मिशन 2023; भाजपा में युवाओं को आगे लाने की तैयारी; पीएम आवास आंदोलन में युवाओं को मिली जिम्मेदारी
रायपुर, इस साल के अंत में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे। इसके लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपनी अपनी रणनीति बनाना शुरु कर दी गई है। भाजपा ने भी छत्तीसगढ में वापसी की रणनीति पर काम करने लगी है। भाजपा की स्थापना के बाद उसने शनै शनै अपने पैर जमाने के लिए युवा नेताओं को आगे किया और उसका नतीजा भी अनुकूल रहा। धीरे धीरे पार्टी मजबूत हुई। छत्तीसगढ में दिग्गज युवा नेता तैयार हुए। बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, देवजी पटेल , प्रेम प्रकाश पांडे, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, केदार कश्यप ,संजय श्रीवास्तव जैसे कई आक्रामक-दमदार नेता बने । इसी तर्ज पर अब फिर से भाजपा काम करने लगी है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को पता है कि बाल बढाने-कटाने, मूंछ पर दांव लगाने से सरकार नहीं बनती। चुंकि छत्तीसगढ में भाजपा का ग्राफ एकाएक गिर गई है। तीन दफे सरकार में रहने के बाद 15 सीटों में सिमट गई। इससे पार्टी की स्थिति का अंदाजा लगाना सहज है। इसलिए पार्टी छत्तीसगढ में लगातार कार्तकत्ताओं को रिचार्ज कर रही है। संगठन में युवा नेताओं को तरजीह दी जा रही है और अब उनके कंधों में जिम्मेदारी भी।
पार्टी सूत्रों की माने तो युवाओं को आगे लाने के साथ चुनाव की तैयारिया भी शुरु की जा रही है। विभिन्न मुद्दों पर बूथ एव मंडल स्तर पर आंदोलन के बाद अब पीएम आवास आंदोलन में भी पार्टी के युवा नेताओं को मौका दिया जा रहा है। ताकि चुनाव तक एक परिपक्व नेता की तरह अपने आप को साबित कर सकें और इस चुनाव में मौका न मिले तो अगले चुनाव में अपने आप को प्रतिस्थापित कर सके ।
बहरहाल पार्टी ने इस दिशा में प्रयोग शुरु कर दिया है, और इसका ताजा उदाहरण पीएम आवास आंदोलन है। जहां आंदोलन की कमान युवाओं को सौप दी गई। इस आंदोलन में भाजपा ने शक्ति प्रदर्शन तो किया ही, संगठन में भी एक बड़ा संदेश दिया है। यह पहला आंदोलन था जिसमें किसी दिग्गज नेता को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। पार्टी ने सेकेंड लाइन के नेताओं को मौका दिया। पंडाल से लेकर खाने-पीने तक जिम्मेदारी युवा नेताओं को दी गई। यही नहीं बड़े नेता चाहते थे कि आम सभा पंडरी में की जाए, लेकिन दूसरी पीढ़ी की राय थी कि भीड़ अधिक होगी इसलिए सभा स्थल पिरदा हो।
पहली बार मंडल अध्यक्षों को वाहन की व्यवस्था कर कार्यकर्ता लाने को कहा गया, जबकि इसके पहले हुए आंदोलनों में हर विधानसभा के दो-चार बड़े नेताओं को ही कार्यकर्ता लाने की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। इस पूरे आंदोलन की कमान सह प्रभारी नितिन नबीन ले रखी थी। उनका सहयोग संगठन मंत्री पवन साय कर रहे थे। सात दिन लगातार नबीन ने बैठकें ली। पांचों संभागीय प्रभारी संतोष पांडेय, सौरभ सिंह, किरणदेव सिंह, भूपेंद्र सवन्नी और संजय श्रीवास्तव को अपने-अपने संभाग के सभी जिला और मंडल अध्यक्षों के साथ कॉर्डिनेशन की जिम्मेदारी दी गई थी।
आंदोलन के एक दिन पहले करीब 10 हजार लोग रायपुर पहुंच गए थे। पहले इन सभी के खान-पान की जिम्मेदारी एक पूर्व मंत्री को दी गई थी, लेकिन बाद में नबीन ने यह जिम्मा भी आरटीआई प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. विजयशंकर मिश्रा और एनजीओ प्रकोष्ठ के सुरेंद्र पाटनी को दे दी। इसके बाद पूरे भाजपा में हलचल मच गई। यही नहीं मंच पर भी कई दिग्गज नेताओं को दूसरी और तीसरी लाइन में बैठाया गया।
इस पूरे आंदोलन में पंडाल बनाने से लेकर मंच संचालन तक की जिम्मेदारी महामंत्री विजय शर्मा और विधायक सौरभ सिंह को दी गई। सभी जिलों से कॉर्डिनेशन का जिम्मा भी इनके हाथों में ही था। कार्यक्रम की सफलता के पहले ही संगठन ने विजय शर्मा को एक और बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। उन्हें बूथ सशक्तिकरण का प्रदेश प्रभारी बना दिया गया। भाजपा के इस संदेश ने कार्यकर्ताओं से लेकर सीनियर लीडर के बीच हलचल मचा दी है।