RATH YATRA;राजधानी रायपुर समेत पूरे छत्तीसगढ में 27 जून को रहेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की धूम
जगन्नाथ

0 छत्तीसगढ में रथयात्रा की संस्कृति एवं परंपरा का लगातार विस्तार
नारायण भोई
रायपुर, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. 27 जून को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा छत्तीसगढ समेत पूरे देश में निकाली जाएगी. पहले छत्तीसगढ में उडीसा से लगे सीमाई इलाकों में रथयात्रा निकलती थी। अब राज्य के प्राय: सभी छोटे बडे शहरों समेत उडिया भाषा बहुल गांवों -कस्बों में धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली जाती है। बस्तर में इसे गोंचा पर्व के नाम से मनाया जाता है। इस तरह से छत्तीसगढ में भगवान जगन्नाथ एवं उनकी रथयात्रा की संस्कृति एवं परंपरा का लगातार विस्तार हो रहा है।
राजधानी रायपुर शहर के सबसे प्राचीन जगन्नाथ मंदिर में से पुरानी बस्ती स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर को साहूकार मंदिर के नाम से जाना जाता था. मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापित होने के बाद भी इसे जगन्नाथ मंदिर के रूप में पहचान मिली. इस मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है. राजधानी रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर की स्थापना के बाद राज्य में रथयात्रा काफी धूमधाम से निकाली जा रही है। रायपुर सहर के पुरानी बस्ती ,गोलबाजार गुढियारी, कोटा में भी रथयात्रा निकाली जाती है। राजधानी में मुख्य रथयात्रा गायत्री नगर जगन्नाथ मंदिर से निकाली जएगी। इसमें राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे
बस्तर में गोंचा पर्व
छत्तीसगढ़ के बस्तर में रथयात्रा का पर्व बहुत ही अनोखा, मनोरंजक और कई मायनों में दुर्लभ है. इसे गोंचा रथ यात्रा कहा जाता है. बस्तर में जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास कई साल पुराना है। बस्तर में भगवन जगन्नाथ रथ यात्रा देश के अन्य हिस्सों से बिल्कुल अलग तरीके से मनाई जाती है. इस पावन पर्व में तुपकी का अपना अलग महत्व है. बस्तर में भगवन जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान तुपकी से सलामी देने की परंपरा है.

जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस यात्रा में भाग लेता है या भगवान के रथ को खींचता है, उसके जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भी माना जाता है कि रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति को ऐसा फल प्राप्त होता है, जैसे उसने सौ यज्ञों का आयोजन किया हो। इसलिए बडी संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा का हिस्सा बनने आते हैं, ताकि उन्हें आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

भक्त और भगवान के सीधे संवाद का दूसरा नाम है रथयात्रा
रायपुर के श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा बताते है कि भक्त और भगवान के सीधे संवाद का दूसरा नाम है रथयात्रा। यह ऐतिहासिक व पारपरिक पर्व है, जो सीधे भक्त को भगवान से जोड़ता है जो न केवल छत्तीसगढ़ एवं ओडीशा राज्य की भावनाओं को आपस में जोड़ती है अपितु इन दोनों राज्यों के बीच आपसी भाईचारा एवं प्रेम बन्धुत्व की भावनाओं को आज के इस आधुनिक युग में भी जीवन्त बनाए हुए है. जो हमारी धार्मिक आस्था एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि अर्थात 27 जून, शुक्रवार को रथ यात्रा पर्व अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा।
वर्ष में एक बार बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते है
पुरन्दर मिश्रा रथयात्रा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहते है कि समूचे ब्रह्माण्ड में एकमात्र श्री जगन्नाथ महाप्रभु ही ऐसे भगवान है जो वर्ष में एक बार बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं, और प्रसाद के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। केवल पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ जी. बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी के लिए तीन अलग अलग रथ बनाए जाते हैं, उसके बाद यह गौरव छत्तीसगढ़ की सस्कारधानी रायपुर को प्राप्त है। छत्तीसगढ़ में आज भी ऐसे लाखों लोग हैं. जो किसी कारणवश पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे भक्तजनों के लिए रथयात्रा एक ऐसा स्वर्णिम अवसर रहता है जब भक्त और भगवान के बीच की दूरियां कम हो जाती है।
यात्रा का शुभारम्भ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान पूर्णिमा से
वैसे तो भगवान जगन्नाथ महाप्रभु जी की लीला अपरम्पार है. तथापि रथयात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक विधियों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होने बताया कि वैसे इस यात्रा का शुभारम्भ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान पूर्णिमा से हो जाता है जिसमें भगवान जगन्नाथ श्री मन्दिर से बाहर निकलकर भक्ति रस में डूबकर अत्यधिक स्नान कर लेते हैं. और जिसकी वजह से वे बीमार हो जाते हैं। पन्द्रह दिनों तक जगन्नाथ मन्दिर में प्रभु की पूजा अर्चना के स्थान पर दुर्लभजड़ी बूटियों से बना हुआ काढ़ा तीसरे पाचचे सातवें और दसवे दिन पिलाया जाता है। भगवान जगन्नाथ को बीमार अवस्था में दर्शन करने पर मक्तजनों को अतिपुण्य का लाभप्राप्त होता है। स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने के पश्चात् भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा जी के साथ तीन अलग अलग रथ पर सवार होकर अपनी मौसी क घर अर्थात् गुण्डिचा मन्दिर जाते है, प्रभु की इस यात्रा को रथ यात्रा कहा जाता है।