चुनाव में नीलाम चढ़ी महिलाएं !

नीलाम शब्द अपने आप में एक प्रतियोगी शब्द हैं । किसी वस्तु को पाने के लिए एक से अधिक व्यक्तियों या पार्टियों द्वारा दांव जिसे दाम लगाना भी कहते है।इस दाम को बढ़ाकर ऐसी जगह पर ला देना कि दूसरा उस दाम से आगे न बढ़ पाए वहां पर नीलामी खत्म हो जाती है। सबसे अधिक दाम लगाने वाले के हक में हो जाती हैं।चुनाव का मौसम है।मतदाता खासकर गरीबो और गरीबो में भी महिलाएं राजनैतिक पार्टियों के दांव पर दांव लगाया जा रहा है।
“यत्र नारी पूज्यते तत्र देवता विराजते” हमारी संस्कृति का आदर्श है ।इस आदर्श की हर पार्टियां धज्जियां उड़ाते दिख रही है। ये आम बात है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं पुरुष के भरोसे रहती है। महिलाए। खासकर आर्थिक रूप से पुरुष पर निर्भर होती है। घर बार चलाने के अलावा महिलाओ को अनेक व्यक्तिगत कामों के लिए पैसे की जरूरत होती है। मौके पर पैसे नहीं मिलने पर महिलाओ को अभाव से जूझना पड़ता है। इस अभाव को हर राजनैतिक पार्टियां पकड़ चुकी है।
1990 के दशक से महिलाओ को ध्यान में लाने की प्रक्रिया राजनैतिक दलों ने खासकर शुरू की। आंध्र प्रदेश में फिल्मी कलाकार टी .रामाराव,ने महिलाओ को चांवल और मुफ्त में मंगल सूत्र देने की घोषणा कर सरकार बना ली थी। जयललिता ने एक कदम आगे बढ़कर मुफ्त में इलेक्ट्रिक इंडशन के साथ चौके के घरेलू सामान पंखा देना शुरू कर दिया। भाजपा ने राशन कार्ड में महिला को मुखिया बना दिया एक रूपये किलो में चांवल अब मुफ्त में और उज्जवला योजना में घरेलू गैस कनेक्शन दे दिया। सामाजिक सुरक्षा के नाम पर शुरू पेंशन 100 रूपये से बढ़कर 500रुपए तक पहुंच गया । बेटियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजना चल ही रही है। उत्तर प्रदेश में मुफ्त में स्कूटर की योजना भी आई थी।गर्भवती से लेकर मातृत्व लाभ पाने वाली महिलाओ के लिए योजनाओं की ढेर है।
इस बार किसी भी स्थिति में महिलाओ के वोट पाने के लिए सारी पार्टियां टूट पड़ी है। एक पार्टी 500 रुपए में सिलेंडर दे रही है तो दूसरी 450रुपए में देने वाली है। एक पार्टी सालाना बारह हजार देने की घोषणा करती है तो दूसरी पंद्रह हजार देने का संकल्प कर रही है। अभी समय शेष है महिलाए नीलामी पर लगी है।15नवंबर तक 300- 400रूपये तक सिलेंडर पहुंच सकता हैं । सालाना पेंशन पंद्रह हजार से अठारह हजार जा सकता है। राजनैतिक पार्टियों के जादू की पिटारी में अनेक लुभावन योजनाएं महिलाओ के लिए है। उनके जन्म से लेकर छठी, पढ़ाई,, वाहन,विवाह सहित मरने पर लकड़ी तक मुफ्त में देने के लिए मारामारी है।
कहने का मतलब है चुनाव के चौसर पर महाभारत चल रहा है। द्रौपदी दांव पर लगी है। किस शकुनी का दांव सही पड़ता है।ये देखा जा रहा है। गरीब महिला मतदाता का कोई आत्म सम्मान नहीं देखा जा रहा है। बस झुग्गी बस्तियों में रहने वाली महिलाओ के वोट को खरीदने के लिए कुत्ता बिल्ली समान झपट रहे है।किसी तरह सत्ता पाना है बस। प्रश्न राजनैतिक दलों से कि क्यों सत्ता में आने के बाद ये सब काम क्यों नही करते। रेवड़ी का खेल क्यों खेल रहे है।
याद रखे कई चुनाव में गरीब महिलाओ ने राजनैतिक दलों के रेवडियो को ठुकराया है। चार राज्यो के चुनाव में गरीब महिलाओं के चुनावी महत्व ने ये बता दिया है कि उन्हें राजनैतिक पार्टियां ने बाजार में खड़ा कर नीलाम की वस्तु बना दिए है।
स्तंभकार- संजयदुबे