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SC;अब बात-बात पर CBI जांच का आदेश नहीं दे सकता हाईकोर्ट, सुको ने खींच दी ‘लक्ष्मण रेखा’

नई दिल्ली, हर मामले की सीबीआई जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा खींच दी है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि अदालतों को रूटीन तरीके से सीबीआई जांच का आदेश देने से बचना चाहिए. सीबीआई यानी केंद्रीय एजेंसी से जांच का निर्देश तभी दिया जाना चाहिए, जब प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकलता हो कि राज्य पुलिस से उचित और निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती है. जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले की जांच सीबीआई को ट्रांसफर करने से संबंधित पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का एक आदेश खारिज कर दिया. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे निर्देश नियमित रूप से पारित नहीं किए जाने चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अदालत को सीबीआई जांच का आदेश देने की असाधारण शक्ति का इस्तेमाल कम से कम, सावधानी से और असाधारण परिस्थितियों में ही करना चाहिए. खासकर उन मामलों में जहां जांच में विश्वसनीयता और विश्वास पैदा करने के लिए यह जरूरी हो जाता है. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट्स को केवल उन मामलों में सीबीआई से जांच कराने का निर्देश देना चाहिए, जहां प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता हो कि सीबीआई से जांच कराने की आवश्यकता है.

बेंच ने आगे कहा, ‘ सीबीआई जांच का निर्देश नियमित तरीके से या कुछ अस्पष्ट आरोपों के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए. बिना किसी निश्चित निष्कर्ष के ‘अगर’ और ‘मगर’ जैसे तर्क सीबीआई जैसी एजेंसी को जांच का निर्देश देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.’ पीठ ने कहा कि केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच का आदेश उन मामलों में दिया जाना चाहिए जहां घटना के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव हो सकते हैं या जहां पूर्ण न्याय करने और मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए ऐसा आदेश आवश्यक हो. धोखाधड़ी और जालसाजी के एक मामले में हाईकोर्ट के मई 2024 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है.

क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि अक्टूबर 2022 में पंचकूला में एक एफआईआर यानी प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने खुद को खुफिया ब्यूरो का महानिरीक्षक (आईजी) बताते हुए शिकायतकर्ता को धमकाया और उसे अपने खाते में 1.49 करोड़ रुपये स्थानांतरित करने के लिए कहा. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने दवाओं का कारोबार करने वाले शिकायतकर्ता को अपने सहयोगियों के साथ काम करने के लिए मजबूर किया और उससे जबरन पैसे वसूले.

हाईकोर्ट में क्या हुआ
शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट से मामले की जांच का जिम्मा राज्य पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया. हाईकोर्ट ने ने याचिका स्वीकार कर ली, जिसके बाद आरोपी ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. दो अप्रैल के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में ‘अस्पष्ट और बेबुनियाद’ आरोप लगाए गए थे.

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