त्वचा रोगों में डर्मोस्कोपी के अनुप्रयोग पर जोर
0 एम्स की एक दिवसीय सीएमई में विशेषज्ञों ने प्रशिक्षण प्रदान किया
रायपुर, शरीर की प्रक्रिया में आई कमी की वजह से होने वाले त्वचा रोगों में डर्मोस्कोपी के बढ़ते प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के तत्वावधान में एक दिवसीय सीएमई आयोजित की गई। इस अवसर पर विशेषज्ञों ने त्वचा संबंधी रोगों को अधिक सटीकता से पहचानने के लिए डर्मोस्कोपी के प्रयोग को आवश्यक बताया।
‘अनलॉकिंग द पोटेंशियल ऑफ डर्मोस्कोपी’ विषयक एक दिवसीय सीएमई में त्वचा रोग विशेषज्ञों को डर्मोस्कोपी के बारे में प्रशिक्षण और इसके अनुप्रयोग के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की गई। विशेषज्ञों ने पिगमेंटेशन संबंधी विकारों, शरीर की प्रक्रिया में आई कमियों की वजह से होने वाले त्वचा रोग (इनफ्लेमेटरी कंडीशन) के साथ बाल और नाखून संबंधी रोगों में भी डर्मोस्कोपी के अधिक से अधिक अनुप्रयोग पर जोर दिया।
सीएमई के आयोजक और एम्स के अतिरिक्त प्राध्यापक डॉ. सत्याकी गांगुली के अनुसार डर्मोस्कोपी का त्वचा रोग में प्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसकी मदद से त्वचा के किसी भी भाग को 10 से 225 गुना अधिक तक विस्तृत देखा जा सकता है जिससे त्वचा संबंधी विकारों को आसानी के साथ वर्गीकृत किया जा सकता है। इसकी जानकारी सभी त्वचा रोग विशेषज्ञों को देने के उद्देश्य से कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के 80 से अधिक त्वचा रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया।
प्रमुख विशेषज्ञों के रूप में डॉ. देबजीत कार, उड़ीसा, डॉ. प्रियदर्शिनी साहू, चंडीगढ़ और डॉ. शिशिरा आर. जरताकर, बंग्लौर ने लाइव डेमोंस्ट्रेशन की मदद से डर्मोस्कोपी के लाभ के बारे में प्रतिभागियों को विस्तृत जानकारी प्रदान की। सीएमई का आयोजन एम्स के त्वचा रोग विभाग, इंडियन एसोसिशएशन ऑफ डर्मोटलॉजिस्ट, वेनरोलॉजिस्ट और लेप्रोलॉजिस्ट एकेडमी और आईएडीवीएल, छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। सीएमई में डॉ. नम्रता छाबड़ा शर्मा, डॉ. नील प्रभा, डॉ. नवनीत कौर, डॉ. सुरभि कश्यप, डॉ. साक्षी गोयल, डॉ. सौमिल खरे और डॉ. रितुल चौधरी ने भी भाग लिया।