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दंगल औऱ सुप्रीम कोर्ट का धोबी पछाड़

अगर निर्वाचित  जनप्रतिनिधि अपने पर आ जाये तो क्या हो सकता है ? ये देखना हो दिल्ली के जंतर मंतर पर एक बार जरूर देखना चाहिए। यहां देश के पहलवान, जिन्होंने ओलंपिक सहित दीगर अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक जीता है, वे न्याय के लिए फुटपाथ में रात गुजार रहे है। ये वो पहलवान है जिनके जीतने पर देश के प्रधानमंत्री , खेल मंत्री ट्वीट्स करते है। पहलवान देश का तिरंगा फहरा कर देश लौटते है तो उनको सम्मानित करने के भव्य आयोजन होते है। उनकी मांग भी नाजायज मांग नहीं थी, गलती थी तो सिर्फ ये कि सत्ताधारी पार्टी के सांसद महोदय के खिलाफत भर कर दिए थे।

 धरना, प्रदर्शन का खेल विपक्ष का माना जाता है जिसे पक्ष हमेशा नज़रंदाज़ करने की हिमाकत करता है। मांग पर शुरुआत में विचार न करने की अदम्य इक्छाशक्ति औऱ हठधर्मिता अहंकार का रूप होता है जो हर सत्ताधारी में होता है। यही हुआ महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर अपने चरित्र के तार तार होने की बदनामी की परवाह किये बिना आरोप लगाया था। आमतौर पर जैसा होता है जांच कमेटी बना कर मामले पर पानी डालने का काम होता है।इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। इसी बीच कुश्ती संघ के चुनाव संबंधी ताने बाने रचे गए। 

चार महीने से  दंगल में उठापटक चलते रही। रेफरी  राउंड खत्म होने के बाद भी सीटी बजाकर विजेता घोषित करने के मूड में नहीं दिखा तो वापस पहलवान  जंतर मंतर रिंग में आ गए। 5 दिन से पहलवानों ने न्याय की प्रतीक्षा में  फुटपाथ में रात गुजारी। जब व्यवस्थापिका में आरूढ़ लोग कान में तेल डालकर बैठ जाये तो फिर न्यायालय ही शेष बचता है। महिला पहलवान वह भी नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न  का मामला  कितनी क्रूरता के साथ अनदेखा किया गया ये देखा जा सकता है।

 अंततः सर्वोच्च न्यायालय के द्वार पर आहट की गई तो न्याय भी सामने आया।  इसी मंदिर में सत्तापक्ष की गिड़गिड़ाहट देखने को मिलती है। बताना पड़ा कि दो एफआईआर दर्ज कर ली गयी है। जब पहलवान सीधे तौर पर थाने जाकर शिकायत करने गए थे तो दुनियां भर की बातें बताई गई थी।

अब सर्वोच्च न्यायालय में कहानी में ट्विस्ट आ गया है। पहलवानों की मांग को सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान में लेते हुए धोबी पछाड़ दांव लगा दिया है। पहलवान भी अंतिम सीटी बजे बगैर रिंग नही छोड़ने के मूड में है। राष्ट्रीय अध्यक्ष की गिरफ्तारी पर मांग अटक गई है। मामला भी पास्को का है जिसमे आसानी से निचली अदालत  से जमानत राहत भी नहीं मिलती है। अब बाज़ी पलटते दिख रही है तो अध्यक्ष महोदय सशर्त इस्तीफे की बात कह रहे है। पहलवानों को अब कोई भी शर्त

 मंजूर नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। न्याय कभी भी आधा अधूरा नही लिया जाना चाहिए। कुश्ती में  नियम है हार होगी या जीत होगी। अभी तो पहले तीन राउंड में पहलवान जीत कर बढ़त बनाये हुए है।

 पहलवानों के  राजनीतिज्ञों के साथ दंगल में उत्साह बढ़ाने वालों ( दीगर खेल के खिलाड़ियों ) की भी चर्चा है। आईपीएल खेलने वाले करोड़पति- लखपति क्रिकेटर्स के मुंह बंद होने की भी आलोचना हो रही है। वैसे भी खिलाड़ियों में क्रिकेटर्स व्हाइट कालर्ड खिलाड़ी माने जाते है। ये केवल 8 मजबूत देश सहित अन्य 8 फकीर देशों के साथ क्रिकेट का जश्न मनाते है। इनके मुँह से निकलता भी है तो सट्टा खिलाने वाली छद्म  एप्लिकेशन को करोड़ो रूपये लेकर प्रमोट करना होता है। ये लोग मौन साधे हुए है क्यो? बीसीसीआई भी कही न कही सत्ता पक्ष के प्रभाव क्षेत्र में है। 

इनके साथ खड़े न होने के बावजूद पहलवानों ने दर्प पालने वालो को मिट्टी सूंघा दी है। इनके लिए गर्व से खड़े होने के साथ साथ ताली भी बजाई जा सकती है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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