कला-साहित्य

PADMASHREE AWARDS; नारायणपुर के वैद्य हेमचंद मांझी, जशपुर के जागेश्वर व रायगढ़ के रामलाल को मिलेगा पद्मश्री सम्मान

रायपुर, प्रदेश के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के पारंपरिक औषधीय वैद्य हेमचंद मांझी को चिकित्सा, जशपुर जिले के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता जागेश्वर यादव को सामाजिक कार्य के क्षेत्र में व रायगढ़ के कथक नर्तक रामलाल बरेठ को पद्मश्री मिलेगा। 67 वर्षीय जागेश्वर यादव ने हाशिये पर पड़े बिरहोर पहाड़ी कोरवा लोगों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने दोनों को फोन पर बधाई व शुभकामनाएं दी है।

नारायणपुर जिला मुख्यालय से 43 किलोमीटर दूर छोटेडोंगर के वैद्यराज हेमचंद मांझी कैंसर, मधुमेह, शुगर सहित कई अन्य बीमारियों का उपचार जड़ी-बूटी से बहुत कम राशि लेकर करते हैं। वे पिछले पांच दशकों से अधिक समय से ग्रामीणों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने 15 वर्ष की उम्र से जरूरतमंदों की सेवा शुरू कर दी थी। वे अबूझमाड़ के सुदूर जंगलों में जड़ी-बूटियों के विशेष ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। विभिन्न बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए बहुत कम राशि लेते हैं। नक्सलियों द्वारा बार-बार धमकियों और व्यक्तिगत हमलों के बावजूद उन्होंने ईमानदारी और उत्साह के साथ लोगों की सेवा करना जारी रखा। मांझी ने जड़ी बूटियों के अलग-अलग मिश्रण से भिन्न-भिन्न तासीर की दवाओं को ईजाद किया है। कैंसर और ब्लड कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए उन्होंने 21 जड़ी बूटियों के मिश्रण से दवाई बनाई है।

हेमचंद मांझी करते हैं जड़ी बूटियों से कैंसर व शुगर का इलाज

70 वर्षीय वैद्यराज हेमचंद मांझी विशेष प्रजाति की जड़ी बूटियों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज करते है। अलग-अलग राज्य व महानगरों के कैंसर पीड़ित मरीज मांझी की दवाई लेने आते हैं। वे बताते हैं कि दवाइयों के बारे में ज्यादातर जानकारी किताबों एवं स्वयं के अनुभव से ही सीखी है। कैंसर, ब्लड कैंसर, हड्डी कैंसर, शुगर, ब्लड प्रेशर, दमा, लकवा, बवासीर, टीबी सिकलीन, टांसिल, गठिया, मिरगी, एड्स जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज करते हैं। कैंसर प्रथम या द्वितीय चरण तक के स्तर तक पूर्णतः उपचार योग्य है, परंतु लंबे समय तक दवा का सेवन कराना पड़ता है। मांझी ने बताया कि बचपन में मुझे एक बार चोट लग गई थी। पिता ने मां से तेल की रुई का गर्म फाहा बनाकर चोट वाली जगह पर लगाने को कहा। एक हफ्ते में जब यह घाव ठीक हुआ तो मुझे बेहद आश्वर्य हुआ और मैं खुशी से उस विषय पर पिता से बात कर रहा था। इस तरह मेरी रुचि घरेलू और जड़ी बूटियों से इलाज में पैदा हुई।

1989 से बिरहोर जनजाति के लिए कार्य कर रहे जागेश्वर यादव

जशपुर जिले के भीतरघरा गांव निवासी जागेश्वर राम यादव बिरहोर जनजाति के लिए काम करते हैं। वे ‘बिरहोर के भाई’ के नाम से प्रसिद्ध है। हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बुलाने पर वे नंगे पाव ही चले गए थे। उन्हें 2015 में शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान मिल चुका है। जागेश्वर बताते हैं कि बिरहोर जनजाति के बच्चे लोगों से घुलते-मिलते नहीं थे, बल्कि उन्हें देखकर भाग जाते थे। ज़मीन पर मिले जूतों के निशान को देखकर भी छिप जाते थे। पढ़ाई-लिखाई के लिए स्कूल जाना तो दूर की बात है। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब इस जनजाति के बच्चे भी स्कूल जाते हैं। लोगों से मिलते हैं। दरअसल जागेश्वर साल 1989 से इस जनजाति के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने जशपुर में आश्रम की स्थापना की। उन्होंने शिविर लगाकर निरक्षरता उन्मूलन और स्वास्थ्य सेवा मानकों को ऊंचा उठाने के लिए काम किया है। उनके प्रयासों से कोरोना के दौरान टीकाकरण की सुविधा, झिझक को दूर करने से शिशु मृत्यु दर को कम करने में भी मदद मिली। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उनका जुनून सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक रहा।

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