सर संस्कृति………………..
सर, सर, जी सर, सर, सर…अक्सर इस प्रकार के रटे रटाये शब्द उच्च अधिकारियों या नेताओ के सामने निचले पद के अधिकारी को आपने सुनते देखा होगा। आखिर ये “सर” बला क्या है?
हिंदी भाषा में सर के दो तीन अर्थ होते है। एक सर तो मानव शरीर का सर्वोच्च हिस्सा होता है जिसमे मस्तिष्क का वास होता है। सर दूसरा अर्थ तालाब होता है तीसरा अर्थ बाण होता है लेकिन आंग्ल भाषा में SIR याने सर के दो अर्थ होते है। पहला किसी अपरिचित व्यक्ति के लिए विनम्रता सूचक संबोधन या वह व्यक्ति जो उच्च पद होने के कारण सम्मान का प्रशासनिक हकदार है। जिसके सामने आप सही होने के बावजूद भी जी सर ही बोल पाते है।
दरअसल, sir शब्द की शुरुवात फ्रेंच भाषा के शब्द sieur से हुई। जिसका अर्थ लार्ड(भगवान) होता है। अंग्रेजों ने अपने देश मे व्यक्ति को सम्मानित करने की परंपरा की शुरुवात की तो नाइटहुड सम्मान दिया जाने लगा। ये अंग्रेजों के द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान बना जैसे भारत में भारतरत्न सम्मान है। अंग्रेज सरकार श्रेणी का नाइटहुड देती थी वे ही स्वयंमेव “सर” शब्द से संबोधित होने लगते थे।
अंग्रेजों के भारत आने के साथ साथ “सर” शब्द भी आयातित हुआ। गवर्नर जनरल जब वाइसरॉय बने तो वे लार्ड याने गुलाम लोगो के स्वामी याने भगवान कहलाने लगे लेकिन इनसे नीचे दर्जे के अंग्रेज अधिकारियों ने स्वयं को “सर” कहलाने की परंपरा शुरू कर दी। अंग्रेजो ने भारतीय राजाओं नवाबो को रिझाने के लिए कुल 163 भारतीय राजाओं या नवाबो को सर की उपाधि से नवाजा था। जिसे 1947 में समाप्त कर दिया गया
1947 में देश आजाद हुआ लेकिन मानसिक गुलामी में अंग्रेजियत का भूत ऐसा सवार हुआ कि “सर” परम्परा बन गयी और आज तक निचले दर्जे का कर्मचारी अपने से उच्च अधिकारी के लिये सर शब्द का उपयोग कर रहा है। आप किसी कार्यालय में जाकर किसी भी अधिकारी के बारे में जानकारी मांगेंगे तो जवाब में फलाना सर अभी नही आये है, या अन्य उत्तर मिलेगा।
हिंदी भाषी स्कूलो में गुरु जी, मास्साब, शब्द आज़ादी के बाद 1990 तक चलता रहा। कालेज में प्राध्यापक जरूर सर कहलाते थे। 1990 के बाद अंग्रेजी भाषा के कान्वेट स्कूलो की भरमार ने सर, शब्द को विस्तार दे दिया। अब केजी वन का भी टीचर सर है। केरल में सर शब्द को शिक्षण संस्थानों में प्रतिबंधित कर टीचर शब्द का उपयोग शिक्षण संस्थाओ में शिक्षक के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। हिंदी भाषी राज्यो में पहले अंग्रेजी भाषा में संचालित होने वाले स्कूल नही हुआ करते थे। दिल्ली के शिक्षा मॉडल का असर ये हुआ है कि अब “सर” संस्कृति वाले स्कूल खुल गए है।
कुछ दिन पहले sir शब्द को selvage i remain yane मैं अभी भी गुलाम कह कर पाश्चात्य संस्कृति की मजबूरी को प्रचारित किया गया था। देखा जाए तो सर शब्द गुलामी का परिचायक है। किसी भी व्यक्ति को भगवान नही माना जा सकता है ।अंग्रेजी संस्कृति में ये ढर्रा है जिसे भारत के लोग ढो रहे है।
इसके पलट निजी क्षेत्र युवा लोग बड़े कारोबार में आ रहे है वे सर संस्कृति से तौबा कर नाम लेने की परंपरा की नेक शुरुवात कर रहे है लेकिन व्यवस्थापिका औऱ कार्यपालिका में “सर” मजबूरी है । इसका उपयोग न करने पर उच्च अधिकारी में हीन भावना जागृत हो जाती है।
स्तंभकार-संजय दुबे
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