SC; मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, ये अर्जी लेकर पहुंची थी केंद्र सरकार
नई दिल्ली. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) को लेकर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर फिर से विचार करने की केन्द्र सरकार की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ईडी को गिरफ्तारी के वक्त आरोपी को लिखित में गिरफ्तारी के आधार देने चाहिए. जबकि केंद्र सरकार ने इस फैसले की समीक्षा के लिए एक याचिका दायर कर इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी. जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने चैंबर में समीक्षा याचिका पर विचार किया और अपना आदेश पारित किया.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ‘हमने समीक्षा याचिकाओं और संबंधित कागजातों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है. हमें विवादित आदेश में ऐसी कोई त्रुटि नहीं मिली है, जो कम स्पष्ट हो, या जिस पर फिर से विचार करने की जरूरत हो. इसलिए समीक्षा याचिका खारिज कर दी जाती हैं. लंबित आवेदन अगर कोई हो तो, उसका निपटारा किया जाता है.’ 20 मार्च को पारित अपने आदेश में पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई के लिए केंद्र सरकार के आवेदन को भी खारिज कर दिया.
ईडी से निष्पक्षता की उम्मीद
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 3 अक्टूबर के उस आदेश की समीक्षा की मांग की थी, जिसमें उसने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेशों के साथ-साथ गिरफ्तारी मेमो को भी रद्द कर दिया था. साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गुरुग्राम स्थित रियल्टी समूह एम3एम निदेशकों बसंत बंसल और पंकज बंसल को रिहा करने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को कड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि उससे अपने आचरण में ‘प्रतिशोधी’ होने की उम्मीद नहीं की जाती है और उसे पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए.
ईडी पर आर्थिक अपराध को रोकने की कठिन जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि एक प्रमुख जांच एजेंसी होने के नाते, जिस पर देश में मनी लॉन्ड्रिंग के आर्थिक अपराध को रोकने की कठिन जिम्मेदारी है, ऐसे काम के दौरान Ed की हर कार्रवाई ‘पारदर्शी’ होने की उम्मीद की जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2002 के कड़े कानून के तहत दूरगामी शक्तियों से संपन्न ईडी से अपने आचरण में ‘प्रतिशोधी’ होने की उम्मीद नहीं की जाती है. उसे अत्यंत ईमानदारी और उच्चतम स्तर की निष्पक्षता के साथ काम करते हुए देखा जाना चाहिए. इसमें कहा गया था कि ईडी द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने में आरोपियों की विफलता जांच अधिकारी के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘2002 के (पीएमएलए) अधिनियम की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में गवाह का असहयोग उसे धारा 19 के तहत गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.’