याकांड भी कहा जाता है। आयरलैंड ने ऐसे बेरहम लोगों की मानसिकता को अपने ऊपर थोप लिया, जिस वजह से उसके यहां भी बाहर से आए लोगों के प्रति नफरत, हिंसा और नस्लवादी सोच ने जन्म दिया।
डी वलेरा की एक छोटी सी गलती ने लगा दिया दाग
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आयरलैंड आधिकारिक तौर पर तटस्थ था। मगर, उसके नेता ताओसीच एमोन डी वलेरा पर जर्मनी में एडोल्फ हिटलर के नाजी शासन के साथ सहानुभूति रखने और उसका समर्थन करने का आरोप लगाया गया था। 1945 में हिटलर की मृत्यु के बाद डी वलेरा उन कई लोगों में से एक थे जिन्होंने शोक पुस्तिका पर दस्तखत किए और डबलिन दूतावास में जर्मन राजदूत से सहानुभूति भी जताई थी। इससे ब्रिटेन के नेता विंस्टन चर्चिल जैसे मित्र देशों के नेताओं में यह विश्वास पैदा हो गया कि डी वलेरा और आम तौर पर आयरिश लोग नाजी शासन के समर्थक थे। यहीं से एक खासतौर पर नफरती सोच ने जन्म लिया।
आयरलैंड में यूरोप, अफ्रीका और एशिया से आते हैं लोग
बीसवीं सदी के मध्य में आयरलैंड में पारंपरिक रूप से आयरलैंड गणराज्य में बहुत कम आप्रवासन होता था और इसलिए नस्लीय विविधता भी कम थी। हालांकि, हाल के दशकों में आयरलैंड में बढ़ती समृद्धि ने बड़ी संख्या में आप्रवासियों को आकर्षित किया है। यहां पर चीन, यूरोपीय लोग, अफ्रीकी देशों और कुछ भारत-पाकिस्तान जैसे एशियाई देशों से भी लोग आते हैं।