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POLITICS;बिहार में किंग नहीं, किंगमेकर बनना चाहते हैं चिराग पासवान? यही है विधानसभा चुनाव लड़ने के पीछे की कहानी

चिराग

पटना, राजनीति में किंग बनने की इच्छा हर सियासतदां की होती है. लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के मन में भी यह भावना हिलोरें मार रही है. वे किंग बन पाएंगे या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन राजनीति में ऐसे अवसरों से इनकार नहीं किया जा सकता. अगर 43 विधायकों वाली पार्टी के नेता नीतीश कुमार सीएम बन सकते हैं और बिहार का कभी हिस्सा रहे झारखंड में निर्दलीय मधु कोड़ा के सीएम बनने रास्ता खुल सकता है तो चिराग पासवान को भी इस तरह का कोई अवसर मिल जाए तो आश्चर्य नहीं.

बिहार में बीते 20 साल में एनडीए में किसी एक दल को सरकार बनाने का बहुमत नहीं मिला. इसके बावजूद नीतीश कुमार लगातार सीएम बनते रहे. चिराग पासवान अगर केंद्र की राजनीति से अलग होकर बिहार में अपना भविष्य देख रहे हैं तो शायद उन्हें ऐसी ही संभावना की उम्मीद रही होगी.

असेंबली चुनाव लड़ेंगे चिराग?

चिराग पासवान को भले ही 2020 में निराशा हाथ लगी, लेकिन उनके मन से बिहार का मोह नहीं गया है. कहने को तो वे बिहार से ही लोकसभा के सांसद हैं. केंद्र में मंत्री पद भी मला हुआ है, लेकिन बिहार की राजनीति की उनकी इच्छा अधूरी है. बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट उनकी पार्टी का स्लोगन है. इस स्लोगन को सच साबित करने के लिए उन्हें बिहार की राजनीति में तो उतरना ही पड़ेगा. पिछले कई महीनों से चिराग कहते रहे हैं कि पार्टी ने कहा तो वे विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. पहले उन्होंने कहा था कि 2030 के विधानसभा चुनाव में वे उतर सकते हैं. फिर कहा कि पार्टी कहे तो इस बार भी विधानसभा का चुनाव लड़ने को तैयार हैं. हाल ही में पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी ने जो 10 प्रस्ताव पास किए थे, उनमें एक प्रस्ताव उनके बिहार की राजनीति में उतरने का भी था. अब तो पार्टी के तमाम प्रकोष्ठों ने उन्हें इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरने का प्रस्ताव पारित कर दिया है.

चिराग की ताजपोशी के पोस्टर

पिछले ही महीने चिराग जब बिहार आए तो पटना में उनकी ताजपोशी के पोस्टर समर्थकों ने लगा दिए थे. माना गया कि चिराग के इशारे पर ही पोस्टर लगे होंगे. हालांकि, दरभंगा के एक कार्यक्रम में शिरकत करने वे गए तो स्पष्ट कर दिया कि उनकी ताजपोशी का तो अभी सवाल ही नहीं उठता. इसलिए कि बिहार में सीएम पद की अभी कोई वैकेंसी नहीं है. नीतीश कुमार ही सीएम रहेंगे. दरभंगा से लौटते ही वे नीतीश कुमार से मिलने उनके आवास 1, अणे मार्ग पहुंच गए थे. वहां से निकलने के बाद भी उन्होंने वही बात दोहराई, जो दरभंगा में कही थी.

किंग मेकर बनना चाहते चिराग

चिराग पासवान यह भी कहते हैं कि पिछली बार की तरह वे अलग होकर चुनाव नहीं लड़ेंगे. एनडीए में रह कर ही उनकी पार्टी विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहती है. अलबत्ता उनकी पार्टी लोजपा-आार 60 सीटों की मांग करती रही है. चिराग को भी पता है कि इतनी सीटें मिलनी मुश्किल है. अगर उन्हें 20-25 सीटें भी मिलती हैं और लोकसभा की तरह उनकी पार्टी का अचीवमेंट शत-प्रतिशत रहता है तो वे किंग मेकर की भूमिका में आ जाएंगे. अभी तक एनडीए में यही चर्चा होती रही है कि 243 सीटों में भाजपा और जेडीयू 100-100 सीटों पर लड़ेंगे. बची 43 सीटों में ही बाकी सहयोगी दलों को सीटें मिलेंगी. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम और जीतन राम मांझी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अलावा चिराग पासवान की लोजपा-आर में 43 सीटें बंटेंगी. ऐसे में चिराग पासवान का किंग बनना तो आसान नहीं, लेकिन किंग मेकर की भूमिका में वे आ सकते हैं.

सीएम की कुर्सी पर निगाहें

नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र और उनकी अस्वस्थता के कारण बिहार के तमाम सियासी दलों को लगने लगा है कि जल्द ही बिहार में सीएम की वैकेंसी हो सकती है. इसके लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव तो कोशिशों में जुटे ही हुए हैं, जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर भी सीएम की कुर्सी पर टकटकी लगाए हुए हैं. एनडीए में तो अभी से सीएम पद के कई दावेदार दिखने लगे हैं. सम्राट चौधरी भाजपा में फिलवक्त नंबर वन पर चल रहे हैं तो विजय कुमार सिन्हा भी अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं. जेडीयू में नीतीश के रहते भले किसी की जुबान नहीं खुले, पर संजय कुमार झा, विजय चौधरी और अशोक चौधरी जैसे लोग भी जरूर उम्मीद पाले होंगे. उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी का मन भी ललचाता ही होगा. चिराग पासवान भी अपनी चिल्ल-पों से जमीन तैयार करने में लगे हैं. आश्चर्य यह कि मौजूदा विधानसभा में एलजेपी-आर की तो मौजूदगी ही नहीं है. यानी चिराग पासवान को नए सिरे से इसके लिए मेहनत करनी होगी. इस बार उनके लिए अनुकूल अवसर है. इसलिए कि लोकसभा चुनाव में उनका परफारेंस शत-प्रतिशत परिणाम के रूप में दिखा.

भाजपा का स्क्रिप्ट तो नहीं!

जेडीयू इस बार 115 सीटें चाहती है. चिराग की पार्टी 60 सीटों की मांग कर रही है. जीतन राम मांझी पहले ही 40 सीटें मांग चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा अभी बोल नहीं रहे. भाजपा किसी भी हाल में जेडीयू को 115 सीटें देने के मूड में नहीं है. इसलिए संभव है कि चिराग के जरिए दबाव बना कर भाजपा नीतीश कुमार को दबाने की कोशिश करे. चिराग अगर विधानसभा चुनाव लड़ने की बात करते हैं तो इसके लिए जरूरी होगा कि उन्हें कम से कम 25-30 सीटें मिलें. वैसे भी टिकट बंटवारे का एक फार्मूला यह है कि एक सांसद पर 5-6 टिकट मिलें. चिराग के 5 सांसद हैं. इस फार्मूले के मुताबिक 25-30 सीटों पर उनका दावा तो बनता ही है.

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