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तुम्हें गीतों में ढा लूंगा, सावन को आने दो…

सावन औऱ बारिश का नाता चोली दामन के समान है। बाकी किसी भी  भारतीय महीने में पानी गिरे लेकिन सावन के पानी का अपना अलग ही मजा है। भारतीय फिल्म निर्माताओ के लिए सावन एक पसंदीदा मौसम है। फिल्मों के नामकरण से लेकर गानों में सावन का जिक्र होना जरूरी है।

 सावन नाम की पहली फिल्म 1945 में बनी थी। मोतीलाल औऱ शांता आप्टे नायक नायिका थे। कालांतर में सावन नाम की दो और फिल्म 1959 औऱ 2006 में फिर बनी। सावन  आया रे (1949) सावन की घटा (1966)आया सावन झूम के (1969) सावन भादौ (1970)  रेखा की पहली फिल्म थी। सावन के गीत (1978)  सावन को आने दो औऱ सोलहवाँ सावन (1979) श्री देवी की पहली हिंदी फिल्म थी। प्यासा सावन (1981) प्यार का पहला सावन (1989)  प्यार का सावन (1991)  आग लगा दो सावन को (1991)  अमूमन सावन नाम से बनी फिल्में रही है।  इन फिल्मों में  से  “सावन को आने दो” फिल्म के गीतों की सुमधुरता  सुनने लायक है।  प्यासा सावन फिल्म का गीत “मेघा रे मेघा रे मत परदेश जा रे” आज भी कर्णप्रिय है। सावन नाम से जुड़े फिल्मों के नाम भले ही उंगलियों में गिनने  लायक है लेकिन सावन के मौसम में बरसने वाले पानी से जुड़े गानों की लंबी फेरहिस्त है। 

सावन में पानी का गिरना कई तरह से होता है। कभी फुहार होती है तो कभी रिमझिम बरसात  होती है तो कभी झड़ी लगती है। सावन को फिल्मकारों ने सही मायने के साथ उत्तेजना के स्वरूप को उभारने के लिए ज्यादा लिया है। स्त्री के शरीर सौंदर्य को दिखाने के लिए बारिश को जबरन ठूसा भी गया। अक्सर जिन  गानों में बारिश हुई है उसमें धूप भी आसानी से देखी जा सकती है। बारिश के गानों में नायक नायिका सहित सम्मिलित लोगो  की परछाई अगर दिखी तो समझ लीजिए के कृत्रिम बारिश का सहारा लिया गया है। भला काली घटा छाई हो परछाई कैसे दिख सकता है। ये मजबूरी है क्योंकि फ़िल्म निर्माण के समय सावन का महीना आये।

 “सावन” एक ऐसा मौसम है इसका उल्लेख अनेक गानों में हुआ है।”मिलन” फिल्म में “सावन का महीना पवन करे शोर” के अलावा  बदरा आये के झूले (आया सावन झूम के) कुछ कहता है ये सावन (  मेरा गावं मेरा देश) अब के सावन में जी डरे (जैसे को तैसा), तुम्हे गीतों में ढा लूंगा ( सावन को आने दो), मैं प्यासा तुम सावन (फरार),  अब के सजन सावन में ( चुपके चुपके), रिमझिम गिरे सावन (मंजिल), सावन के झूले पड़े (जुर्माना), लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है( चांदनी)  जैसे बहुत से गाने है  जिनमे सावन का उल्लेख है।

 सावन की बरसात को ले तो  अमूमन हर दसवें फिल्म में एक अंग्रेजी भाषा का Rain song होता ही है। इसका उद्देश्य  कमतर सार्थक होता है जैसे गुरु फिल्म में बरसों से मेघा मेघा, या दिल ये बेचैन है रास्ते पे नैन है (ताल) पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ( शोर) रिमझिम रिमझिम (1942 अ लव स्टोरी),  अन्यथा नायिका या आइटम सांग गाने वालियों को भींगा कर  दर्शकों में उत्तेजना भरना ही होता है। ज्यादातर बारिश के गानों में उद्देश्य खराब ही होता है। सच तो ये भी शायद ही कोई नायिका होगी जो कृत्रिम सावन के बारिश में भीगी न हो। राजकपूर की लगभग हर  फिल्म में बारिश या फिर नायिका का भींगना अनिवार्य ही था। फिल्मों के सावन से परे आम जीवन मे सावन उत्साह का मौसम है। राहत की बूंदे जब कही भी पड़ती है, उमंग भर जाता है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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