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IPL; विराट और आईपीएल, कुछ खो कर पाना है….

विराट

बहुत साल पहले की बात है ,टेनिस जगत में ईवान लेंडल , एक नंबर शीर्ष वाले खिलाड़ी थे। ग्रैंड स्लैम के चार में से तीन फ्रेंच, यूएस और ऑस्ट्रेलियन ओपन जीत जाते लेकिन विंबलडन में फाइनल पहुंचने के बाद हार जाते। 1986 में फाइनल हारे, 1987 के फाइनल में पहुंचे तो दो किट लेकर कोर्ट में आए। पहले किट से रैकेट निकाला। खेले लेकिन फिर हार गए।

लेंडल से इंटरव्यू में पूछा गया कि “आज दो किट क्यों लाए थे।” लेंडल का जवाब था – मै किसी भी हालत में किसी भी तरीके से जीतना चाहता था। मै, अपनी जीती सारी ट्रॉफी प्रतिद्वंद्वी को देकर विंबलडन की एक जीत भी मांगने के लिए तैयार था।
इवान लेंडल जैसी स्थिति क्रिकेट में विराट कोहली की पिछले सत्रह साल से थी। खुद शानदार जानदार खिलाड़ी है, उनके साथ विश्व के दो महान दिग्गज खिलाड़ी क्रिस गेल और ए बी डिविलियर्स भी थे। ये तिकड़ी भी ट्रॉफी नहीं जीता सकी थी। विराट आरसीबी की कप्तानी भी छोड़ दिए थे, ये सोचकर कि इस बलि से कप मिल जाए। रजत पाटीदार,लकी चार्म साबित हुए।


देश के दो महाग्रंथ रामायण और महाभारत में  भगवान राम और पांडवों के 14 साल के  संन्यास का विवरण है। विराट कोहली ने इन दोनों से चार साल का अधिक का आईपीएल ट्रॉफी वनवास झेला, अंततः 2025 में  वे “किंग कोहली” बन ही गए। रजत पाटीदार उनके लिए हनुमान बने, याने जीत के सूत्रधार। आरसीबी की पूरी टीम ने किंग्स इलेवन पंजाब को प्ले ऑफ में दूसरी बार हराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।  श्रेयस अय्यर का सस्ते में आउट होना, आरसीबी की जीत का कारण बना लेकिन   आरसीबी की तरफ से गेंदबाजी  का जलवा कुणाल पंड्या ने दिखाया उसके चलते रन औसत का दबाव बढ़ा और जीत बेंगलुरु के करवट बैठ ही गई।
 विराट , पिछले दो दशक में विश्व के क्रिकेट के लिए ध्रुव तारा बन चुके है। संभावनाओं से जितने भरपूर उतने ही आक्रामकता। लबरेज भी लेकिन आप फाइनल में उनकी आक्रामकता से ज्यादा संवेदना भारी पड़ रही थी। खेल समाप्ति के बीसवें ओवर के आखिरी तीन बॉल के डिलेवरी के साथ विराट भावुक होते गए, पहले गला रुंधा, फिर आंखे भरी  फिर आंसू बहे, विराट रोए, फफक कर रोए, अठारह साल की प्रतीक्षा में इतना तो बनता था,
आरसीबी की जीत के साथ  सरदार वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम (भले ही इस स्टेडियम को नरेंद्र मोदी स्टेडियम कहे) के 92 हजार दर्शकों सहित देश विदेश के अरबों विराट प्रेमी भावुक हो गए। 18 नंबर की जर्सी पहनने वाले विराट ने अठारहवें संस्करण में अपनी झोली भर ही ली।
हर खिलाड़ी जब उम्रदराज हो जाता है तो प्रतिष्ठित तरीके से विदा होने की ख्वाहिश मन ही मन रखने लगता है। भारत में ऐसा दुस्साहस केवल सुनील गावस्कर ने 1985में बेंसन एंड हेजेज कप जीतकर दिखाया था। कपिलदेव, सचिन तेंदुलकर और एमएस धोनी  टीम के लिए बोझ हो चुके थे और घसीट घसीट कर अपमानित होते रहे, बेशर्मी से खेले और दर्शकों की नजर से उतरने के बाद टीम से उतरे। विराट कोहली ने कल संकेत दे दिया है कि जूता टांगने का समय आ गया है। उनके पास शानदार अवसर है। लोग उन्हें विराट व्यक्तित्व के रूप में जाने माने। वे आईपीएल के लिए कम से कम धोनी नहीं बने जो विज्ञापन के लिए चेन्नई सुपर किंग्स में किंग्स नहीं बल्कि कॉन्ट्रैक्ट लेबर बने हुए है|….. 

स्तंभकार -संजयदुबे

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